
भीतरी बांध गांव के लोग 'किसान तक' से बात करते हुएआज के इस डिजिटल युग में लगभग हर किसी के पास स्मार्टफोन है और एक स्थान से देश-दुनिया की जानकारी के साथ कृषि, सरकारी योजना एवं अन्य सूचना मोबाइल स्क्रीन पर मिल जाता है. लेकिन आप सोचिए जिस गांव में मोबाइल नेटवर्क नाम मात्र का हो, वहां के लोग कृषि से जुड़ी योजनाओं की जानकारी कैसे हासिल कर सकते हैं. कैमूर जिले का एक ऐसा ही गांव है भीतरी बांध जहां इंटरनेट छोड़िए फोन पर बात तक सही ढंग से नहीं हो पाती है. कैमूर की पहाड़ी श्रृंखला के दुर्गावती जलाशय से सटे भीतरी बांध गांव के लोग घर से एक-दो किलोमीटर दूर जाकर फोन पर बात करते हैं. वहीं किसान तक की टीम भी वास्तविकता को जानने के लिए जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर पहाड़ों की गोद में बसे रामपुर प्रखंड के भीतरी बांध गांव तक पहुंची. हमने यह समझने का प्रयास किया कि मोबाइल नेटवर्क ठीक ना होने से ग्रामीणों को कितनी दिक्कत हो रही है. आधुनिक दौर में कृषि के क्षेत्र में कितना प्रभाव पड़ रहा है.
आपको बता दें कि भीतरी बांध गांव को सरकार इको फ्रेंडली बनाने की कवायद कई सालों से कर रही है, लेकिन वहां की जमीनी हकीकत काफी अलग है. इस गांव की आबादी करीब 1500 के आसपास है. यहां जीविकोपार्जन का मुख्य माध्यम खेती है.

जिला मुख्यालय भभुआ से भीतरी बांध गांव तक की सड़कें काफी अच्छी हैं, लेकिन गांव में बेहतर ढंग से मोबाइल टावर काम नहीं करने से लोगों को काफी परेशानियां होती हैं. इस गांव के रहने वाले जितेंद्र यादव कहते हैं कि गांव में मोबाइल नेटवर्क एवं सिंचाई की व्यवस्था सही नहीं होने से आधुनिक दुनिया में रहने के बाद भी वो अलग-थलग पड़े हैं. अगर कोई इमरजेंसी कार्य पड़ गया तो फोन नहीं लगेगा. इस गांव में करीब 60 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्टफोन है. लेकिन नेटवर्क की समस्या होने के चलते गांव में खिलौना के अलावा कुछ नहीं है. वहीं कृषि से जुड़ी कोई भी जानकारी नहीं मिल पाती है. अगर खेत में मजदूर लगे हैं और किसी चीज की घर पर जरूरत होती है, तो फोन से बात तक नहीं हो पाती है. वापस घर ही आना पड़ता है. वहीं 18 वर्षीय एक युवक का कहना है कि उसके मोबाइल पर पढ़ाई से जुड़ी कोई जानकारी हासिल करने के लिए तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. तब जाकर कोई जानकारी मिल पाती है. 55 वर्षीय कमलापति पासवान कहते हैं कि उनका गांव नेटवर्किंग से पूरी तरह टूट चुका है. बच्चे घर पर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. आज के समय में मोबाइल से हर क्षेत्र की खबर मिनटों में मिल जाती है. लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है.
भीतरी बांध गांव के करीब 90 प्रतिशत से अधिक लोगों का रोजगार का माध्यम खेती है. यहां बड़े पैमाने पर बैगन की खेती की जाती है और धान व गेहूं की भी खेती होती है, लेकिन गांव के पास से गुजरने वाली नहर जमीन से 40 फिट गहरा होने से पानी खेत तक नहीं पहुंच पाता है. जिसके चलते करीब हजारों एकड़ की सिंचाई मशीन से की जाती है. कमलापति पासवान कहते हैं कि कहने को तो ये नहर मेरे गांव के पास से होकर गुजरती है. लेकिन इसका लाभ गांव के लिए कुछ नहीं है. आज भी नहर में पाइप डालकर मशीनों की मदद से खेत तक पानी पहुंचाया जाता है. हालत ये है कि खाद नहीं मिलने से गेहूं की फसल खराब हो रही हैं. सरकार हर किसी को नेटवर्किंग के साथ जोड़कर आगे ले जाने की बात कर रही है. लेकिन जिस गांव में टावर ही नहीं है. वहां के बच्चे और किसान कौन सी आधुनिक दुनिया से जुड़ेंगे. इसी गांव के रहने वाले एक वृद्ध का कहना है कि कृषि से जुड़ी कई योजनाएं सरकार के द्वारा चलाई जा रही हैं, लेकिन किसी को उसकी जानकारी नहीं है. यहां कृषि विभाग से जुड़े अधिकारी तक नहीं आते हैं. जिला तक जिनकी पहुंच है. वे लाभ लेते हैं.

भीतरी बांध गांव के सिवान में हमारी मुलाकात हुई किसान मनोज सिंह से. वह 2 बीघे में बैंगन की खेती परंपरागत तरीके से कर रहे हैं. ये कहते हैं कि अगर सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी मिले और उसका लाभ मिले, तो वह कुछ अलग खेती कर सकते हैं. वहीं जब उनसे टपक सिंचाई के बारे में पूछा गया तो वे इस नाम से अपरिचित थे. जब उन्हें बताया गया. तब उन्होंने कहा कि इस योजना का लाभ मिल जाए, तो सिंचाई अच्छी तरह से होगी. पहाड़ी क्षेत्रों की जमीन एक बराबर नहीं है. आखिर में वह कहते हैं कि उनके खाते में प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना का पैसा तक नहीं आता है.
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