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यूपी : हरित क्रांति से पहले की तरह एक बार फि‍र बुंदेलखंड बनेगा मिलेट्स का हब

यूपी : हरित क्रांति से पहले की तरह एक बार फि‍र बुंदेलखंड बनेगा मिलेट्स का हब

मिलेट्स की महिमा को पुन: स्थापित कर इंसान और धरती की सेहत को दुरुस्त करने के मकसद से पूरी दुनिया में इस साल 'अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष' मनाया जा रहा है. इसके मद्देनजर यूपी में मोटे अनाजों के उत्पादन एवं उपभोग को बढ़ाने के हर संभव उपाय किए जा रहे हैं. इस क्रम में बुंदेलखंड को एक बार फि‍र मिलेट्स का हब बनाने के उपाय किए जा रहे हैं. इन उपायों पर 'किसान तक' की रिपोर्ट

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किसान मेला जैसे आयोजनों में रोचक तरीकों से मिलेट्स की महिमा से रुबरू कराया जा रहा है किसान मेला जैसे आयोजनों में रोचक तरीकों से मिलेट्स की महिमा से रुबरू कराया जा रहा है

मोटे अनाज यानी मिलेट्स को सेहत का खजाना माना गया है. जानकारों के मुताबिक मोटे अनाज हर तरह की जलवायु में बहुत कम पानी की उपलब्धता के बावजूद आसानी से उपजने वाले खाद्यान्न हैं हरित क्रांति के दौर से पहले यूपी का बुंदेलखंड इलाका मडुवा, ज्वार और बाजरा जैसे अन्य मोटे अनाजों का हब था. हरित क्रांति के दौर में गेहूं और धान की अधिकता के कारण मोटे अनाज नेपथ्य में चले गए. यूपी सरकार ने अब मिलेट्स पुनरुद्धार कार्यक्रम 2023 शुरू किया है. इसके तहत बुंदेलखंड को एक बार फ‍िर हरित क्रांति से पहले की तरह मिलेट्स का हब बनाने की योजना है.

किसान और जनसामान्य को किया जा रहा जागरूक

लोगों को मिलेट्स के फायदों की जानकारी देने के लिए किसान मेला जैसे आयोजनों में मिलेट्स की महिमा का जिक्र कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. इसके तहत किसानों को यह बताया जा रहा है कि मिलेट्स की खेती मुनाफे का सौदा है. साथ ही लोगों को भी यह समझाया जा रहा है कि मोटे अनाजों काे भोजन की थाली में ज्यादा जगह देना सेहत के लिए लाभकारी होगा. 

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इस क्रम में यूपी के झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय में हाल ही आयोजित बुंदेलखंड किसान मेला में भी मिलेट्स पर खास फोकस किया गया. विश्वविद्यालय के शिक्षा निदेशक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार ने 'किसान तक' को बताया कि बुंदेलखंड इलाके में किसान और जनसामान्य के स्तर पर मिलेट्स काे कैसे लोकप्रिय बनाया जा रहा है.

डॉ कुमार ने कहा कि मेले में आए किसानों और लोगों को संचार के तमाम रोचक माध्यमों से बताया गया कि बुंदेलखंड में हरित क्रांति से पहले 5 तरह के मोटे अनाज बहुतायत में उपजाए जाते थे. इनमें ज्वार, बाजरा, कोदो, मडुवा और रागी शामिल थे. इनके इस्तेमाल से सेहत को होने वाले फायदों से जनसामान्य को रूबरू कराया जा रहा है. साथ ही किसानों को यह बताया जाता है कि मिलेट्स की खेती बेहद कम लागत पर होती है. जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने की क्षमता भी मिलेट्स में होती है. इसलिए इनकी खेती बदलती जलवायु के जोखिम से मुक्त है.

मिलेट्स के लिए मुफीद है बुंदेलखंड

डॉ कुमार ने कहा कि देश के अन्य इलाकों की तुलना में बुंदेलखंड के किसान आज भी सबसे कम रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं. मिलेट्स की खेती प्राकृतिक तरीके से की जाती है. इसलिए यह बेहद कम लागत पर हो जाती है. उन्होंने कहा कि सरकार के लिए बुंदेलखंड को मिलेट्स का हब बना कर इस इलाके के किसानों की दुश्वारियां दूर करने में भी मदद मिलेगी. डॉ कुमार ने दावा किया  मिलेट्स की खेती न सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने बल्कि जनसामान्य की सेहत सुधारने की चुनौती को भी आसान बनाने में मददगार साबित होगी.

