भारत की मूंगफली में एफ्लाटॉक्सिन की मात्रा तय स्टैंडर्ड से ज्यादाआपको भी मूंगफली खाते वक्त मुंह में कभी कड़वा दाना आया है? अगर हां तो ये आपके लिए शायद सामान्य बात होगी, मगर इसी एक कारण की वजह से इंडोनेशिया ने भारत से मूंगफली के आयात को बैन कर दिया है. ये आदेश इंडोनेशिया ने इस साल 27 अगस्त को जारी किया था जो 3 सितंबर से लागू हो गया है. इस आदेश के मुताबिक, इंडोनेशिया की क्वारंटाइन अथॉरिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत से आने वाली मूंगफली में एफ्लाटॉक्सिन की मात्रा तय स्टैंडर्ड से कहीं ज्यादा है. इसलिए भारत से इसका आयात बंद कर दिया है. अब आप कहेंगे कि एफ्लाटॉक्सिन का कड़वी मूंगफली से क्या संबंध है. तो असल में मूंगफली का दाना इस एफ्लाटॉक्सिन की वजह से ही कड़वा होता है.
दरअसल, एफ्लाटॉक्सिन एक जहरीला कंपाउंड या यौगिक होता है. आसान भाषा में ये कैंसर पैदा करने वाला पदार्थ है. इतनी ही नहीं ये जीनोटॉक्सिक भी होता है यानी इसे आपके जीन को भी नुकसान पहुंचता है. यह ऐस्परजिलस फ्लेवस और ऐस्परजिलस पैरासिटिकस नामक फंगस से पैदा होता है. यह फंगस गर्म और नमी वाले वातावरण में मूंगफली को इनफेक्ट कर देता है. यह मक्का, अनाज, मेवों और मूंगफली में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला टॉक्सिन है. इस कवक को खेत में या फिर भंडारण में दानों पर उगने वाले भूरे-हरे या पीले-हरे रंग के फफूंद से पहचाना जा सकता है.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट बताते हैं कि एफ्लाटॉक्सिन फंगल अवशेष है, जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता है. ये केवल टेस्ट द्वारा पहचाना जा सकता है. इसके अलावा एफ्लाटॉक्सिन को हटाया भी नहीं जा सकता. अब मूंगफली में ये एफ्लाटॉक्सिन B1 लिवर कैंसर की वजह माना गया है.
इस एफ्लाटॉक्सिन की वजह से इंडोनेशिया ने भारत से मूंगफली के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. व्यापारिक सूत्रों के अनुसार, उन टेस्टिंग लैब्स में असली समस्या है जो कुछ छोटे कमरों में बिना सही इक्विपमेंट्स के ही स्थापित की गई हैं. एक सूत्र की मानें तो इंडोनेशियाई अधिकारियों ने चेन्नई की एक लैब का दौरा किया था और उसके काम करने के तरीके को लेकर चिंता जताई थी.
किसान तक के पॉडकास्ट अन्नगाथा में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शंकर लाल जाट ने इसको लेकर बहुत काम की बात बताई है. उन्होंने बताया कि जब कभी हम ब्रेड को 2 दिन के लि रखकर छोड़ देते हैं तो उसके ऊपर भूरे या नीले रंग की एक फफूंद आ जाती है. ब्रेड पर जब ये फफूंद मरती है तो उसे ये टॉक्सिन बनता है. शंकर लाल जाट बताते हैं कि एफ्लाटॉक्सिन कार्सिनोजेनिक है और जो भी इसे खाता है, उसकी ग्रोथ कम करता है. वो बताते हैं कि जब भी हम मूंगफली खाते हैं और कोई एक दाना कसैला या कड़वा सा आ जाता है, यही एफ्लाटॉक्सिन है.
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