खेती में अगर न्यूक्लियर और रेडिएशन टेक्निक का इस्तेमाल करें तो उपज की मात्रा आसानी से बढ़ाई जा सकती है. एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में कृषि से जुड़े विशेषज्ञों ने यह बात कही. न्यूक्लियर और रेडिएशन टेक्निक का फायदा न सिर्फ उपज बढ़ाने में मिल सकता है, बल्कि उपजों के सुरक्षित स्टोरेज में भी इसे आजमा सकते हैं. उपज का स्टोरेज सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी से खाद्य सुरक्षा तय होती है. केरल के कोच्चि में चार दिन का 'एनआईसी-स्टार 2023' कॉन्फ्रेंस आयोजित किया गया था जिसमें रेडिएशन टेक्नोलॉजी पर विस्तार से चर्चा की गई.
इस कॉन्फ्रेंस में 'नेशनल एसोसिएशन फॉर एप्लिकेशन्स ऑफ रेडियोआइसोटोप्स एंड रेडिएशन इंडस्ट्री' (NAARRI) के सेक्रेटरी पीजे चांडी ने कहा, भारत में फसलों का उत्पादन कम होने के पीछे चार प्रमुख वजहें हैं. किसी खास स्थान पर फसल की कौन सी वेरायटी लगाई जाए उसकी उपलब्धता नहीं होने से उपज कम होती है. खेती के तौर-तरीकों में गड़बड़, पानी की कमी और कीट-बीमारियों से फसलों का नुकसान बड़ी वजहें हैं.
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फसल कटाई और उपज निकलने के बाद उसे सुरक्षित तरीके से रखना भी बड़ी चुनौती है. इस तरह की कई समस्याओं से छुटकारा दिलाने में न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी मददगार साबित हो रही है. इस दिशा में काम करते हुए मुंबई स्थित भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने रेडिएशन की मदद से म्यूटाजेनेसिस और क्रॉस ब्रिडिंग कराकर अलग-अलग फसलों की 56 वेरायटी तैयार की है. फसलों की इन किस्मों से किसान व्यावसायिक खेती कर सकते हैं.
इन नई किस्मों में 16 किस्में मूंगफली की, मूंग दाल की आठ किस्में, सरसों की आठ किस्में, चावल की सात किस्में, अरहर और उड़द की पांच वेरायटी, लोबिया और सोयाबीन की दो किस्में तैयार की गई हैं. अलसी के बीज, सूरजमुखी और जूट की एक-एक किस्में तैयार की गई हैं. इन किस्मों में रेडिएशन टेक्निक से कई क्वालिटी विकसित की गई हैं. ये नई किस्में ज्यादा उपज देने वाली और बीज में बड़े आकार की हैं. इन किस्मों से जल्द फसल तैयार होगी और कीट-बीमारियों का प्रकोप कम होगा.
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मौसमी और जलवायु में बदलाव को देखते हुए देश में ऐसी किस्मों की जरूरत है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी उपज दे सकें. कम पानी में फसल हो सके और कीटों-बीमारियों से नुकसान कम हो. इन सभी बातों पर ध्यान रखते हुए वैज्ञानिक रेडिएशन और न्यूक्लियर टेक्निक से फसलों की किस्में तैयार कर रहे हैं. भाभा एटॉमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बीम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर चावल, चना और ग्वार फली की किस्में इजाद की हैं.
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