किसान फलों की बागवानी कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन बिना जानकारी के बाग लगाना उनके लिए घाटे का सौदा हो सकता है. इसलिए वैज्ञानिक तरीके से पूरी जानकारी लेकर ही बगीचा लगाना चाहिए. अगर आप भी आम, अमरूद, लीची जैसे फलों का बाग लगाना चाहते हैं. तो किसान तक की खरीफनामा सीरीज की ये कड़ी उनके लिए अनूठी जानकारियों से भरी हुई है. एक लाइन में इस पूरी जानकारी का सार बताने की कोशिश करें तो कहा जा सकता है कि जो किसान आम-अमरूद की बागवानी करना चाहते हैं, उनके लिए जरूरी है कि वह सघन बागवानी करें. इससे किसानों को एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ होंगे. आइए जानते हैं कि आम-अमरूद की सघन बागवानी क्या है. इस तकनीक को किसान कैसे अपना सकते हैं. इससे कैसा उत्पादन मिलेगा.
बागवानी विशेषज्ञ के अनुसार आम की साधारण बागवानी में पौधे से पौधे की दूरी 10 मीटर के करीब रखी जाती है, जिसमें प्रति हेक्टेयर तकरीबन 100 पौधे लगते हैं. वहीं आम्रपाली आम की सघन बागवानी करते समय पौधे से पौधे की बीच की दूरी ढाई से तीन मीटर रखते हैं और इस तरह एक हेक्टेयर में 1333 पौधे लगते हैं. आम्रपाली के अलावा अन्य किस्म के पौधे 5 बाई 5 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं और इस तरीके से एक हेक्टेयर में लगभग 400 पौधे लगते हैं. अगर कोई किसान अमरूद की सघन बागवानी करना चाहते हैं तो अमरूद के पौधों को 3 बाई 3 मीटर की दूरी पर लगाएं. इस तरह से पौधों का रोपण करने पर एक हेक्टेयर में 1111 पौधे लगेंगे.
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कृषि केंद्र बहराइच के प्रमुख एवं उद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ. बीपी शाही ने किसान तक से बातचीत में कहा कि अगर आम और अमरूद की सघन बागवानी के लिए किसान नई तकनीक और बेहतर तरीके अपनाएंगे तो फल बागवानी से प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उपज प्राप्त होगी. सघन बागवानी की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि बागवानी में पौधे और लाइन टू लाइन दूरी उचित रूप से रखे जानी चाहिए और पौधों को हमेशा चिह्नित स्थानों पर लगाया जाना चाहिए. बगीचों को हमेशा वर्गाकार रूप में लगाना चाहिए. बाग लगाने का यह सबसे आसान और सही तरीका है. इससे बगीचे के हर काम को आसानी से किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर सघन बागवानी करनी है तो पूरी प्लानिंग कर करनी चाहिए.
कृषि विशेषज्ञ डॉ शाही ने कहा कि बाग लगाने के लिए किसान सही स्थान का चयन कर लें. वहीं ले-आऊट और गढ्ढे की खुदाई का काम मई माह में खत्म कर लेना चाहिए, जिससे कि तेज धूप से कीटाणु समाप्त हो जाएं. गढ्ढे की खुदाई के समय ऊपर की उपजाऊ मिट्टी का आधा भाग एक ओर तथा आधा भाग दूसरी ओर डालना चाहिए. गड्ढों को भरने के का काम एक माह बाद करना चाहिए और 15 जून के पहले गड्ढों को भराई का काम पूरा कर लेना चाहिए. गड्ढा भरते समय प्रति गड्डा गोबर की सड़ी खाद 20 से 25 किग्रा, सुपर फास्फेट 250 ग्राम, कुनालफॉस 50 ग्राम, नीम की छाल 2 किग्रा, क्षारीय मिट्टी होने पर 250 ग्राम जिप्सम और गड्ढे वाली मिट्टी को भरना चाहिए. इसके बाद अच्छी नर्सरी या उद्यान विभाग से आम अमरूद के सही किस्मों का चयन कर जुलाई और अगस्त माह में पौधे रोपण की कार्य पूरा कर लेना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में डॉ बीपी शाही ने कहा कि सघन बागवानी में बौनी किस्में लगाई जाती हैं ताकि प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक से अधिक पौधे लगाए जा सकें. जिससे सामान्य बागवानी की तुलना में उतने ही क्षेत्र में आम-अमरूद की बागवानी कर तीन से चार गुना तक किसान उत्पादन ले सके. हाई डेंसिटी बागवानी में किस्मों का चुनाव सबसे ज़रूरी पहलू होता है. उन्होंने कहा दरअसल इस विधि में बौनी किस्मों का चुनाव किया जाता है. आम की हाई डेंसिटी बागवानी के लिए दशहरी अरूणिका, आम्रपाली जैसी किस्में सबसे अच्छी मानी जाती है.
वहीं अमरूद की हाईडेंसिटी बागवानी के लिए आप ललित, इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49 और जैसी क़िस्मों का चयन कर सकते हैं और अमरूद की सघन बागवानी से बंपर उपज ले सकते हैं.
किसान तक से बातचीत में डॉ बीपी शाही ने बताया कि अमरूद की पौध रोपाई के कुछ समय बाद सबसे पहले 70 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट दें. उसके बाद दो-तीन महीने में पौध से चार-छह मजबूत डालियां विकसित होती हैं,अमरूद के पौधे में निकलने वाले नए कल्लों में फल लगते हैं. इसलिए पौध में नए कल्लों को विकास करना जरूरी होता है. इसके लिए अमरूद के पौधों की साल में तीन बार कटाई-छंटाई की जाती है. सघन बागवानी के लिए पौधे का आकार छोटा रखने के लिए समय-समय पर छंटाई और छंटाई की जरूरत होती है. ताकि पौधे में नई शाखाएं न उगें और वह ज्यादा से ज्यादा फल दे सके. इस विधि में 2 क्यारियों के बीच की खाली जमीन पर सूरन और पत्ता गोभी लगाकर किसान लाभ कमा सकते हैं.
अमरूद एक ऐसा पौधा है,जिससे साल में तीन बार यानी बरसात, सर्दी और बसंत में फलों का उत्पादन लिया जा सकता है. जिसमें बरसात वाले फल की क्वालिटी कम होती है. अमरूद की परंपरागत बागवानी में भी हाईडेंसिटी की तरह ही 3 साल में फल लगने लगते हैं, लेकिन हाईडेंसिटी में तीसरे साल से ही परंपरागत बागवानी की तुलना में दोगुनी उपज मिलने लगती है. परंपरागत तरीके से अमरूद की बागवानी करने पर प्रति हेक्टेयर जहां 15 से 20 टन उपज मिलती है. वहीं सघन बागवानी में अमरूद का उत्पादन 30-50 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाता है. आम की सामान्य बागवानी में प्रति हेक्टेयर 7 से 8 टन तक उत्पादन मिलता है. वहीं आम की सघन बागवानी करने पर ये उत्पादन बढ़कर 15 से 18 टन तक हो जाता है.
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