National Horticulture Mission: विंध्य क्षेत्र के बाद अब बुंदेलखंड में भी किसानों को तरक्की की राह दिखाएगी चिरौंजी की खेती
यूपी में खेती-बाड़ी के लिहाज से बेहद चुनौती भरे इलाके के रूप में चर्चित बुंदेलखंड क्षेत्र में अब तक उपेक्षित रही चिरौंजी की खेती वनवासी समुदायों के साथ अन्य किसानों के लिए भी समृद्धि की वाहक बनेगी. उद्यान विभाग ने बागवानी फसलों के जरिए बुंदेलखंड के किसानों की तकदीर बदलने का जो प्लान बनाया है, उसमें चिरौंजी के अलावा खट्टे फलों की खेती पर भी जोर दिया है.
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यूपी सरकार देगी बुंदेलखंड में चिरौंजी और खट्टे फलों की खेती को बढ़ावा, फोटो: साभार फ्रीपिक
केंद्र सरकार ने बंजर और अनुपजाऊ जमीनों की प्रचुरता वाले इलाकों में किसानों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर लाने के लिए बागवानी फसलों को बढ़ावा देने की मुहिम शुरू की है. इसके लिए देशव्यापी स्तर पर राष्ट्रीय बागवानी मिशन यानी National Horticulture Mission चल रहा है. इसमें क्षेत्र विशेष में मौसम एवं अन्य हालात के अनुरूप उगाई जा सकने वाली बागवानी फसलों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. इस कड़ी में चिरौंजी की खेती को भी व्यावसायिक तरीके से करने की पहल हुई है. इसके फलस्वरूप विंध्य क्षेत्र के बाद अब बुंदेलखंड में भी वनवासी समुदायों के अलावा अन्य किसानों को चिरौंजी की खेती तरक्की की राह दिखाएगी. इस मिशन के तहत बुंदेलखंड के सभी 7 जिलों में चिरौंजी के अलावा नींबू, अंजीर, खजूर और ड्रैगेन फ्रूट पर जोर दिया गया है. सरकार का दावा है कि इन फसलों के माध्यम से बुंदेलखंड के किसान चार गुना तक मुनाफा कमा सकते हैं.
बांदा कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किया मॉडल
यूपी के बुंदेलखंड इलाके में मौसम और मिट्टी के लिहाज से योगी सरकार ने बागवानी मिशन के तहत परंपरागत खेती की जगह बागवानी फसलों की खेती को प्रमुखता से प्रोत्साहन दिया है. इसमें बांदा एवं चित्रकूट के जंगली इलाकों में चिरौंजी की खेती के व्यावसायिक तरीकों से किसानों को जोड़ने के उपाय किए जा रहे है. अभी तक इन इलाकों में वनवासी समुदायों के लोग जंगल से चिरौंजी एकत्र कर स्थानीय बाजार में मामूली कीमत पर बेच देते हैं.
मुख्य मेवा के रूप में चिरौंजी की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए बांदा स्थित कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की टीम ने चिरौंजी एवं खट्टे फलों की खेती का मॉडल तैयार किया है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि इस मॉडल को तैयार करने के लिए किए गए शोध के दौरान इन फलों की विभिन्न प्रजातियों को कम पानी का इस्तेमाल करके उपजाने के बेहतर परिणाम मिले हैं.
प्राकृतिक तरीके से बागवानी खेती पर जोर
विश्वविद्यालय के कुलपति नरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड इलाके में मौसम की अनिश्चितता के कारण किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. किसानों को इस स्थिति से उबारने के लिए बनाया गया मॉडल कृषि के विविधीकरण पर आधारित है. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की टीम ने नींबू, अंजीर, पिंड खजूर और ड्रैगन फ्रूट पर 4 साल से चल रहे शोध के आधार पर इन फसलों को उपजाने के मॉडल से किसानों को रूबरू कराया है. उन्होंने कहा कि इस मॉडल को पूरे बुंदेलखंड में विस्तारित करने की आवश्यकता है.
