क्‍यों भारत में होने वाले चुनाव होते हैं सबसे खास जिस पर रहती हैं दुनियाभर की नजरें 

क्‍यों भारत में होने वाले चुनाव होते हैं सबसे खास जिस पर रहती हैं दुनियाभर की नजरें 

गठबंधन की अनंत संभावनाओं के कारण भारत के चुनावों की भविष्यवाणी करना बेहद कठिन रहा है.  फरवरी 2023 में सरकार की तरफ से बताया गया था कि उस साल जनवरी तक देश में करीब 96 करोड़ रजिस्‍टर्ड मतदाता थे. भारतीय वोटर्स की इतनी संख्‍या यूरोप के सभी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्‍यादा है.

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क्‍यों भारत में होने वाले चुनाव होते हैं सबसे खास जिस पर रहती हैं दुनियाभर की नजरें भारत में होने वाने चुनाव होते हैं काफी खास

भारत में एक बार फिर से चुनावों का मौसम आ गया है. दक्षिण एशिया के इस विशाल राष्‍ट्र में अप्रैल और मई में आम चुनाव कराने की तैयारी जोर-शोर से जारी है. भारत में होने वाले आम चुनाव अपने आप में काफी खास हैं. कई करोड़ों वोटर्स के बीच लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार अपना कार्यकाल पूरा करती है. भारत के चुनाव अपने आप में खास हैं. पूरी दुनिया की नजरें इन चुनावों पर लगी रहती हैं. एक नजर डालिए उन कारणों पर जिनकी वजह से भारत में होने वाले चुनाव इतने खास बन जाते हैं. आपको यहां बता दें कि देश में कौन सी सरकार चुनी जाएगी इस पर पूरी दुनिया के राजनीति विश्‍लेषक अपनी टिप्‍पणी करते हैं. 

भविष्‍यवाणी करना कठिन 

गठबंधन की अनंत संभावनाओं के कारण भारत के चुनावों की भविष्यवाणी करना बेहद कठिन रहा है.  देश के हर राज्‍य में राजनीति का समीकरण काफी कठिन है. उत्‍तर से लेकर दक्षिण तक मतदाताओं की राजनीतिक विचारधारा सत्‍ता पर खासा असर डालती है. विशेषज्ञों की मानें तो भारत के जनमत सर्वेक्षणों पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि वे परिणामों की भविष्यवाणी करने में बार-बार विफल रहे हैं. 

दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव

फरवरी 2023 में सरकार की तरफ से बताया गया था कि उस साल जनवरी तक देश में करीब 96 करोड़ रजिस्‍टर्ड मतदाता थे. भारतीय वोटर्स की इतनी संख्‍या यूरोप के सभी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्‍यादा है. इसके अलावा भारत के चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं.

मतदाता संसद के 543 सदस्यीय निचले सदन या लोकसभा के लिए सांसदों का चुनाव करते हैं. साल 2014 में, भारत के चुनाव आयोग ने करीब दस लाख मतदान केंद्रों पर पांच सप्ताह तक चलने वाले अभ्यास के लिए 3.7 मिलियन मतदान कर्मचारी, 550000 सुरक्षाकर्मी, 56 हेलीकॉप्टर और 570 विशेष ट्रेनें तैनात की थीं. 

इसी तरह से साल 2019 में चुनाव आयोग ने 3.96 मिलियन ईवीएम  तैनात कीं थी. साथ ही करीब 270000 अर्धसैनिक बल और दो मिलियन राज्य पुलिस कर्मियों ने विभिन्न मतदान केंद्रों पर संगठनात्मक सहायता और सुरक्षा प्रदान की थीं

उस समय 1709 पंजीकृत राजनीतिक दल थे, जिनमें से 464 ने 2014 में अपने उम्मीदवार उतारे थे. साथ ही केंद्र सरकार ने 3870 करोड़ रुपये खर्च किए थे ताकि 834 मिलियन मतदाता 8,251 उम्मीदवारों में से अपना संसदीय प्रतिनिधि चुन सकें.  जबकि साल 2019 में 542 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 8039 उम्मीदवारों ने अपनी किस्‍मत आजमाई थी. 

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बेहद जटिल प्रक्रिया 

क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया के सातवें सबसे बड़े देश और दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में चुनाव कराना कठिन और जटिल है। लाखों मतदान कर्मी, पुलिस और सुरक्षाकर्मी शहरों, कस्बों, गांवों और बस्तियों में तैनात होते हैं. वे उत्तर में बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों से लेकर दक्षिण में अरब सागर के छोटे द्वीपों, पूर्व में गहरे जंगल.  पश्चिम में रेगिस्तान और दूर-दराज के मतदाताओं तक पहुंचने के लिए विमानों, नावों, रेलगाड़ियों, हेलीकॉप्टरों, हाथियों और ऊंटों का उपयोग करते हैं और पैदल यात्रा करते हैं. 

मतदान कर्मचारी हिमालय के बर्फीले इलाकों में अलग-थलग और दूर-दराज की बस्तियों में जाते हैं. ये कर्मचारी उन्हें मतदान केंद्र स्थापित करने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर, स्लीपिंग बैग, भोजन, टॉर्च, साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और स्याही तक अपने साथ ले जाते हैं. चुनाव आयोग पश्चिमी राज्य गुजरात के गिर जंगल में, जहां शेर घूमते हैं, अकेले मतदाता के लिए एक मतदान केंद्र स्थापित करता है. छत्तीसगढ़ में मतदाताओं पर हमला करने वाले मधुमक्खियों के झुंड को रोकने के लिए एक मेडिकल टीम तक तैनात की जाती है.  

नारी और युवा शक्ति 

अधिक से अधिक महिलाएं वोट देने के लिए बाहर आ रही हैं। 2014 के चुनावों के बाद से ही चुनावों में महिलाओं की भागीदारी में इजाफा हो रहा है. उस समय मतदान केंद्रों पर महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक थी, जिसने अब तक की सबसे अधिक 65.63 प्रतिशत महिला मतदाताओं के साथ इतिहास रचा था. 

साल 2019 में मतदान में 18-19 वर्ष की आयु के 15 मिलियन मतदाता और लाखों पहली बार मतदान करने वाले मतदाता होंगे. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार भी स्थिति ऐसी ही रहेगी. भारत के अब करीब 500 मिलियन भारतीयों के पास स्मार्ट फोन है. करीब 50 अरब इंटरनेट का प्रयोग करते हैं. माना जाता है कि राजनीतिक दल और उम्मीदवार युवा मतदाताओं का दिल और दिमाग जीतने के लिए नई तकनीक और सोशल मीडिया का आक्रामक तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं. 

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