
देश के कई हिस्सों में ज्वार की खेती एक बार फिर किसानों के लिए महत्वपूर्ण फसल बनती जा रही है. कम पानी में तैयार होने वाली यह फसल सूखे और बदलते मौसम के बीच किसानों को सहारा देती है. लेकिन हाल के वर्षों में ज्वार की कटाई सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है. ग्रामीण इलाकों में मजदूरों की कमी और बढ़ती मजदूरी के कारण समय पर कटाई कर पाना किसानों के लिए मुश्किल हो गया है. मजदूरों की लगातार कमी और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए ज्वार जैसी फसलों में मशीनों का प्रयोग अब विकल्प नहीं बल्कि जरूरत बनता जा रहा है. ज्वार हार्वेस्टर मशीन किसानों को समय, श्रम और लागत तीनों में राहत देती है. आने वाले समय में ऐसी मशीनें ज्वार की खेती को और ज्यादा लाभकारी बना सकती हैं.
परंपरागत तरीके से ज्वार की कटाई पूरी तरह मजदूरों पर निर्भर रहती है. फसल पकने के बाद अगर समय पर कटाई न हो, तो दाने झड़ने लगते हैं और नुकसान बढ़ जाता है. कई क्षेत्रों में किसान मजबूरी में फसल खड़ी ही छोड़ देते हैं या कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं. यही वजह है कि अब किसान मशीनीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं. ज्वार हार्वेस्टर एक आधुनिक कृषि मशीन है, जो ज्वार की कटाई, दाने अलग करने और भूसा बनाने का काम एक साथ करती है. यह मशीन कम समय में बड़े क्षेत्र की कटाई कर सकती है. जहां हाथ से कटाई में कई दिन लग जाते हैं, वहीं हार्वेस्टर कुछ ही घंटों में खेत साफ कर देता है.
ज्वार हार्वेस्टर मशीन से कटाई करने पर मजदूरों पर निर्भरता काफी कम हो जाती है. इससे कटाई का खर्च भी घटता है. मशीन से कटाई करने पर फसल का नुकसान कम होता है और दानों की गुणवत्ता भी बनी रहती है. समय पर कटाई होने से अगली फसल की तैयारी भी जल्दी शुरू की जा सकती है. पहले हार्वेस्टर मशीनें सिर्फ बड़े किसानों तक सीमित मानी जाती थीं. लेकिन अब कस्टम हायरिंग सेंटर और सहकारी समितियों के माध्यम से छोटे किसान भी किराये पर ज्वार हार्वेस्टर मशीन का उपयोग कर सकते हैं. कई राज्यों में कृषि विभाग की योजनाओं के तहत मशीनों पर सब्सिडी भी दी जा रही है.
एक अनुमान के अनुसार, जहां हाथ से कटाई में प्रति एकड़ खर्च काफी अधिक आता है, वहीं हार्वेस्टर मशीन से यह खर्च काफी कम हो जाता है. साथ ही मजदूरी, खाने-पीने और समय की बचत अलग से होती है. कम लागत और समय की बचत सीधे किसानों के मुनाफे को बढ़ाती है. ज्वार हार्वेस्टर मशीन से कटाई के बाद खेत लगभग साफ हो जाता है. भूसा और अवशेष समान रूप से खेत में फैल जाते हैं, जिससे अगली फसल की जुताई आसान होती है. कुछ किसान भूसे का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी करते हैं, जिससे अतिरिक्त आमदनी का रास्ता खुलता है.
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