कुलपति ने कहा कि इस इलाके के किसानों को आगे आकर पारंपरिक खेती के साथ बागवानी फसलों के जरिए अपनी आय को बढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस मॉडल के तहत बागवानी फसलों के लिए जरूरी गोबर की खाद की आपूर्ति के लिए नंदी अभ्यारण्य भी बनाए जा रहे हैं. इससे न केवल बुंदेलखंड में आवारा जानवरों की गंभीर समस्या से किसानों को निजात मिलेगा, बल्कि इनमें छुट्टा गोवंश के लिए खुले स्थान पर रहने से इनके गोमूत्र और गोबर का उपयोग प्राकृतिक खेती में किया जा रहा है.
चिरौंजी की 74 किस्मों पर हुआ रिसर्च
विश्वविद्यालय के फल विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ अखिलेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 2018-19 से ही फलों की विभिन्न किस्मों पर वैज्ञानिकों की टीम शोधरत है. इनमें नींबू की विभिन्न प्रजातियों, मुसब्बी, किन्नू और संतरा पर किए गए शोध के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं. इसके आधार पर अब बुंदेलखंड के बांदा और हमीरपुर में किसानों को इन फलों की खेती कराई जा रही है. उन्होंने कहा कि इस मॉडल पर काम कर रहे किसानों की आय में इजाफे को भी शोध में शामिल किया गया. इस पहलू पर भी उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले हैं.
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि इसके अलावा शुष्क फल यानी Dry Fruit की श्रेणी में शुमार चिरौंजी, आंवला, बेर, बेल और महुआ पर भी शोध किया गया. देसी किस्म के इन शुष्क फलों में चिरौंजी की सबसे ज्यादा 74 किस्मों पर शोध किया गया. इसके आधार पर चिरौंजी की खेती को जंगल और जंगल से बाहर खेतों में लाने के उपाय तेज किए गए हैं. इसके व्यावसायिक उत्पादन के बारे में किसानों को प्रशिक्षित कर खेती कराई जाएगी.
बुंदेलखंड के किसान उगा सकेंगे ड्रैगन फ्रूट और अंजीर
डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि शोध से पता चला है कि बाजार में काफी अधिक कीमत दिलाने वाले फल ड्रैगन फ्रूट की बुंदेलखंड में खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं. शोध के मुताबिक बुंदेलखंड में किसान एक हेक्टेयर में ड्रैगन फ्रूट के 555 पौधे लगा सकते हैं. हर पौधे से 40 से 50 किग्रा तक ड्रैगन फ्रूट मिलता है. उन्होंने बताया कि एक बार के सुरक्षित निवेश वाली इस फसल में पहली उपज में तकरीबन 1500 रुपये प्रति पौधे की लागत आती है.
उन्होंने बताया कि इसके रखरखाव पर ही किसानों की अधिकतम लागत आती है. इसके बाद इससे कई दशक तक फल प्राप्त होते हैं. इसी प्रकार टिशू कल्चर से पिंड खजूर के पौधों पर भी रिसर्च किया गया है. डाॅ श्रीवास्तव ने बताया कि बुंदेलखंड इलाके में बीजों से खजूर रोपने पर फलत में 12 से 15 साल लग जाते हैं. मगर शोध में टिशू कल्चर से लगाए गए पेड़ से 4 साल बाद ही फल मिलने लगते हैं. खजूर के इन फलों से छोहारा बनाकर किसान अपनी आमदनी में कई गुना इजाफा कर सकते हैं.
उन्होंने बताया कि इसी प्रकार महंगे ड्राई फ्रूट में शुमार अंजीर भी अब बुंदेलखंड में उगाया जा सकता है. अंजीर का पौधा तीन साल में फल देने लगता है. इसकी फल देने की क्षमता 12 किग्रा तक है. डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि अंजीर जल्द खराब होने वाला फल है, इसलिए इसकी प्रोसेसिंग करने की जरूरत पड़ती है. इसकी प्रोसेसिंग भी बुंदेलखंड के किसानों की आय बढ़ाने का जरिया बन सकती है. इस प्रकार अंजीर की खेती के लिए भी बुंदेलखंड के हालात मुफीद हैं.