हमने अक्सर ऐसी कई घटनाओं के बारे में सुना है जिनमें भारतीय मछुआरे अनजाने में दूसरे देशों, खासकर पाकिस्तान और श्रीलंका की समुद्री सीमाओं में अपनी पकड़ी हुई मछली की तलाश में घुस जाते हैं और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पकड़े जाते हैं. उन्हें छुड़ाने के लिए हमेशा काफी कूटनीतिक प्रयास करने पड़ते हैं. इसके अलावा, ऐसे भी उदाहरण हैं जब मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं का खतरा झेलना पड़ा, जैसे कि तमिलनाडु तट पर आए चक्रवाती तूफान ओखी के दौरान जिसकी वजह से साल 2017 में करीब 100 मछुआरे लापता हो गए थे. बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में हर 'अवसाद' या 'गहरा अवदाब' हजारों मछुआरों को खतरे में डालता है. लेकिन अब मछुआरों की नाव पर एक ऐसी डिवाइस फिट की जा रही है जो उनकी सुरक्षा को तो दोगुना करेगी ही साथ ही साथ देश पर आने वाले हर खतरे के बारे में भी आगाह करेगी.
भारत सरकार ने समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा, अवैध मछली पकड़ने की रोकथाम और समुद्री सीमाओं के उल्लंघन को रोकने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. देश के 13 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक लाख मछली पकड़ने वाली नौकाओं पर स्वदेशी ट्रांसपोंडर फिट किए जा रहे हैं. इस पहल को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की तरफ से वेसेल कम्युनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम (वीसीएसएस) के तहत लागू किया जा रहा है.
इस प्रोजेक्ट पर 364 करोड़ रुपये की लागत आएगी और इसे दिसंबर 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2024 में महाराष्ट्र के पालघर से इसका शुभारंभ किया था. ट्रांसपोंडर एक वायरलेस ट्रैकिंग डिवाइस है जो रेडियो फ्रीक्वेंसी से काम करता है. यह मछली पकड़ने वाली नौकाओं की निगरानी, नियंत्रण और सर्विलांस के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक टू-वे कम्युनिकेशन सिस्टम है जिससे मछुआरे अपने एंड्रॉयड फोन के जरिए 200 नौटिकल माइल तक से इमरजेंसी मैसेज या एसओएस भेज सकेंगे. साथ ही उन्हें मौसम और चक्रवात से जुड़े अलर्ट भी मिल सकेंगे. अगर कोई नाव इंटरनेशनल बॉर्डर पहुंचेगी तो ट्रांसपोंडर उन्हें तुरंत अलर्ट संदेश भेजेगा. इसके अलावा मछुआरों को पोटेंशियल फिशिंग जोन (पीएफजेड) की जानकारी भी मोबाइल पर मिलेगी.
ट्रांसपोंडर से नौकाओं के रूट (मार्ग) पर निगरानी रखी जा सकेग. अगर कोई संदिग्ध गतिविधि होती है, तो सुरक्षा एजेंसियां तुरंत कार्रवाई कर सकेंगी. यह सिस्टम IUU Fishing यानी गैर-कानूनी, अनरिपोर्टेड और अनियमित गतिविधियों को रोकने में भी मदद करेगी. इसरो के NavIV यानी नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेनेशन सैटेलाइट सिस्टम की मदद मछुआरों को रीयल-टाइम लोकेशन की जानकारी मिलेगी. अगर वो सीमा के करीब पहुंचेंगे तो उन्हें अलर्ट मैसेज मिलेगा ताकि वो समय रहते दिशा बदल सकें. अगर कोई मछुआरा गलती से सीमा पार कर जाता है, तो वह तुरंत अपना लोकेशन और स्थिति रिपोर्ट कर सकता है, जिससे उसके सुरक्षित वापसी की संभावना बढ़ जाती है.
ओडिशा में अब तक 1,000 से ज्यादा नावों पर ट्रांसपोंडर फिट हो चुके हैं. वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, दीव, गुजरात और आंध्र प्रदेश में भी स्थापना शुरू हो गई है. अब तक 3,500 से अधिक ट्रांसपोंडर लगाए जा चुके हैं. यह डिवाइस मछुआरों को फ्री मिल रही है. केंद्र और राज्य के बीच 60:40 फंडिंग और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 100 फीसदी केंद्रीय फंडिंग से मछुआरों को यह सुविधा दी जा रही है.
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