कांग्रेस के पास ऐसे लोगों की भरमार है, जो उस डाल को काट सकते हैं, जिस पर वो बैठे हों. ऐसे लोगों की भरमार है, जो सोचते अंग्रेजी में हैं, काम हिंदी या किसी और भारतीय भाषा के लिए करते हैं. सोचते विदेश में हैं और बात भारत की करते हैं. उन्हीं में से एक हैं सैम पित्रोदा. ज़हीन इंसान हैं. बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे हैं. इतने ज्यादा पढ़े-लिखे कि उन्हें कम पढ़े-लिखे की सोच समझने में दिक्कत होती है. विदेशी भूमि में इतना रम चुके हैं कि भारतीय नजरिए से सोचना काफी मुश्किल होता होगा. वो कांग्रेस के खास हैं, क्योंकि वो राहुल गांधी के करीबी हैं. इससे पहले वो राजीव गांधी के भी खास हुआ करते थे. तो कुल मिलाकर गांधी परिवार के खास हैं.
सोच, नजरिए, विचार अलग हो सकते हैं. इनमें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है. बीजेपी में बैठे सभी लोग एक जैसा सोचते हों, वो संभव नहीं. किसी पार्टी के लिए ऐसा संभव नहीं है. लेकिन अगर आप एक पार्टी से जुड़े हैं, तो समझना होगा कि व्यक्तिगत सोच को कब और कैसे सार्वजनिक कर रहे हैं. यह समझ बेहद अहम है. व्यक्तिगत सोच से पार्टी की सोच पर कितना असर पड़ेगा, ये भी समझना जरूरी है. तमाम पार्टियां ऐसे ही सोचती हैं. लेकिन कांग्रेस नहीं. या यूं कहें कि कांग्रेस में बैठे कुछ बुद्धिजीवी लोग ऐसा नहीं सोचते. दिलचस्प यह है कि उन्हें दिल की बात करने के लिए चुनाव का वक्त मिलता है. मणिशंकर अय्यर से लेकर सैम पित्रोदा तक तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं.
एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के कड़कड़डूमा में चुनावी भाषण के दौरान कहा था कि अगर मेरी किस्मत अच्छी है, तो इसमें मेरा क्या कुसूर है. तब उनको प्रधानमंत्री बने कुछ ही समय हुआ था और तेल की कीमत गिरने से लेकर काफी कुछ ऐसा हो रहा था, जो उनकी सरकार के पक्ष में था. एक बार फिर मोदी यही बात कह सकते हैं. शायद उनकी किस्मत ही है कि विपक्षी पार्टी में ऐसे बुद्धिजीवी बैठे हैं, जो बीजेपी को थाली में परोसकर मुद्दा देते हैं.
खैर, मामला समझ लेते हैं. एक न्यूज एजेंसी को सैम पित्रोदा ने इंटरव्यू दिया. उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए समझाया कि धन-संपदा का वितरण कैसे होना चाहिए. उदाहरण था, ‘अमेरिका में अगर किसी के पास 100 मिलियन डॉलर हैं, तो उसकी मौत के बाद बच्चों को 45 फीसदी ही मिलेगा. बाकी 55 फीसदी सरकार के पास जाएगा. आप अपनी धन-संपत्ति जनता के लिए छोड़कर जाएंगे, जो मेरे विचार में सही है.’
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पित्रोदा के बयान से पहले राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कहा था कि अगर चुनाव बाद उनकी सरकार सत्ता में आई तो एक सर्वे कराया जाएगा और पता लगाया जाएगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है. इसी बात को पित्रोदा ने आगे बढ़ाया.
बीजेपी इंतजार में ही थी कि कोई न कोई कांग्रेसी ऐसी बात तो करेगा, जो उन्हें घर बैठे मुद्दा दे जाए. हर तरफ से हमले शुरू हुए कि कांग्रेस आपकी संपत्ति छीन लेना चाहती है. इसके बाद सैम पित्रोदा की तरफ से सफाई भी आ गई. उन्होंने ट्वीट किया, ‘मैने सामान्य बातचीत में अमेरिका में विरासत टैक्स का उदाहरण के तौर पर जिक्र किया था. क्या मैं तथ्यों पर बात नहीं कर सकता? मैंने कहा था कि इस तरह के मुद्दों पर लोगों को चर्चा करनी चाहिए. इसका कांग्रेस सहित किसी भी पार्टी की पॉलिसी से कोई लेना-देना नहीं है.‘ उन्होंने यह भी कहा कि मंगलसूत्र और सोना छीनने जैसे प्रधानमंत्री के बयान पूरी तरह से अवास्तविक हैं.
