AI ने खेती को अब काफी आसान बना दिया है और किसानों को मज़बूत किया है. मिसाल के तौर पर, तेलंगाना के ‘सागु बागु’ प्रोजेक्ट में 7,000 मिर्च किसानों ने AI चैटबॉट से सलाह ली और पैदावार को 21% बढ़ा दिया. ये तकनीक मौसम का हाल बताती है, मिट्टी की सेहत चेक करती है, और बीमारियां भी पकड़ लेती है. पहले मिट्टी की जांच के लिए लैब जाना पड़ता था, लेकिन अब AI डेटा से बता देता है कि कितनी खाद चाहिए.
महाराष्ट्र में ‘कृषि तंत्र’ ने AI से मिट्टी टेस्ट करके खाद का सही इस्तेमाल सिखाया, जिससे फसल 15-20% बढ़ गई. आंध्र प्रदेश में माइक्रोसॉफ्ट का AI ऐप मौसम देखकर बुआई का सही वक्त बताता है, जिससे पैदावार 30% तक बढ़ गई. सरकार भी इसपर जोर दे रही है. उत्तर प्रदेश में ‘किसान ड्रोन’ योजना के तहत ड्रोन खेतों की देखभाल करते हैं, जिससे मेहनत 40% कम हुई है और फसल 15% बढ़ी.
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हाल ही में बारामती, महाराष्ट्र के गन्ना किसानों ने माइक्रोसॉफ्ट की एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना शुरू किया. इसमें किसान खेत में एक मेटल स्ट्रक्चर लगाते हैं, जिससे मौसम और मिट्टी की क्वालिटी का पता लगता है. किसानों को mobile app पर रोजाना alerts मिलते हैं. इसे बड़े ही नहीं छोटे किसान भी आसानी से अपना रहे हैं, क्योंकि इसके लिए बस एक फोन चाहिए. अब सब कुछ बदल रहा है, या ये कहें कि AI अब दुनिया बदल रहा है. आइए समझते हैं कृषि की दुनिया में ये बदलाव कहां और कैसे हो रहा है.
तेलंगाना सरकार ने 2021 में "सागु बागु" नाम का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसमें 7,000 मिर्च किसानों को AI टूल्स दिए गए. इसमें डिजिटल ग्रीन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने साथ दिया. इसके लिए एक Whatsapp chatbot बनाया गया जो तेलुगु में किसानों को फसल के हर स्टेज पर सलाह देता था, कि कब पानी देना है, कब कीटनाशक डालना है, वगैरह.
साथ ही, AgNext नाम की कंपनी ने कंप्यूटर विजन से मिर्च की क्वालिटी चेक की, जैसे रंग, साइज़ और खराबी. इसका नतीजा ये निकला कि 18 महीने में किसानों की पैदावार प्रति एकड़ 21% बढ़ी, कीटनाशक 9% और खाद 5% कम लगी. उनकी आमदनी भी प्रति एकड़ करीब 66,000 रुपये बढ़ गई. अब इसे 5 लाख किसानों तक ले जाने की योजना है. ये दिखाता है कि AI छोटे किसानों के लिए भी सस्ता और कारगर हो सकता है.
2016 में माइक्रोसॉफ्ट और ICRISAT ने मिलकर एक AI ऐप बनाया, जिसे आंध्र प्रदेश के 175 किसानों ने टेस्ट किया. ये ऐप पिछले 30 साल के मौसम का डेटा, मिट्टी की जानकारी और बारिश के पैटर्न को देखकर बताता था कि बीज कब बोना चाहिए. किसानों को सलाह SMS के जरिए तेलुगु भाषा में भेजी जाती थी. इसका नतीजा ये आया कि जिन किसानों ने इस ऐप का इस्तेमाल किया, उनकी पैदावार 30% तक बढ़ गई. सही वक्त पर बोआई से बीज और खाद की बर्बादी भी घटी. ये साबित करता है कि AI के लिए बड़े गैजेट्स की ज़रूरत नहीं, एक साधारण फोन भी काफी है.
क्रॉपइन एक भारतीय स्टार्टअप है जो पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में किसानों के साथ काम करता है. इसके ‘Smart farm’ सॉफ्टवेयर में सैटेलाइट डेटा और मौसम के Prediction से खेतों की निगरानी होती है. ये बताता है कि फसल की सेहत कैसी है, कीटों का खतरा है या नहीं, और फसल को कितना पानी चाहिए. इस तकनीक से नतीजा ये निकला कि किसानों को रियल-टाइम अलर्ट मिलने से फसल का नुकसान 20-30% कम हुआ और पैदावार बढ़ी. बड़े व्यापारियों को भी इससे फसल की ट्रेसबिलिटी मिली. ये मॉडर्न और ट्रेडिशनल खेती के fusion का एक अच्छा उदाहरण है.
प्लांटिक्स एक जर्मन ऐप है, जिसे भारत में लाखों छोटे किसान इस्तेमाल करते हैं. किसान अपने फोन से फसल की फोटो खींचकर अपलोड करते हैं. AI तस्वीर देखकर बीमारी या कीट का पता लगाता है और इलाज सुझा देता है. इस app का इस्तेमाल करने का नतीजा ये हुआ कि शुरुआती स्टेज पर ही समस्या पकड़ने से, फसल का नुकसान 50% तक कम हुआ. इससे मिट्टी की सेहत सुधारने की सलाह भी मिलती है. इसकी सबसे बात ये है कि इसका इस्तेमाल करने के लिए किसानों को सिर्फ एक फोन की ज़रूरत पड़ती है.
