भारत में खरीफ सीजन के अंतर्गत सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर धान की फसल लगाई जाती है. धान की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है फिर उसके बाद खेतों में धान की रोपाई होती है. रोपाई के जरिए धान की खेती के लिए बीज एवं नर्सरी का प्रबंधन एक प्रमुख कार्य है. धान की खेती के लिए सही बीज का चुनाव करना बेहद आवश्यक माना जाता है. इसके लिए अधिक उत्पादन देने वाली प्रतिरोधक किस्मों का किसानों को चुनाव करना चाहिए. बीज के बेहतर अंकुरण के लिए सर्टिसाइड बीज लेना चाहिए और फिर बीज को फफूद नाशक कीटनाशक से उपचारित करने के बाद बोलना चाहिए जिससे कि बेहतर तरीके से बीज का अंकुरण हो सके . वहीं धान की रोपाई के शुरुआती दौर में खरपतवार नियंत्रण काफी जरूरी बनाया गया है. सही समय पर खरपतवार का नियंत्रण नहीं किया गया तो इससे धान की फसल की बढ़वार प्रभावित होती है.
लखनऊ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ दीपक राय ने किसानों को दोस्ती के माध्यम से बताया कि वर्तमान में धान की नर्सरी की तैयारी किसानों के द्वारा की जा रही है. वहीं इस दौरान तैयार नर्सरी को किसान अब धान की रोपाई भी करने लगे हैं. वहीं कई किसानों की शिकायत होती है कि उनकी नर्सरी अचानक पीली पड़ने लगी है. ऐसे में किसानों को नर्सरी के 100 स्क्वायर मीटर में डेढ़ किलोग्राम यूरिया और ढाई सौ ग्राम जिंक सल्फेट का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे पीलेपन की समस्या का निवारण होता है.
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कृषि विज्ञान केंद्र लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ दीपक राय ने बताया कि धान की फसल में खरपतवार एक बड़ी समस्या होती है. रोपाई एक 2 दिन के भीतर ही खरपतवार नासी दवा का छिड़काव किया जा सकता है. इसके लिए पेंडीमेथिलीन नाम की दवा का 3ml प्रति लीटर का छिड़काव 1 एकड़ के लिए करना चाहिए. वही फिर रोपाई के 20 से 22 दिन बाद भी चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिए बिस्पारिबैक सोडियम का छिड़काव करना चाहिए. इससे खरपतवार का पूरा नियंत्रण होगा और धान के पौधे की बढ़वार प्रभावित नहीं होगी. अगर किसान इन उपायों को अपनाता है तो उसकी फसल की पैदावार अच्छी होगी. ज्यादातर किसान इन उपायों को समय रहते नहीं अपनाते हैं जिससे खेत में अधिक खरपतवार हो जाते हैं और फसल की वृद्धि प्रभावित हो जाती है.
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