I mentioned US inheritance tax in the US only as an example in my normal conversation on TV. Can I not mention facts ? I said these are the kind of issues people will have to discuss and debate. This has nothing to do with policy of any party including congress.
— Sam Pitroda (@sampitroda) April 24, 2024
मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर जयराम रमेश तक, हर तरफ से सफाई आने लगी. लेकिन हम सब जानते हैं कि जबान से निकले शब्दों के बाद आप जितनी भी सफाई दे लें, उसका असर नहीं होता. खासतौर पर बीजेपी जैसी आक्रामक पार्टी के सामने तो कतई नहीं.
सैम पित्रोदा मेरे सहित दुनिया भर में कई लोगों के लिए गुरु, मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के समान रहे हैं। उन्होंने भारत के विकास में कई महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) April 24, 2024
पित्रोदा जी उन मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखते हैं जिनके बारे में वह बोलना…
पित्रोदा के सुझाव व्यावहारिक तो कतई नहीं हैं. लेकिन इस पर गंभीर चर्चा के लिए किसी के पास वक्त नहीं है. पहली नजर में यह रॉबिनहुड जैसा सुझाव लगता है कि एक से छीनकर दूसरे को दे दिया जाए. थोड़ा गहराई में जाएं तो सवाल उठता है कि अगर वह गंभीर हैं, तो क्या यह नियम सबके लिए लागू किया जा सकता है? या सिर्फ उन एक फीसदी लोगों के लिए जिनका जिक्र राहुल गांधी करते हैं. वो इनहेरिटेंस यानी विरासत टैक्स की बात कर रहे हैं या सभी के पचास फीसदी जनता को दे देने की बात कर रहे हैं?
इन सब पर बात तो तब होती, जब इस वक्त इलेक्शन नहीं चल रहे होते. इलेक्शन के बाद किसी ‘क्लोज ग्रुप’ में पित्रोदा अपनी बात पूरी तरह रखते और उस विचार पर बाकी लोग अपनी राय रखते. लेकिन भारत की राजनीति को दशकों से विदेश में बैठकर देख रहे पित्रोदा को इतना तो पता होगा कि किसी इलेक्शन के समय किसी न्यूज एजेंसी को इंटरव्यू देना क्या होता है. सिर्फ भारत के लिहाज से ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर देशों के चुनाव के वक्त इलेक्शन में क्या बोलना है, क्या नहीं, ये ज्यादातर पार्टियों को पता है.
इलेक्शन के समय जवाब उस तरह होते हैं, जैसे अपनी रैलियों में प्रियंका गांधी दे रही हैं. उन्होंने पैसे छीनने का जवाब इस तरह दिया कि हमारा परिवार पैसे छीनता नहीं, इंदिरा गांधी ने देश की रक्षा के लिए सोना दिया था. उस वक्त पूरे देश ने लड़ाई के समय अपने हिसाब से मदद की थी. मंगलसूत्र पर बीजेपी के हमले को भी प्रियंका ने राजनीतिक लहजे में जवाब दिया कि मेरी मां ने अपना मंगलसूत्र देश पर कुर्बान किया है. यह समझना पड़ेगा कि इलेक्शन बुद्धिजीवियों की गोष्ठी नहीं है. यहां देर शाम कॉफी या किसी और ड्रिंक के साथ गहन चर्चा नहीं हो सकती. यहां वो बातें रखी जाती हैं, जो लोगों को दिल और दिमाग पर सीधे असर करें. इसीलिए प्रकांड बुद्धिजीवियों को इस लड़ाई से दूर रहना चाहिए और प्रियंका या उसी तरह राजनीतिक लोगों की जरूरत है, जो बीजेपी की आक्रामकता का उसी भाषा में जवाब दे सकें.
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