गुर्चा रोग टमाटर और मिर्च की फसल में लगने वाली सबसे व्यापक बीमारी है जिसके चलते इन दोनों ही फसलों का उत्पादन 30 से 40 फ़ीसदी तक प्रभावित होता है. हर साल किसानों को इस रोग के चलते भारी नुकसान उठाना पड़ता है. वही बाजार में आवक कम होने के चलते भी मिर्च और टमाटर के दाम भी कभी-कभी बढ़ जाते हैं. इस बीमारी में पौधों की पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और फूल गिरने लगते हैं. यह एक वायरस जनित बीमारी है. इस रोग की चपेट में आने से फल काफी कम हो जाते हैं. दवाओं के छिड़काव के बाद भी इस बीमारी पर नियंत्रण नहीं होता है.
वही इस बीमारी को लेकर वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) में शोध कार्य चल रहा है. शोध कार्य में अब एक बड़ी सफलता मिल चुकी है. यहां के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अच्चुत कुमार सिंह ने बताया कि इस बीमारी का जीन पहचान लिया गया है और जीनोम एडिटिंग के जरिए जल्द ही ऐसे पौधे तैयार हो सकेंगे जो पूर्णतया गुर्चा बीमारी के प्रति रोधी होंगे.
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भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में कुल 42 सब्जियों पर काम किया जा रहा है. यहां सब्जियों की उन्नत प्रजाति को विकसित करने का ही नहीं प्रयास किया जाता है बल्कि इनमें लगने वाली बीमारियों के नियंत्रण के लिए भी शोध कार्य जारी है. टमाटर और मिर्च में लगने वाली गुर्चा रोग एक प्रमुख बीमारी है जिससे हर साल किसानों को बड़ा नुकसान होता है. इस बीमारी के लगने के बाद पौधे पूरी तरीके से प्रभावित हो जाते हैं जिससे वह मरने लगते है. वही बाजार में बिकने वाली दवाओं से भी रोग पर नियंत्रण नहीं होता है.
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.अच्चुत कुमार सिंह ने किसान तक को बताया की गुर्चा रोग एक वायरस जनित बीमारी है. इस रोग के लगने के बाद पौधों पर किसी दवा का असर नहीं होता है. सफेद मक्खी के माध्यम से यह रोग पौधों में पहुंचता है और फिर प्रभावित पौधों की पत्तियां अनियमित रूप से सिकुड़ कर छोटी हो जाती है जिसके चलते पौधों से फूल गिरने लगते हैं और फलिया कम हो जाती हैं. इस दिशा में बीते 2 सालों से शोध कार्य किया जा रहा है. जिनोम एडिटिंग के द्वारा उसे खास जीन की पहचान कर ली गई है जो इस रोग के प्रति जिम्मेदार है. वही अब इस तरह के पौधे विकसित किया जा रहे हैं जो गुर्चा रोग के प्रति रोधी होंगे. ऐसे में जल्द ही शोध कार्य पूरा होने के बाद इस तरह के पौधे किसानों को मिल सकेंगे जो पूर्णतया गुर्चा रोग के प्रति रोधी होंगे.
कृषि विज्ञान केंद्र के पादप वैज्ञानिक डॉ. संदीप ने बताया कि गुर्चा रोग से बचाव के लिए नर्सरी में बीज को ही लाइन से बुवाई करें और पूरी नर्सरी को एग्रोनेट से ढक दें. पौधारोपण के तीन सप्ताह बाद 2.5 मिलीलीटर रोगार दवा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. 10 सप्ताह बाद 4 मिली लीटर ओमाइट दवा का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर दो बार छिड़काव करें.
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