देशभर में इस समय गेहूं की फसल पककर कटाई के लिए तैयार है. ज्यादातर राज्यों में गेहूं की नई आवक मंडियों और सरकारी खरीद केंद्रों पर पहुंच रही है. इस बार किसानों को फसल के लिए अच्छे दाम भी मिल रहे हैं. लेकिन, इस बीच उत्तर प्रदेश में गेहूं के अवशेष (पराली) के प्रबंधन को लेकर कुछ जिलों में कन्फ्यूजन की स्थिति देखने को मिली, जहां अधिकारियों ने स्थानीय स्तर पर गेहूं कटाई के समय पराली से भूसा बनाने पर रोक लगा दी. इसके बाद प्रमुख सचिव, कृषि ने आदेश जारी कर अधिकारियों को शासन के आदेश का हवाला देते हुए भूसा बनाने पर रोक को लेकर कोई आदेश नहीं जारी करने की हिदायत दी है.
प्रमुख सचिव, कृषि रविंद्र ने आदेश जारी करते हुए कहा कि हमारे संज्ञान में यह आया है कि कुछ जनपदों में स्थानीय स्तर पर गेहूं की कटाई के समय भूसा बनाने पर रोक लगा दी गई है, जबकि शासन की ओर से फसल अवशेष को प्राथमिकता पर रीपर या स्ट्रा रीपर के माध्यम से पशु चारा बनाने के लिए निर्देश जारी किए गए है. इसलिए संबंधित अधिकारियों को हिदायत दी जाती है कि वे स्थानीय स्तर पर रोक लगाने जैसे ओदश जारी नहीं करें. प्रमुख सचिव, कृषि ने सचिव, कृषि और निदेशक, कृषि उत्तर प्रदेश को यह पत्र जारी कर इस आदेश का निचले स्तर पर पालन करने के लिए निर्देशित किया है.
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है. ऐसे में यहां पराली/फसल अवशेष से पशु चारा भूसा बनाकर पराली प्रबंधन किया जाता है. इससे कई सारे फायदे होते हैं. पहला तो प्रदूषण से बचाव होता है और पशुओं को चारा मिल जाता है. वहीं, जब किसान खेत में आग लगाकर इसे जलाते हैं तो मिट्टी के अंदर के जरूरी तत्वों के साथ कई ऐसे जीव भी मर जाते हैं, जो अच्छी खेती के लिए बड़ी भूमिका निभाते हैं. ऐसे में इनका बचाव होने से अगली फसल में ज्यादा खाद/पानी की जरूरत नहीं पड़ती.
सरकार पराली प्रबंधन के लिए किसानों के लिए कई योजनाएं चला रही है. खासकर धान की पराली को लेकर सरकार किसानों को विशेष प्रोत्साहन देती है. सरकार उन्हें कृषि मशीनरी उपलब्ध कराती है, जिसका लाभ लेकर किसान बिना जलाए पराली से छुटकारा पा सकते हैं. धान की कटाई के दौरान सरकार ने आंकड़े जारी कर जानकारी दी थी कि पिछले कुछ सालों में साझा प्रयासों से पराली जलाने के मामलों में भारी कमी हुई है, जो सरकार की विभिन्न पहलों के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है.
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