जलवायु परिवर्तन (climate change) का हल्ला यूं ही नहीं है. जिन-जिन देशों पर इसकी मार पड़ रही है, वे ही इसके खतरे को भलीभांति समझते हैं. उन देशों पर सबसे अधिक प्रभाव है जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था खेती-बाड़ी पर निर्भर है. चूंकि मौसमी बदलाव ने सबसे अधिक असर खेती पर डाला है, इसलिए खेती पर आश्रित लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. भारत भी धीरे-धीरे इसके असर में आ रहा है. इसे समझने के लिए पिछले दो साल से फरवरी-मार्च की गर्मी (टर्मिनल हीट) को देख सकते हैं जिससे गेहूं की पैदावार गिरी है. ऐसा ही एक नाम अर्जेंटीना का है जहां बड़ी तादाद में लोग खेती-बाड़ी करते हैं और अपना जीवन-यापन करते हैं. अर्जेंटीना आज जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है.
अर्जेंटीना में इस साल भयंकर सूखा पड़ा है जिससे अनाजों के निर्यात पर संकट गहरा गया है. इससे अर्जेंटीना की पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाने की आशंका है. इसका नतीजा होगा कि किसान कर्ज के बोझ तले दबेंगे, फिर इन किसानों और आम जनता को उबारने के लिए सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे संगठनों से कर्ज लेना पड़ेगा.
दक्षिणी अमेरिकी देश अर्जेंटीना कई उपजों का निर्यात करता है. दुनिया में सोया निर्यात में इसका पहला स्थान है जबकि मक्का या कॉर्न निर्यात में यह तीसरे पायदान पर है. लेकिन अर्जेंटीना में इस साल 60 साल बाद सबसे भीषण सूखा पड़ा है. इससे सोयाबीन और मक्के की पैदावार बहुत अधिक गिरने का अनुमान है.
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'रॉयटर्स' की रिपोर्ट बताती है, अर्जेंटीना में इस साल 270 लाख टन सोया उत्पादन का अनुमान है. अगर ऐसा होता है तो इस सदी का यह सबसे कम उत्पादन होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्जेंटीना इस बार सबसे खतरनाक जलवायु परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है. किसानों को इस बार सोया, कॉर्न और गेहूं में तकरीबन 14 अरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है. इन तीनों फसलों में 500 लाख टन तक की गिरावट का अनुमान जताया जा रहा है.
मौसमी मार और फसलों के नष्ट होने से अर्जेंटीना 99 फीसद की महंगाई झेल रहा है. इस देश को स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तर पर लोन रीपेमेंट की परेशानियों से जूझना पड़ रहा है. आईएमएफ के कर्ज का बोझ भी पहाड़ बनता जा रहा है. अर्जेंटीना की पूरी कमाई अनाजों के निर्यात पर निर्भर करती है, मगर निर्यात गिरने से इस देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी तेजी से गिरता जा रहा है. ऐसे में आईएमएफ जैसी संस्थाओं से कर्ज लेने में भी दिक्कत आएगी. विशेषज्ञों ने जीडीपी अनुमान को भी पहले से घटा दिया है.
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अर्जेंटीना में सोया ऐसी फसल है जिस पर पूरे देश की अर्थव्यवस्था निर्भर है. यहां तक कि देश में विदेशी करंसी भी इसी से आती है जो अब खतरे में पड़ गई है. निर्यात घटने से देश के सभी बंदरगाह सूने पड़ गए हैं जिससे बेकारी की समस्या बढ़ती जा रही है. अर्जेंटीना की ऐसी हालत इसलिए बनी है क्योंकि पिछले साल मई से यहां जबर्दस्त गर्मी पड़ रही है. रिपोर्ट कहती है, 2022/23 सीजन में अर्जेंटीना में कम से कम आठ लू के थपेड़े लग चुके हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं, अगर भविष्म में बारिश नहीं होती है तो सोया और मक्के का उत्पादन और तेजी से गिर सकता है. अनुमान है कि इस बार 1996/97 के बाद सबसे कम सोया का उत्पादन होगा. इन सभी परिस्थितियों का प्रभाव केवल अर्जेंटीना पर ही नहीं बल्कि उन सभी देशों पर होगा जो इनके निर्यात पर निर्भर हैं. अर्जेंटीना से निर्यात गिरने से बाकी देशों में सोया, कॉर्न और गेहूं जैसी उपजों की महंगाई बढ़ जाएगी.
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