जानिए किस पार्टी को मिले सकता है कौन सा मंत्रालयमोदी 3.0 में सहयोगी दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. इसमें तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी राम विलास (LJPR) की भूमिका अहम हो गई है. इन चार पार्टियों के मिला कर 40 सांसद हैं. टीडीपी और जेडीयू अपने लिए मनपसंद मंत्रालय चाहती है. एक फॉर्मूले के मुताबिक, हर चार सांसद पर एक मंत्री की मांग की जा रही है. इस लिहाज से टीडीपी (16) चार, जेडीयू (12) 3, शिवसेना (7) और चिराग पासवान (5) को दो-दो मंत्रालयों की उम्मीद है. टीडीपी स्पीकर पद भी चाहती है, हालांकि बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है.
ज्यादा जोर देने पर डिप्टी स्पीकर टीडीपी को मिल सकता है. जेडीयू के पास पहले से ही राज्य सभा डिप्टी चेयरमैन का पद है. अभी तक मोदी के दो कार्यकाल में सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व मिला है. यानी उनकी संख्या के अनुपात में मंत्री पद देने के बजाय केवल सांकेतिक नुमाइंदगी दी गई है. जबकि जेडीयू ने 2019 में संख्या के हिसाब से नुमाइंदगी की मांग की थी और ऐसा न होने पर सरकार में शामिल नहीं हुई थी. बदली परिस्थितियों में बीजेपी को संख्या के हिसाब से ही मंत्री बनाने होंगे. इसका मतलब होगा कि मंत्रिपरिषद में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या घटेगी और सहयोगियों की संख्या बढ़ेगी. लेकिन कुछ शर्तों पर बीजेपी शायद ही समझौता करे.
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सुरक्षा की सुरक्षा कमेटी (सीसीएस) के चार मंत्रालयों में सहयोगी को जगह नहीं है जिसमें रक्षा, वित्त, गृह और विदेश आता है. इंफ्रास्ट्रक्चर, गरीब कल्याण, युवा से जुड़े और कृषि मंत्रालय भी बीजेपी अपने पास ही रखना चाहेगी. यह पीएम मोदी की बताई गई चार जातियों- गरीब, महिला, युवा और किसान के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए अहम है. रेलवे, सड़क परिवहन आदि में बड़े सुधार किए गए हैं और बीजेपी इन्हें सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहेगी. रेलवे जिस किसी भी सरकार में सहयोगियों के पास रहा, तब लोकलुभावन नीतियों के चलते उसका बंटाधार हुआ. बड़ी मुश्किल से उसे पटरी पर लाया जा रहा है.
अगर मोदी एक और मोदी दो कार्यकाल देखें तो सहयोगियों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व में नागरिक उड्डयन, भारी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, स्टील और खाद्य, जन वितरण और उपभोक्ता मामले जैसे मंत्रालय दिए गए. खाद्य, जन वितरण एवं उपभोक्ता मामले का मंत्रालय 2014 में राम विलास पासवान के पास था. नागरिक उड्डयन टीडीपी के पास रहा. भारी उद्योग एवं पब्लिक एंटरप्राइजेज शिवसेना के पास रहा. खाद्य प्रसंस्करण अकाली दल और बाद में पशुपति पारस के पास रहा. इसी तरह स्टील जेडीयू के पास रहा.
वाजपेयी सरकार में उद्योग, पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक, कानून एवं विधि, स्वास्थ्य, सड़क परिवहन, वन एवं पर्यावरण, स्टील एंड माइन्स, रेलवे, वाणिज्य और यहां तक कि रक्षा मंत्रालय भी सहयोगियों के पास रहा. लेकिन अब बीजेपी को सहयोगियों के आगे कुछ हद तक झुकना होगा. पंचायती राज और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय जेडीयू को दिए जा सकते हैं. नागरिक उड्डयन, स्टील जैसे मंत्रालय टीडीपी को मिल सकते हैं. भारी उद्योग शिवसेना को मिल सकता है. महत्वपूर्ण मंत्रालयों जैसे वित्त, रक्षा में सहयोगियों को राज्य मंत्री पद दिया जा सकता है. पर्यटन, एमएसएमई, स्किल डेवलपमेंट, साइंस टेक्नॉलॉजी एंड अर्थ साइंसेज, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता जैसे मंत्रालय सहयोगियों को देने पर बीजेपी को समस्या नहीं होनी चाहिए. हालांकि टीडीपी MEITY जैसा मंत्रालय भी मांग सकती है. (रिपोर्टर/हिमांशु मिश्रा)
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