अपनी मांगों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन करने के बाद गौतब बुद्ध नगर के किसानों को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव से पहले नेता उनकी समस्याओं और मुद्दों को लेकर बात करेंगे और उन्हें उनका हक दिलाने की बात करेंगे. पर फिलहाल किसानों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं दिखाई दे रहा है. सभी किसान अपनी अधिग्रहित की गई जमीन के बदले अधिक मुआवजा और विकसित भूखंड की मांगों को लेकर विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेताओं की तो बात छोड़ दीजिए. इस मुद्दे को हल करने को लेकर विपक्षी नेताओं के पास भी कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है.
इन्हीं सब मांगों को लेकर फरवरी महीने में तीन किसान संगठनों ने मिलकर संसद तक मार्च करने का फैसला किया था. उन्हें नोएडा में रोक दिया गया था और बाद में यूपी सरकार ने उनकी शिकायतों को देखने के लिए एक पैनल का गठन किया. 'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय किसान यूनियन के प्रधान सुखबीर खलीफा ने कहा कि जहां तक उनकी जानकारी है, कमेटी ठीक से काम नहीं कर रही है. पैनल की हाल में एक बैठक हुई थी जिसमें किसानों को नहीं बुलाया गया था. जिलाधिकारी ने कहा कि 26 अप्रैल को चुनाव के बाद किसानों को बैठक में आमंत्रित किया जाएगा.
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सभी किसान अभी 'वेट एंड वाच' की स्थिति में हैं. किसान नेता ने कहा कि वो 10 दिनों के अंदर किसान यूनियनों की एक बैठक करने जा रहे हैं. इस बैठक में वो सभी पार्टियों के कार्यों का मूल्यांकन करेंगे. हालांकि उन्होंने कहा कि संगठन कभी भी किसी खास पार्टी को वोट करने के लिए किसी को मजबूर नहीं करेगा. भारतीय किसान यूनियन (BKU) के पश्चिमी यूपी अध्यक्ष पवन खटाना ने कहा कि मतदाताओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना हमारी जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि जनता को जाति या धर्म के आधार पर वोट नहीं करना चाहिए. उन्हें एक किसान के तौर पर वोट करना चाहिए. साथ ही कहा कि वो घर-घर जाएंगे और लोगों को उनके अधिकारों और समस्याओं के बारे में जागरूक करेंगे.
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किसान अपनी दो प्रमुख मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. इन मांगों में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरणों द्वारा अधिग्रहित उनकी जमीन के मुआवजे के रूप में विकसित भूमि पर उनके परिवारों के लिए 10 प्रतिशत आवासीय भूखंड और 2011 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप अतिरिक्त 64.7 प्रतिशत आर्थिक मुआवजा देना शामिल है. वहीं यहां से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार किसानों को हक दिलाने की बात तो कर रहे हैं पर इसके लिए कोई ठोस नीति किसानों के समक्ष नहीं रख पा रहे हैं.
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