
Future Farming: भारत दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन चुका है. जबकि यहां कृषि योग्य जमीन लगातार घट रही है. ऐसे में बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए कृषि क्षेत्र के सामने चुनौतियां बढ़ रही हैं. ऐसे में अब समय की मांग यह है कि हम खेती-किसानी के नए तौर-तरीकों को विकसित करें और उसे किसान अपनाएं. जिससे कम जमीन में अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सके. ऐसी ही नई तकनीक हैं हाइड्रोपोनिक, एरोपोनिक, वर्टिकल फार्मिंग और टिश्यू कल्चर. महाराष्ट्र यात्रा के दौरान मुझे जलगांव स्थित जैन इरीगेशन में इन सभी कृषि तकनीकों को नजदीक से देखने और समझने का मौका मिला. वैज्ञानिक अनिल ढाके ने बताया कि आज के दौर में खेती-किसानी में क्यों नई तकनीक जरूरी है.
ढाके ने 'किसान तक' से बातचीत में कहा कि जब देश आजाद हुआ था उस वक्त हम 35 करोड़ लोग थे लेकिन अब 135 करोड़ से अधिक जनसंख्या है. पहले एक-एक किसान परिवार के पास 20-20 बीघा जमीन थी लेकिन आज दो बीघा भी नहीं है. परिवार बढ़ रहे हैं और जमीन घट रही है. जबकि हम खेती प्रधान देश हैं. यहां की ज्यादातर जनसंख्या खेती पर ही निर्भर है. ऐसे में हमारे लिए हाइड्रोपोनिक (Hydroponics), एरोपोनिक (Aeroponics) और वर्टिकल फार्मिंग (Vertical Farming) अच्छा रास्ता हो सकता है. जिसमें हम कम जगह में अधिक और कभी भी किसी भी फसल का उत्पादन ले सकते हैं. यही फ्यूचर फार्मिंग है.
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अनिल ढाके ने कहा कि जैसे घरों के लिए हाईराइज बिल्डिंगों का निर्माण हो रहा है वैसे ही अब खेती के लिए कम हो रही जमीन को देखते हुए वर्टिकल फार्मिंग की जरूरत है. इस तरह की खेती में एक ही जगह पर हम स्ट्रॉबेरी, हल्दी और दूसरी कई सब्जी और फल वाली फसलें ले सकते हैं. कम जगह पर ज्यादा से ज्यादा फसल लेने का यही तरीका है. इससे फसल अच्छी होती है और कीटों का अटैक नहीं होता. बढ़ती जनसंख्या, शहरों, उद्योगों के विस्तार और घरों में बंटवारे की वजह कृषि योग्य जमीन घट रही है.
ढाके ने कहा कि जलवायु परिवर्तन इस समय की सच्चाई है. बिना मौसम बारिश हो रही है. गर्मी बढ़ रही है और ठंड का समय कम हो रहा है. कभी भी बारिश हो रही है, कभी भी ओलावृष्टि हो रही है. मौसम पल-पल बदल रहा है. ऐसे में फसलें खराब हो रही हैं और किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस हालात को न किसान बदल सकते हैं और न सरकारें. इसलिए अब एक रास्ता यह है कि किसान स्मार्ट बनें. स्मार्ट फार्मिंग करें. यही भविष्य में काम आएगा.
छोटा सा ग्रीन हाउस बनाकर किसान उसमें तापमान और उमस को अपने हिसाब से कंट्रोल कर सकता है और किसी भी सीजन में कोई भी फसल सब्जी का उत्पादन कर सकता है. ग्रीन हाउस में अब केला, आम, अनार और अमरूद का पेड़ भी लगा सकते हैं. इसमें कीटों के अटैक का भी कोई डर नहीं रहता. किसानों को एक समय खर्च करना पड़ेगा और उसके बाद कई साल तक वो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. ग्रीन हाउस बनाने के लिए सरकार सब्सिडी दे रही है. किसान उसका फायदा उठा सकते हैं.
यह खेती की एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जिसमें पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है. बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिए खेती होती है. इसमें फसल उत्पादन के लिए सिर्फ तीन चीजें चाहिए होती हैं. पानी, पोषक तत्व और प्रकाश. इसे बिना मिट्टी के उपलब्ध करवाया जाता है. इसमें पौधों के लिए सभी जरूरी खनिज और उर्वरक पानी के जरिए दिए जाते हैं. इसी को हाइड्रोपोनिक्स तकनीक कहते हैं.
इस तकनीक के जरिए तापमान 15-30 डिग्री और आर्द्रता 80-85 फीसदी के बीच रखकर खेती की जाती है. इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले किसान टमाटर, लौकी, खीरा, स्ट्राबेरी और शिमला मिर्च जैसी फसलों को ज्यादा उगा रहे हैं. इसमें खेती की पारंपरिक तकनीकों की तुलना में कम खर्च होता है.
इस तकनीक में बंद या आधा बंद वातावरण में पौधों को बिना मिट्टी के विकसित कर दिया जाता है. इसका मतलब यह है कि एरोपॉनिक खेती की एक ऐसी तकनीक है जिसमें खेती मिट्टी की मोहताज नहीं है. इसमें बिना मिट्टी के हवा में पौधे उगाए जाते हैं. इस तकनीक में लटकती हुई जड़ों के जरिए से पौधों को पोषण दिया जाता है या यूं कहें कि पोषक तत्वों से भरपूर पानी को उसकी जड़ों पर छिड़का जाता है. तब फसल होती है. कृषि वैज्ञानिक अनिल ढाके का कहना है कि एरोपोनिक की मदद से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती हो रही है. कम लागत में आलू की ज्यादा फसल उगाई जा रही है.
हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक में एक बड़ा अंतर है. इसे भी समझ लेना जरूरी है. हाइड्रोपोनिक में पौधों को पूरे समय पानी में रखा जाता है, जबकि एरोपोनिक में पानी स्प्रे करके जड़ों को पोषक तत्व दिए जाते हैं. एरोपोनिक में आलू के पौधे को एक बंद वातावरण में उगाया जाता है, जिसमें पौधा ऊपर की ओर रहता है और जड़ें नीचे की और अंधेरे में होती हैं.
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