देश में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है और हर साल फसल कटाई के बाद पराली (फ़सल अवशेष) की समस्या सामने आती है. कई किसान इसे जलाकर निपटाते हैं, जिससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है. पराली जलाने पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाते हुए पूर्ण प्रतिबंध का लक्ष्य रखा है. इसके बाद अब किसानों को पराली जलाने पर कानूनी कार्रवाई का सामना भी करना पड़ सकता है. पराली जलाने से निजात पाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने पराली से खाद बनाने की तकनीक विकसित की है.
IARI की तकनीक से अब किसान पराली से खाद बनाकर अपने खेत से बिना डीएपी, यूरिया या अन्य रासायनिक खादों के बेहतर फसल उगा सकते हैं. इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, बल्कि किसानों का उर्वरक पर खर्च भी कम होगा. IARI बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट के कोऑर्डिनेटर और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा ने जानकारी दी कि वायवीय विधि, जिसे विंड्रोव कम्पोस्टिंग कहा जाता है, जिसके माध्यम से पराली से बड़े पैमाने पर और कम समय में बेहतर खाद बनाई जा सकती है. यह खाद न केवल मिट्टी को नरम बनाती है, बल्कि खेतों में लंबे समय तक पोषक तत्वों की उपलब्धता बनाए रखती है.
विंड्रोव कम्पोस्टिंग एक सरल और प्रभावी तकनीक है, जिससे किसान पराली और अन्य फसल अवशेषों से आसानी से जैविक खाद तैयार कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में पराली का ढेर बनाकर उसे समय-समय पर पलटा जाता है, जिससे उसमें वायु का संचरण बना रहता है और कम्पोस्ट जल्दी तैयार हो जाती है. यहां तीन विधियों से विंड्रोव कम्पोस्टिंग की जा सकती है-
जैविक कल्चर विधि : इस विधि में पराली का ढेर बनाकर उसमें जैव-एंजाइम पूसा का छिड़काव किया जाता है. ढेर की ऊंचाई 2-2.5 मीटर और लंबाई 10 से 100 मीटर या उससे अधिक हो सकती है. नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है और मशीनों से पलटाई की जाती है. इस प्रक्रिया में 4 से 5 हफ्तों में उत्तम जैविक खाद तैयार हो जाती है.
पराली गोबर मिश्रण विधि : इस विधि में 80 फीसदी पराली और 20 फीसदी ताजे गोबर को मिलाकर खाद बनाई जाती है. पराली को लगभग 8-10 सेंटीमीटर लंबाई में काटकर ढेर बनाया जाता है और उसमें गोबर मिलाया जाता है. इसके बाद जैविक कल्चर मिलाया जाता है. यह विधि सरल और प्रभावी है, जिसमें 4 से 5 हफ्तों के भीतर उत्तम जैविक खाद तैयार हो जाती है.
रॉक फॉस्फेट युक्त समृद्ध खाद : इस विधि में पराली और गोबर के साथ रॉक फॉस्फेट का उपयोग किया जाता है, इसके बाद जैविक कल्चर मिलाया जाता है जिससे फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ाई जाती है. यह फॉस्फो-कम्पोस्ट पौधों के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है. इस प्रक्रिया से 4 से 5 हफ्तों में समृद्ध खाद तैयार होती है.
खाद बनाने की पूरी प्रक्रिया में पराली के ढेर की ऊंचाई और लंबाई उपलब्ध स्थान के अनुसार तय की जाती है. जैविक कल्चर मिलाने के बाद पर्याप्त नमी बनाए रखी जाती है और मशीनों या हाथों से समय-समय पर पलटाई की जाती है. डॉ. शिवधर मिश्रा के अनुसार पराली के ढेर में डालने के तुरंत बाद पहली पलटाई की जाती है ताकि सभी अवशेष समान रूप से मिल सकें. इसके बाद दूसरी पलटाई 10 दिन बाद, तीसरी 25 दिन बाद, चौथी 40 दिन बाद और पांचवीं 55-60 दिन बाद की जाती है. पलटाइयों की संख्या और समय अंतराल पराली की स्थिति और आवश्यकता के आधार पर घटाई-बढ़ाई जा सकती है.
इस प्रकार 60 से 70 दिनों के भीतर तैयार की गई कम्पोस्ट खेत में डालने के लिए तैयार हो जाती है. यदि कम्पोस्ट का तुरंत उपयोग न करना हो, तो इसे बड़े आकार के ढेर बनाकर अच्छी तरह से ढककर सुरक्षित रखा जाता है, ताकि इसके पोषक तत्व नष्ट न हों. तैयार कम्पोस्ट की गुणवत्ता उसमें इस्तेमाल किए गए पदार्थों पर निर्भर करती है और इसमें गोबर खाद की तुलना में अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं.
IARI की तकनीक का इस्तेमाल करके पराली से तैयार खाद किसानों को कम लागत में बेहतर खाद प्रदान करती है. किसान जितना पैसा डीएपी यूरिया पर खर्च करते हैं, उससे भी कम लागत में विंड्रोव कम्पोस्टिंग तैयार खाद का उपयोग कर भरपूर फसल उत्पादन कर सकते हैं. यह खाद न केवल मिट्टी को नरम बनाती है, बल्कि खेतों में लंबे समय तक पोषक तत्वों की उपलब्धता बनाए रखती है. विंड्रोव कम्पोस्टिंग खाद लवणीय और क्षारीय भूमि में भी प्रभावी ढंग से काम करती है, जबकि डीएपी ऐसी भूमि में असर नहीं करता. यह कम्पोस्ट संतुलित पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो मिट्टी की जैविक और भौतिक संरचना को सुधारकर उसकी उर्वरता बढ़ाती है.
पराली से बनी कम्पोस्ट खाद किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प है. इससे न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि किसानों का उर्वरक पर खर्च भी कम होता है और पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है.
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