गन्ना उत्तर प्रदेश के किसानों की मुख्य नगदी फसल है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की व्यापक पैमाने पर खेती होती है. यूपी गन्ना के उत्पादन ही नहीं बल्कि अब चीनी के उत्पादन में भी सबसे आगे है. यूपी में गन्ने की एक ऐसी किस्म है जिसमें कैंसर जैसी बीमारी लग चुकी है. इसी तरह गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग यानी रेड रॉट नाम की बीमारी है जिसे गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है. इस बीमारी के चलते सीओ-0238 किस्म उत्तर प्रदेश में 80 फ़ीसदी तक प्रभावित हो चुकी है. प्रदेश के कुल गन्ना क्षेत्रफल में सबसे ज्यादा क्षेत्र इस किस्म का कब्जा है. कई जिलों में तो इस बीमारी के चलते गन्ने की फसल 80 फ़ीसदी तक प्रभावित हो चुकी है. इस बिमारी के चलते 2023-24 के पेराइ सत्र पर भी पड़ेगा. चीनी उत्पादन पर इस बीमारी का सबसे बड़ा असर होगा क्योंकि सीओ-0238 किस्म चीनी के लिए सबसे बेहतर गन्ने की प्रजाति मानी जाती है.
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ के परियोजना समन्वयक डॉ. दिनेश सिंह ने किसान तक से खास बातचीत में बताया कि सीओ-0238 प्रजाति का किसानों के बीच में जबरदस्त क्रेज है. इस प्रजाति का उत्पादन और चीनी के लिए यह सर्वोत्तम किस्म भी मानी जाती है. इसीलिए कुल गन्ने का क्षेत्रफल में इस किस्म का दबदबा आज भी कायम है. इस प्रजाति में 2016 से ही रेड रॉट यानी लाल सड़न रोग से प्रभावित हो चुकी है. तब से लेकर इस प्रजाति की जगह दूसरी प्रजाति लगाने के लिए किसानों को सलाह दी जा रही है. किसान अभी भी इस प्रजाति को पसंद कर रहे हैं. फिलहाल पूरे उत्तर प्रदेश में यह प्रजाति पर लाल सड़न रोग का खतरा मंडरा रहा है. सुल्तानपुर, शामली ,संभल, हापुड़ जैसे कई जनपदों में तो इस प्रजाति की 80 फ़ीसदी फसल इस बीमारी के चलते प्रभावित हो चुकी है. यही हाल रहा तो नवम्बर में शुरू होने वाले पेराइ सत्र में चीनी मिलों के सामने बड़ा संकट उपस्थित होगा जिसका असर प्रदेश के चीनी उत्पादन पर भी निश्चित रूप से पड़ेगा.
रेड रॉट बीमारी केवल गन्ने में ही लगती है. इस बीमारी के चलते गन्ने के तने के अंदर लाल रंग के सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है. पत्तियां के दोनों ओर छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग से प्रभावित गन्ने को तोड़ने से वह आसानी से टूट जाता है और इसे चीरने पर अल्कोहल जैसी महक भी आती है. भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के परियोजना समन्वयक डॉ.दिनेश सिंह ने बताया कि इस बीमारी का शुरुआती दौर में पता लगने पर इलाज संभव है लेकिन जैसे ही बारिश शुरू हो जाती है उसके बाद यह बीमारी तेजी से पानी के साथ फैलती है. उस दौरान इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. ऐसे में हम लोग किसानों को बुवाई के समय ही सलाह देते हैं कि वह बीमारी की रोकथाम के लिए विशेष सावधानी बरते.
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डॉ बक्शी राम ने करनाल अनुसंधान केंद्र में बतौर प्रधान वैज्ञानिक कार्य करते हुए सीओ-0238 किस्म में को 2008 में विकसित किया. गन्ने की सीओ- 0238 प्रजाति ने उत्तर प्रदेश को गन्ना उत्पादन में सबसे आगे पहुंचा दिया हैं. करनाल के गन्ना प्रजनन संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र में रहकर डॉ. बख्शी राम ने गन्ने की सबसे ज्यादा प्रजाति को विकसित कर चुके हैं. इस वैरायटी ने उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि हरियाणा ,पंजाब के 54 फ़ीसदी हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया हैं. डॉ. बख्शी राम को गन्ना क्रांति का पुरोधा भी माने जाते है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब उत्तराखंड और बिहार जैसे राज्यों में 84 फीसदी गन्ना क्षेत्रफल में सीओ- 0238 प्रजाति का कब्जा है.
गन्ने की वैसे तो बहुत सारी किस्म मौजूद हैं. किसानों के बीच गन्ने की वो किस्म सबसे ज्यादा पसंद की जाती है जिसमे चीनी की रिकवरी सबसे अच्छी होती है. सीओ-0238 किस्म में चीनी रिकवरी के मामले में नंबर वन है. इस किस्म की वजह से ही यूपी चीनी उत्पादन में नंबर वन पहुंच गया है. इस वैरायटी के आने के बाद यूपी के गन्ना उत्पादन और शुगर रिकवरी में तेजी से सुधार हुआ. उत्तर प्रदेश में इस बार गन्ने की इस प्रजाति में लाल सड़न रोग लगने से गन्ने का बड़ा एरिया प्रभावित हो चुका है जिसकी वजह से वैज्ञानिक के द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार शायद उत्तर प्रदेश चीनी उत्पादन में पिछड़ सकता है.
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