कम लागत और प्रीमियम दाम लुभाएंगे किसानों को

डॉ कुमार ने कहा कि सरकार ने मिलेट्स के लिए प्रोत्साहन नीति के तहत किसानों को इनकी खेती बढ़ाने का कार्यक्रम लागू कर दिया है. इसके तहत किसानों को बीज एवं अन्य सुविधाएं देने के साथ शैक्षिक संस्थाओं को मिलेट्स से जुड़े सभी तरह के तकनीकी सहयोग देने की जिम्मेदारी सौंपी है.

उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड इलाके में कृष‍ि शिक्षा के सबसे केन्द्र के रूप में केन्द्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय, कृष‍ि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को मिलेट्स से जुड़ी हर संभव तकनीकी जानकारियां एवं खेती की विज्ञान आधारित अत्याधुनिक पद्धतियों से अवगत कराता है. इसमें किसानों को यह बताया जाता है कि वे किस प्रकार से मिलेट्स की खेती को बेहद कम लागत पर उपजा सकते हैं.

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डॉ कुमार ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों से मिलेट्स की उपज को प्रीमियम कीमत पर खरीदने के उपाय सुनिश्चित किए जा रहे हैं. इससे निश्चित तौर पर किसान मिलेट्स की खेती के प्रति आकर्षित होंगे.

सीड हब बनाया गया

डॉ कुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय में अत्याधुनिक तकनीक से लैस एक 'सीड हब' बनाया गया है. इसमें तैयार किए गए मिलेट्स के उन्नत बीज इस इलाके के किसानों को मुहैया कराए जा रहे हैं. साथ ही विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों से सीधे तौर पर जुड़ कर उनके खेत पर जाते हैं और उनके साथ उन्नत बीजों की खेती करते हैं. इस क्रम में किसानों को खेती की नयी तकनीकों से भी रूबरू कराया जाता है.

रामायण और महाभारत से जुड़े हैं मिलेट्स

डा कुमार ने कहा कि किसानों के मन में मिलेट्स के प्रति जागरूकता लाने के लिए उन्हें यह बताया जाता है कि इन अनाजों का संबंंध रामायण और महाभारत काल से है. उन्होंने कहा कि इन्हें भारत का मूल अन्न बताते हुए किसानों को इनसे जुड़ी पौराणिक कथा कहानियों से भी अवगत कराया जाता है. जिससे किसान इन्हें श्रद्धा के भाव से स्वीकार करे. उन्होंने आगे कहा कि इन अनाजों की उत्पत्ति का इतिहास, रामायण और महाभारत काल से जोड़ने पर इससे किसानों को ही नहीं बल्कि जनसामान्य को भी जोड़ना आसान हो जाता है.

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रोगियों के लिए रामबाण हैं मिलेट्स

डाॅ कुमार ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में मधुमेह का रोग सबसे ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में समय समय पर जागरूकता अभियान चला कर जनसामान्य को यह बताया जाता है कि मिलेट्स में जटिल कार्बोहाइड्रेट होने के कारण, शरीर में इनका पाचन धीमी गति से होता है. धीमा पाचन होने से शरीर में शुगर का स्तर तेजी से नहीं बढ़ पाता है, इसलिए मधुमेह के रोगियों के लिए मिलेट्स रामबाण माने गए हैं.

इसके अलावा मिलेट्स की एक अन्य खासियत यह है कि मोटे अनाज अपने नाम के विपरीत आकार में छोटे दाने वाले होते हैं, लेकिन ये प्रोटीन, मिनिरल्स, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट सहित अन्य पोषक तत्वों का खजाना हैं. इनमें मौजूद फिनोलिक्स, दिल के रोगियों को लिए लाभकारी होता है. कुल मिलाकर हड्डी से लेकर दिल-दिमाग तक, मिलेट्स पूरे शरीर के लिए पोषण प्रदान करते हैं.