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फसलों में 50 परसेंट पानी का खर्च कम कर देगा यह सॉफ्टवेयर, कम समय में पूरा होगा सिंचाई का काम

फसलों में 50 परसेंट पानी का खर्च कम कर देगा यह सॉफ्टवेयर, कम समय में पूरा होगा सिंचाई का काम

तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने कोयंबटूर जिले के वेलिंगाडू गांव में हल्दी की फसल पर स्टडी की है. स्टडी में पाया गया कि इस फसल में दो दिन में दो घंटे सिंचाई की गई, लेकिन जब सॉफ्टवेयर की मदद ली गई तो एक दिन में 30 से 45 मिनट तक पानी देने की जरूरत पड़ी. इस तरह फसल में लगभग 50 फीसद तक पानी की बचत देखी गई.

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सॉफ्टवेयर की मदद से पानी बचाने में मिलेगी मदद (सांकेतिक तस्वीर) सॉफ्टवेयर की मदद से पानी बचाने में मिलेगी मदद (सांकेतिक तस्वीर)

गुजरात एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने किसानों के लिए बड़ा काम किया है. इस प्रोफेसर ने ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है जो फसलों में पानी और ऊर्जा की जरूरत को 50 फीसद तक कम कर देता है. यह सॉफ्टवेयर एक साथ कई अलग-अलग फसलों के लिए बराबर काम करता है. इस सॉफ्टवेयर को एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है क्योंकि बड़े पैमाने पर पानी की बचत हो सकेगी. साथ ही, ऊर्जा की जरूरतों को भी कम किया जा सकेगा. कुल मिलाकर, खेती-बाड़ी में किसानों का खर्च बचेगा और उनकी कमाई बढ़ेगी. गुजरात के इस रिटायर्ड प्रोफेसर का नाम है डॉ. एस रमन.

डॉ. रमन का बनाया सॉफ्टवेयर मुख्य तौर पर सूक्ष्म सिंचाई, खासकर ड्रिप सिंचाई की पद्धति पर आधारित है. ड्रिप सिंचाई से किसानों को बड़े पैमाने पर पानी बचाने में मदद मिलती है क्योंकि इस पद्धति से पौधों को उतना ही पानी दिया जाता है, जितने की उसे जरूरत होती है. डॉ. रमन के बनाए सॉफ्टवेयर पर तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने एक स्टडी भी की है. स्टडी में कई नई बातें निकल कर सामने आई हैं.

डॉ. रमन ने सॉफ्टवेयर के बारे में 'बिजनेसलाइन' से कहा, तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने कोयंबटूर जिले के वेलिंगाडू गांव में हल्दी की फसल पर स्टडी की है. स्टडी में पाया गया कि इस फसल में दो दिन में दो घंटे सिंचाई की गई, लेकिन जब सॉफ्टवेयर की मदद ली गई तो एक दिन में 30 से 45 मिनट तक पानी देने की जरूरत पड़ी. इस तरह फसल में लगभग 50 फीसद तक पानी की बचत देखी गई.

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खास बात ये है कि कम पानी में भी फसल में अच्छी ग्रोथ देखी गई. पूरे खेत में पौधों को पानी मिला, लेकिन पानी की अधिकता नहीं रही. इससे पानी की बर्बादी को रोकने में मदद मिली. कोयंबटूर के इसी गांव में केले पर भी इस सॉफ्टवेयर की स्टडी की गई. केले की सिंचाई 50 परसेंट तक घट गई और सिंचाई का काम हर दिन कर दिया गया. यह प्रयोग जी-9 केले की किस्म पर किया गया. प्रयोग में देखा गया कि यह केला पहले एक पौधे से 30 किलो पैदावार देता था, वह बढ़कर 40 किलो पर पहुंच गया.

डॉ. रमन ने कहा कि इस खास सॉफ्टवेयर को सूक्ष्म सिंचाई के लिए बनाया गया है. यह सॉफ्टवेयर यह बताता है कि किसी पौधे को कब और कितने पानी की जरूरत है. सॉफ्टवेयर किसानों को यह बताता है कि फसल की ग्रोथ के अलग-अलग स्टेज में उसे पानी की कितनी मात्रा चाहिए. फिर किसान उसी मात्रा के हिसाब से ड्रिप सिंचाई कर सकता है. 

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पौधों में पानी की जरूरत इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसे खुले में उगाया जा रहा है या ग्रीन हाउस में. यह सॉफ्टवेयर इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी खास जिले का मौसम कैसा है और उस मौसम के हिसाब से पौधों को कितना पानी चाहिए. अगर जिला सूखा वाला है तो वहां पौधों की पानी अधिक जरूरत होगी, अगर नमी वाला इलाका हो तो कम पानी की खपत होगी. इस सॉफ्टवेयर की मदद से 65-70 फसलों में सिंचाई की सुविधा ली जा सकती है.

अगर किसी दिन बारिश हुई है, तो यह सॉफ्टवेयर बता देता है कि पौधे को कम पानी की जरूरत होगी. सॉफ्टवेयर की मदद से पानी बचाने के साथ ही ऊर्जा की भी बचत होगी और उस ऊर्जा को सरकार चाहे तो दूसरे सेक्टर में इस्तेमाल कर सकती है.