उत्तर प्रदेश गन्ने (Sugarcane crop) का सर्वाधिक उत्पादन करता है तो वही प्रदेश चीनी उत्पादन में भी सबसे आगे है लेकिन मेरठ में इन दिनों एक बीमारी ने गन्ना किसानों की नींद उड़ा रखी है . गन्ने की फसल में पोक्खा बोइंग नाम की बीमारी लग चुकी है जिसकी वजह से किसान काफी परेशान है. ज्यादातर किसान इस बीमारी को चोटी बेधक रोग मानकर से उपचार कर रहे हैं. गन्ना विभाग की इस बीमारी को दूर करने के लिए किसानों के संपर्क में बना हुआ है. हालांकि गन्ने में लगी इस बीमारी से फसल को काफी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंच रहा है यहां तक कि गन्ने की मिठास को भी यह बीमारी चट कर रही है. इस बीमारी से 1000 हेक्टेयर से ज्यादा की फसल प्रभावित है.
गन्ने की फसल (Sugarcane crop) में यह बीमारी किसानों के खेत में काफी दिन बाद आई है. इस बीमारी की पहचान गन्ने की उलझी हुई पत्तियां देखकर किसान कर सकता है. वही इसके और भी लक्षण है जिसमें पत्तियों पर सिकुड़न जैसे निशान बन जाते हैं. वही बीच की गोफ पीली होकर रस्सी जैसी दिखाई पड़ती है. इसके अलावा बीच गोफ व साथ वाली पत्तियां जली हुई सी दिखाई देती है.
गन्ने में लगी बीमारी पोक्खा बोइंग को समय से अगर नियंत्रित नहीं किया गया तो इससे फसल को काफी बड़ा नुकसान हो सकता है. कृषि वैज्ञानिक डॉ अखिलेश दूबे ने बताया की ट्राइकोडरमा 100 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ में किसानों को सायं काल छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा ट्राइकोडरमा 100ml, सागरिका 1 लीटर या एनपीके कंसोरिटम 1 लीटर प्रति एकड़ दोनों का घोल अलग-अलग बनाए और फिर इनको बीमारी वाली जगह स्प्रे करे. इसके अलावा थियोफिटेन मिथाइल 250 ग्राम प्रति एकड़ या कोनिका 250 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव किया जा सकता है.
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मेरठ के ज्यादातर किसान पोक्खा बोइंग रोग को चोटी बेधक रोग मान रहे हैं जबकि यह उनका भ्रम है. पोक्खा बोइंग रोग एक फफूद वाली बीमारी है जो गन्ने की फसल में एक महामारी का रूप भी ले सकती है. हालांकि चोटी बेधक और पोक्खा बोइंग रोग के लक्षण एक जैसे ही होते हैं. दोनों ही रोगों में पत्तियां उलझी हुई दिखाई देती है लेकिन दोनों का इलाज अलग है. ज्यादातर किसान अभी चोटी बेधक रोग का उपचार कर रहे हैं जिससे उनको फायदा नहीं हो रहा है जबकि पोक्खा बोइंग रोग का इलाज फफूंदी नाशक कीटनाशकों के माध्यम से होता है.
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