
गेहूं की कटाई के बाद बाजारों में बड़ी मात्रा में इसकी आवक बढ़ रही है. प्राइवेट खरीद के अलावा सरकार ने भी गेहूं खरीद के लिए अपने क्रय केंद्र खोल रखे हैं. इन क्रय केंद्रों पर सहकारी समितियों और अलग-अलग एजंसी के माध्यम से गेहूं बड़ी मात्रा में खरीदा जा रहा है. इटावा जनपद की बात करें तो सरकार ने यहां लगभग 60 क्रय केंद्र खोले हैं. दिक्कत ये है कि क्रय केंद्र खुलने के बावजूद यहां आज भी गेहूं की खरीद नहीं हो रही है. किसान सहकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं की बिक्री नहीं कर रहे हैं जबकि प्राइवेट आढ़तियों की दुकानों पर किसानों को गेहूं बेचते हुए देखा जा सकता है. इन प्राइवेट आढ़तियों के पास बड़ी मात्रा में गेहूं पहुंच रहा है.
इटावा की हालत ये है कि यहां प्राइवेट दुकानदार किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं, लेकिन सहकारी क्रय केंद्रों पर सन्नाटा फैला हुआ है. सरकारी क्रय केंद्रों पर कर्मचारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. एक अप्रैल से सहकारी खरीद शुरू हो गई थी. मगर 18 दिन बीत जाने के बाद भी इटावा नवीन मंडी में गेहूं की सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है. एक भी किसान गेहूं बेचने के लिए सरकारी क्रय केंद्र पर नहीं पहुंचा है. उधर सैकड़ों की तादाद में किसान प्रतिदिन प्राइवेट आढ़तियां पर गेहूं बेचने पहुंच रहे हैं.
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प्राइवेट आढ़तियों के पास बड़े-बड़े गेहूं के ढेर देखे जा सकते हैं. जब इस संबंध में 'किसान तक' की टीम ने बात की तो किसानों ने बताया कि सहकारी क्रय केंद्रों पर ऑनलाइन प्रोसेसिंग से काम होता है जिस पर समय अधिक खर्च होता है. उसके बाद ही अनाज का पेमेंट खाते में आता है. दूसरी ओर किसानों को प्राइवेट दुकानों पर बिक्री करने में सहूलियत मिलती है, नकद पेमेंट मिल जाता है और किसी प्रकार की कमी गेहूं में नहीं निकाली जाती है.
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किसान प्राइवेट मंडियों में इसलिए गेहूं बेच रहे हैं क्योंकि उन्हें सरकारी भाव से अधिक रेट मिल रहा है. वहां किसान तुरंत अपनी उपज बेचते हैं और नकद में पैसे ले लेते हैं. सरकारी क्रय केंद्रों के साथ यह बात नहीं है. सरकारी क्रय केंद्रों पर 2125 रुपये प्रति कुंटल की बिक्री है जबकि प्राइवेट दुकानों पर 2200 रुपये क्विंटल गेहूं खरीदा जा रहा है. किसानों का कहना है कि उन्हें अधिक मुनाफा प्राइवेट दुकानों पर मिल रहा है.
इटावा की नवीन मंडी में सहकारी तीन क्रय केंद्रों पर सन्नाटा देखा जा रहा है. यहां कर्मचारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं. जब गेहूं की खरीद नहीं होने का कारण पूछा गया तो वहां मौजूद विभाग के मार्केटिंग इंस्पेक्टर नरेंद्र सिंह ने बताया कि किसान केवल उतना ही गेहूं प्राइवेट में बेच रहा है, जितना उसको नकद पैसे की जरूरत है. किसान अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए गेहूं की बिक्री कर रहा है.
नरेंद्र सिंह कहते हैं, किसानों को समझाने के बावजूद उनका कहना है कि रजिस्ट्रेशन और ऑनलाइन प्रक्रिया में समय लग रहा है जबकि प्राइवेट दुकान पर नकद पैसा मिल जाता है. कुछ किसान अभी गेहूं अपने घरों में रोक कर रखे हुए हैं. मंडी के भाव और अधिक होने का इंतजार कर रहे हैं. जब रेट बढ़ेंगे तो किसान अपनी उपज को बेचेंगे.
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