कृषि तंत्र एक भारतीय स्टार्टअप है जो महाराष्ट्र में किसानों की मदद के लिए काम करता है, खासकर मिट्टी की जांच और खेती को बेहतर बनाने के लिए. इसे 2018 में शुरू किया गया था. कृषि तंत्र AI और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके मिट्टी की टेस्टिंग करता है. इसके लिए महाराष्ट्र में AI बेस्ड सेंटर्स बनाए गए. यहां किसान अपनी मिट्टी का सैंपल देते हैं, और AI डेटा से सही सलाह देता है जैसे किसानों को बताता है कि उनकी मिट्टी में क्या कमी है और कितनी खाद या पानी चाहिए. इससे नतीजा ये आया कि महाराष्ट्र में मिट्टी की सेहत बेहतर हुई और किसानों की पैदावार 15-20% तक बढ़ी. साथ ही, ज़रूरत से ज़्यादा खाद डालने की आदत कम हुई, जिससे पैसे और पर्यावरण दोनों की बचत हुई. ये खास तौर पर छोटे किसानों के लिए बनाया गया है, जो लैब टेस्ट का खर्चा नहीं उठा सकते.
पंजाब के कुछ किसानों ने एक स्टार्टअप, फास्टैग के साथ मिलकर AI बेस्ड ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया. ये प्रोजेक्ट 2022 में शुरू हुआ था. इसमें ड्रोन खेतों की हवाई तस्वीरें लेते हैं और AI उनकी मदद से फसल की सेहत, पानी की कमी, या कीटों की मौजूदगी का पता लगाता है. साथ ही, ये ड्रोन सटीक मात्रा में कीटनाशक या खाद का छिड़काव भी करते हैं. इस तकनीक की मदद से कीटनाशक का इस्तेमाल 30% तक कम हुआ और पानी की बर्बादी भी 25% घटी. किसानों ने बताया कि उनकी फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ और लागत भी कम हुई. ये छोटे किसानों के लिए तकनीक का सस्ता और प्रैक्टिकल इस्तेमाल दिखाता है.
नीति आयोग ने 2021 में डिजिटल एग्री स्टैक नाम का एक प्लेटफॉर्म लॉन्च किया था, जिसमें AI का बड़ा रोल है. ये कई राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है. ये प्लेटफॉर्म सैटेलाइट डेटा, मौसम की जानकारी और मिट्टी के टेस्ट को मिलाकर किसानों को फसल चुनने, बोने का सही वक्त बताने और बाजार की कीमतों का अंदाज़ा देने में मदद करता है. इससे किसानों को अपनी फसल बेचने का सही वक्त पता चला, जिससे उनकी आय में 15-20% की बढ़ोतरी हुई. खासकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ये असर देखा गया.
2023 में उत्तर प्रदेश सरकार ने "किसान ड्रोन" योजना शुरू की, जिसमें हजारों किसानों को सब्सिडी पर ड्रोन दिए गए. इन ड्रोन्स में AI सॉफ्टवेयर है जो खेतों की मैपिंग करता है और फसल की ग्रोथ, पानी की ज़रूरत, और बीमारियों की पहचान करता है. साथ ही, ये सही जगह पर स्प्रे भी करता है. इसकी नतीजा ये आया कि प्रति एकड़ पैदावार में 10-15% की बढ़ोतरी हुई और मैनुअल लेबर की ज़रूरत 40% तक कम हुई. गांवों में ये प्रोजेक्ट अब तेज़ी से फैल रहा है.
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एग्रोस्टार एक भारतीय एग्रीटेक कंपनी है, जो गुजरात और राजस्थान के किसानों के साथ 2020 से काम कर रही है. इसका मोबाइल ऐप AI की मदद से किसानों को उनकी फसल के हिसाब से सलाह देता है. जैसे कौन सा बीज चुनें, कब खाद डालें, और मौसम के हिसाब से क्या करें. ये लोकल भाषाओं में काम करता है. 3 लाख से ज़्यादा किसानों ने इसे यूज़ किया और उनकी पैदावार में औसतन 20% का इज़ाफा हुआ. लागत भी 10-15% कम हुई. ये मोबाइल बेस्ड AI का आसान और स्केलेबल उदाहरण है.
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) ने तमिलनाडु में 2022 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसके तहत AI मॉडल्स का यूज़ करके कीटों की पहचान और उनके हमले की भविष्यवाणी की गई. इसमे डेटा सैटेलाइट और लोकल सेंसर्स से लिया गया था. इससे फायदा ये हुआ कि कीटों से होने वाला नुकसान 35% तक कम हुआ और जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल भी घटा.
ड्रोन से लेकर मोबाइल ऐप्स तक, और सरकारी प्रोजेक्ट्स से लेकर प्राइवेट स्टार्टअप्स तक, AI अब पुराने तरीकों को नया रंग दे रहा है, ताकि किसानों की मेहनत और कमाई दोनों बढ़ सकें.(पारूल चंद्रा की रिपोर्ट)
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