भारत में देसी गायों का विशेष महत्व है. लोग दूध के अलावा भावनात्मक रुप से भी इन गायों को पालना पसंद करते हैं. पिछले कुछ सालों से देश में देसी गायों की संख्या में तेजी से कमी देखने को मिली है. मध्य प्रदेश में इन गायों की नस्ल में सुधार और इनका संरक्षण करने के अनेक प्रयास किए जा रहे हैं. इसी तरह से IISER (Indian Institute of Science Education and Research, Bhopal) ने भारतीय गायों की नस्लों में सुधार करने के लिए ड्राफ्ट जीनोम सीक्वेंस तैयार किए हैं. जिसकी जानकारी मध्य प्रदेश के पशुपालन विभाग ने दी है. इस प्रयास से दूध उत्पादन में बढ़ाेतरी के साथ ही इन गायों के स्वास्थ्य सुधार को लेकर बड़ा काम होने की उम्मीद है.
देश में पशुपालन को बढ़ावा देने और देसी नस्ल की गायों में सुधार कर स्वस्थ पशुओं बढ़ाने के लिए IISER ने नस्ल सुधार करने के लिए ड्राफ्ट जीनोम सीक्वेंस तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने चार तरह की नस्लों को शोध के लिए चुना है, जिसमें से कासरगोड ड्वार्फ, वेचूर, ओगोंल और कासरगोड कपिला शामिल हैं.
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लोगों ने पशुओं या अन्य जीवों की नस्ल सुधार के बारे में कई बार सुना होगा. लेकिन, अधिकांश लोगों को जीनोम के बारे में जानकारी नहीं होगी. दरअसल किसी जीव के DNA में पाए जाने वाले सभी जीन की क्रमबद्धता (sequence) जीनोम कहा जाता है. ये जीनोम नया स्वस्थ जीव पैदा करने की क्षमता रखता है. जीनोम की जानकारी रखने वाले लोग जीव के बारे में कई तरह की जानकारी जुटा सकते हैं. जैसे जीव में पाई जाने वाली बीमारी या बीमारी के लक्षण और उन्हें ठीक किया जा सकता है.
जीनोम से होने वाले लाभ की बात करें तो यह विज्ञान की उन महान उपलब्धियों में से एक है. जहां न सिर्फ जीवों के स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकेगा. इस पद्धति से देसी गायों की नस्ल में सुधार होगा. इसके अलावा जीनोम और अन्य नस्लों के बीच जन्मे बच्चों के बीच अंतर का पता लगा कर बीमारियों के लक्षण का पता लगाया जाना संभव है. इससे स्वस्थ पशुधन को बढ़ाया जा सकेगा और दूध उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकेगा.
पशुपालन विभाग मध्य प्रदेश ने बताया कि में इस पद्धति को देसी गायों में पूरी तरह से उतारने का प्रयास किया जाएगा. इससे राज्य में स्वस्थ पशुओं की संख्या बढ़ेगी और दूध का उत्पादन भी बढ़ेगा.
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