नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम डायलॉगनेक्स्ट 2025 में प्लांट वेरायटीज एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी के चेयरमैन डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने कहा कि भारत को जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) और जीन एडिटिंग, दोनों ही तकनीकों की जरूरत है. लेकिन, ऐसी किसी भी तकनीक को मंजूरी देते समय सबसे अहम कसौटी यह होनी चाहिए कि किसान को उसका सीधा फायदा कितना मिलेगा. पूर्व आईसीएआर महानिदेशक महापात्रा ने वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि वे किसी भी रिसर्च प्रोजेक्ट की शुरुआत करने से पहले किसानों से संवाद करें और यह समझना जरूरी है कि जिस तकनीक या अनुसंधान पर काम हो रहा है, उसका वास्तविक लाभ किसानों तक किस रूप में पहुंचेगा.
'बिजनेसलाइन' की रिपोर्ट के मुताबिक, महापात्रा ने कहा कि GM और जीन एडिटिंग दोनों बेहद शक्तिशाली तकनीकें हैं. अगर किसी पौधे में जरूरी जीन मौजूद नहीं है तो GM के जरिए वह जीन किसी अन्य स्रोत से लाकर लगाया जा सकता है. वहीं, अगर पौधे में जीन तो मौजूद है, लेकिन वह सही ढंग से काम नहीं कर रहा, तो उसे ठीक करने का सबसे बेहतर तरीका जीन एडिटिंग है. यह एक टारगेटेड अप्रोच है, जिससे जीन सीक्वेंस को बदलकर पौधे में वांछित गुण विकसित किए जा सकते हैं.
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो काम ट्रांसजेनिक तकनीक से किए जा सकते हैं, वही काम जीन एडिटिंग से भी संभव हैं. फर्क यह है कि जीन एडिटिंग के लिए किसी अन्य खाद्य फसल से भी जीन लिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में आज असीमित संभावनाएं हैं और लगातार नई-नई खोजें सामने आ रही हैं.
जीन एडिटिंग की खासियत बताते हुए महापात्रा ने कहा कि इससे मौजूदा जीन को एक बेहतर जीन से बदला जा सकता है. इतना ही नहीं, इस तकनीक के जरिए नए जीन भी जोड़े जा सकते हैं. सरकार ने हाल ही में जीन एडिटिंग से विकसित दो धान की किस्मों को मंजूरी दी है, जिनसे बेहतर उत्पादन की संभावना है, हालांकि इन्हें अभी व्यावसायिक स्तर पर जारी नहीं किया गया है.
कार्यक्रम की थीम ‘टेक इट टू द फार्मर्स’ रही, जो सरकार की "लैब टू लैंड" नीति से मेल खाती है. इस मौके पर CIMMYT और बोर्लॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया के महानिदेशक ब्रैम गोवार्ट्स ने कहा कि कृषि नवाचारों में भारत की भूमिका अहम है. इससे न सिर्फ उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि टिकाऊ कृषि और खाद्य प्रणाली में भी संतुलन आएगा.
वहीं, आईसीएआर के महानिदेशक मांगी लाल जाट ने कहा कि वैश्विक स्तर पर सामने आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए छोटे किसानों पर केंद्रित समाधान और उनका तेजी से क्रियान्वयन जरूरी है. इसके लिए अत्याधुनिक विज्ञान, नवाचार और साझेदारी में निवेश बढ़ाने की जरूरत है. भारत में कृषि परिवर्तन की गति काफी तेज है और यही कारण है कि देश छोटे किसानों के लिए ग्लोबल साउथ का इनोवेशन हब बन सकता है.
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