खेती को एक स्थायी रोजगार और लाभकारी व्यवसाय बनाने के उद्देश्य से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली ने समन्वित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System IFS) मॉडल विकसित किया है. यह तकनीक किसानों को सालभर स्थिर आमदनी देने के साथ-साथ पेंशन जैसी सुरक्षा भी प्रदान करती है. इस मॉडल के तहत किसान केवल एक प्रकार की फसल पर निर्भर न रहकर कृषि के एक एकड़ या एक हेक्टेयर खेत में वानिकी, बागवानी, पशुपालन, मुर्गी और बतख पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम पालन, मछली पालन, सब्जी और फसल उत्पादन को शामिल करते हैं जिससे उनकी आय के स्रोत कई स्तरों से निरंतर बने रहते हैं.
अगर कोई युवा किसान इस समय एक एकड़ या एक एक हेक्टेयर में तकनीक अपनाता है तो वानिकी में शीशम, सागौन, पॉपलर जैसे मूल्यवान वृक्षों की खेती कर सकता है जिनकी कटाई से 15 से 20 गुना लाभ मिलता है. जब किसान उम्रदराज हो जाता और खेतों के बीच में फल बागवानी जैसे आम, अमरूद, लीची, सहजन जैसे फलदार वृक्षों की खेती करता है तो हर साल बोनस जैसी आय होती है. साथ में पशुपालन जैसे गाय, भैंस, बकरी पालन से दूध और अन्य डेयरी उत्पादों की निरंतर आपूर्ति बनी रहती है. मुर्गी और बतख पालन से अंडे और मांस के रूप में अतिरिक्त आमदनी होती रहती है. साथ ही मधुमक्खी पालन, मछली पालन, मशरूम उत्पादन से निरंतर आमदनी होती रहती है. इसके अलावा सब्जियों की फसलों जैसे धान, गेहूं, दलहन, तिलहन जैसी फसलों की खेती को इस मॉडल में फिट कर दिया जाता है.
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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली में एग्रोनॉमी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि इस मॉडल से किसान को पूरे साल आमदनी होती रहती है. उन्होंने कहा कि किसी एक फसल के खराब होने पर भी दूसरे स्रोतों से आमदनी बनी रहती है. पशुपालन से प्राप्त खाद भूमि की उर्वरता बढ़ाती है, जबकि कृषि अवशेष पशुओं के चारे के रूप में उपयोग होते हैं. मछली पालन और बतख पालन के लिए तालाब का इस्तेमाल सिंचाई और दूसरे काम के लिए किया जाता है. वानिकी से 15-20 वर्षों में लकड़ी की बिक्री से पेंशन जैसी स्थायी आय मिलती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के अनुसार, एक हेक्टेयर भूमि पर पारंपरिक खेती करने वाले किसान की सालाना आय लगभग 1.5-2 लाख रुपये होती है. यदि वही किसान IFS मॉडल अपनाता है, तो यह आय 4-5 लाख रुपये तक पहुंच सकती है, जो पारंपरिक खेती से 3-5 गुना अधिक है.
डॉ. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि इस मॉडल के लिए जल स्रोत का होना जरूरी है. इसके तहत खेत में ही तालाब बनाया जाता है जिससे सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध रहता है. मछली और बतख पालन संभव होता है. जल स्रोत के आसपास लताओं वाली सब्जियों और फलों की खेती संभव होती है. इस तरह यह मॉडल स्थायी और विविध आय के स्रोत के साथ कम लागत में अधिक मुनाफा देता है. इसमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सदुपयोग, जैव विविधता का संरक्षण और पर्यावरण संतुलन होता है, किसानों की आत्मनिर्भरता में वृद्धि होती है. यह आइएआरआई पूसा ने मॉडल विकसित है जिसको किसान जाकर देख सकते हैं. इस मॉडल को देशभर के कई किसान अपनाकर अधिक लाभ कमा रहे हैं.
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