हरियाणा के करनाल में नहीं जली पराली, सब्सिडी और सीडर मशीनें आईं काम

हरियाणा के करनाल में नहीं जली पराली, सब्सिडी और सीडर मशीनें आईं काम

हरियाणा के करनाल में किसान धीरे-धीरे पराली प्रबंधन को अपनाने लगे हैं. पराली प्रबंधन को देखते हुए किसान खासे उत्साहित भी हैं. वहीं, किसान  एक दूसरे से अपील कर रहे है कि पराली में आग लगाने की बजाए फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों को अपनाए, जो किसानों के हित में है.

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हरियाणा के करनाल में नहीं जली पराली, सब्सिडी और सीडर मशीनें आईं काम   पराली प्रबंधन तकनीक

हरियाणा के करनाल में किसान धीरे-धीरे पराली प्रबंधन को अपनाने लगे है, जो बड़ी राहत की बात है. क्योंकि धान  कटाई के समय पराली जलाने की घटनाएं एकाएक बढ़ जाती थी, हवा जहरीली हो जाती थी. यही नहीं दिन के समय ही प्रदूषण के चलते धुंध का गुबार छा जाता था, लेकिन इस बार ऐसा दिखाई नहीं दिया है, क्योंकि किसान फसल कटाई के साथ ही फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाने लगे हैं. यही नहीं जो पराली किसानों के लिए सिरदर्द बनी रहती थी, वो पराली अब किसानों की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को मजबूत बना रही है, जिससे किसान खासे उत्साहित हो रहे हैं, वहीं किसान भी एक दूसरे से अपील कर रहे है कि पराली में आग लगाने की बजाए फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों को अपनाए, जो किसानों के हित में है.

इन तकनीक से कर रहे पराली प्रबंधन

करनाल के झांझड़ी गांव में रहने वाले किसान राज कुमार ने बताया कि उसने अपनी फसल एसएमएस तकनीक से युक्त कम्बाइन से धान की कटाई करवाई है, जिससे पराली को बिल्कुल बारीक बन दिया है. इस तकनीक से धान कटाई के बाद ही खेत में दूसरी फसल के लिए खेत तैयार किया जा सकता है. उन्होंने कहा ये तकनीक बहुत कारगर है, जो किसानों के हित में है.

इस तकनीक से धान कटाई करवाने पर करीब 400 रुपये ज्यादा देने होते है, लेकिन इसके बहुत फायदे भी हैं. किसान को पराली की समस्या से निजात मिल जाती है, दूसरा पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता,  तीसरा खेत की  उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है. पराली सड़कर खेत की मिट्टी में मिल जाती है, जो धीरे-धीरे खाद का काम करती है और फसलों को फायदा पहुंचाती है.

कृषि यंत्रों पर दी जा रही 50 फीसदी सब्सिडी

पराली प्रबंधन की जानकारी देते हुए करनाल के कृषि उप निदेशक डॉ वजीर सिंह ने कहा जिले में अब तक 60 प्रतिशत धान की कटाई हो चुकी है, जिसमें से 40 फीसदी पराली का प्रबंधन किया जा चुका है. उन्होंने कहा पराली प्रबंधन करने के लिए जिला स्तर पर और खंड स्तर पर कृषि विभाग द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि किसानों को जागरूक किया जा सके.किसानों का बताया जा रहा है पराली जलाने की बजाय पराली का प्रबंधन करके उसकी गांठे बनाए. जिला प्रशासन द्वारा भी 400 से अधिक टीमें बनाई गई है जो किसानों को इस बारे में अवगत करवा रही हैं. वहीं, कृषि विभाग द्वारा भी 50 परसेंट की सब्सिडी कृषि यंत्रों पर दी जा रही है.

पराली नहीं जलाने पर मिलेंगे प्रति एकड़ 1200 रुपये 

कृषि अधिकारी ने बताया कि अगर कोई किसान पराली में आग नहीं लगता तो उसे 1200 प्रति एकड़ सब्सिडी दिया जाता है. उन्होंने कहा कि दो तरीके से पराली का प्रबंधन कर रहे हैं. पहला इन सीटू मैनेजमेंट जिसका मतलब पराली को खेतों में मिलाना है.इस तकनीक से किसानों को बहुत फायदा होता है.किसानों की जमीन का पोषण तत्व बढ़ता है. इसके साथ विभाग द्वारा कृषि यंत्र पर 50 फीसदी की सब्सिडी राशि भी दी जा रही है. वहीं, दूसरी तकनीक है एक्सी टू सटाब मैनेजमेंट इसका मतलब है जो पराली के अवशेष है उसको खेतों से बाहर मैनेज करना.

सुपर सीडर मशीन किसानों के लिए लाभकारी

करनाल के किसान संदीप कुमार जो भैणी खुर्द के रहने वाले हैं उन्होंने बताया कि वो सुपर सीडर का इस्तेमाल करके पराली को खेतों में ही दबवा रहे है, जिससे भूमि की ऊपजाऊ शक्ति बढ़ती है. उन्होंने कहा कि सुपर सीडर मशीन किसानों के लिए लाभकारी बनकर सामने आई है. इस मशीन से काफी समस्याओं का समाधान हो गया है, जिसके लिए पहले किसान काफी परेशान रहते थे, लेकिन इस तकनीक से काफी फायदे मिल रहे हैं. किसान ने अन्य किसानों से अपील करते हुए कहा कि जितना भी हो सके किसान सुपर सीडर का इस्तेमाल करें. इससे किसानों के खेतों की जान भी बनी रहेगी और प्रदूषण भी नहीं फैलेगा. उन्होंने कहा इस बार पराली जलाने के मामले अब तक सामने नहीं आए हैं.

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