नई अरहर प्रजाति से बदलेगी किसानों की तकदीर, 125 दिन में तैयार; उत्पादन 2.5 टन प्रति हेक्टेयर

नई अरहर प्रजाति से बदलेगी किसानों की तकदीर, 125 दिन में तैयार; उत्पादन 2.5 टन प्रति हेक्टेयर

Arhar Pulse New Variety: इक्रीसेट के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने लखनऊ स्थित उपकार परिसर का दौरा किया. उपकार के महानिदेशक डॉ. संजय सिंह से उनकी लंबी बैठक हुई. बैठक में कृषि अनुसंधान और तकनीकी सहयोग को मजबूत करने के लिए तीन वर्षीय एमओयू पर सहमति बनी.

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नई अरहर प्रजाति से बदलेगी किसानों की तकदीर, 125 दिन में तैयार; उत्पादन 2.5 टन प्रति हेक्टेयरअरहर की नई प्रजाति को किसी भी मौसम में बोया जा सकता है.

प्रदेश के किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में एक और ठोस कदम बढ़ाया गया है. अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान इक्रीसेट और उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) के बीच सोमवार को एक अहम बैठक हुई. बैठक में अरहर की एक नई प्रजाति ICPV-25444 को प्रदेश के लिए उपयुक्त मानते हुए उसका व्यापक परीक्षण करने और इसे किसानों तक पहुंचाने पर सहमति बनी.

यह प्रजाति 120 से 125 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर दो से ढाई टन तक उपज देती है. खास बात यह है कि इसे किसी भी मौसम में बोया जा सकता है और यह 44 डिग्री तक की गर्मी भी सह सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक. इसकी ऊंचाई धान जैसी होती है. इसलिए इसे गन्ने के साथ अंतःफसल के तौर पर भी उगाया जा सकता है.

किसानों के लिए नई उम्मीद

इक्रीसेट के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने लखनऊ स्थित उपकार परिसर का दौरा किया. उपकार के महानिदेशक डॉ. संजय सिंह से उनकी लंबी बैठक हुई. बैठक में कृषि अनुसंधान और तकनीकी सहयोग को मजबूत करने के लिए तीन वर्षीय एमओयू पर सहमति बनी. इसके तहत दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने. जलवायु अनुरूप खेती को बढ़ावा देने और श्रीअन्न जैसे पोषक अनाजों को लोकप्रिय बनाने पर संयुक्त कार्ययोजना तैयार की जाएगी. डॉ. पाठक ने कहा कि बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में अरहर. बाजरा और कोदो जैसी फसलों के जरिए किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है. इसके लिए एक विस्तृत अध्ययन कर रणनीति बनाई जाएगी.

बुंदेलखंड में बनेगा कृषि नवाचार मॉडल

बुंदेलखंड क्षेत्र को दलहन और श्रीअन्न के लिए हॉटस्पॉट मानते हुए दोनों संस्थाओं ने इस इलाके में संयुक्त प्रयासों को तेज करने का निर्णय लिया है. डॉ संजय सिंह ने बताया कि इस साझेदारी से प्रदेश के किसान आधुनिक बीज. नई तकनीक और जलवायु अनुकूल कृषि प्रणाली से जुड़ेंगे. इससे उत्पादन के साथ-साथ बाजार में प्रतिस्पर्धा की क्षमता भी बढ़ेगी.

प्रस्तावित जीन बैंक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग

बैठक में प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में जीन बैंक की स्थापना को लेकर भी गंभीर चर्चा हुई. इसका उद्देश्य स्थानीय और लुप्तप्राय फसलों की जर्मप्लाज्म को संरक्षित करना और भावी अनुसंधान के लिए आधार तैयार करना है. प्रस्ताव है कि इक्रीसेट हैदराबाद में शीघ्र ही एक विशेष बैठक बुलाई जाएगी. जिसमें उपकार और राज्य के सभी कृषि विश्वविद्यालयों के प्रमुख भाग लेंगे.

पहले भी हुए हैं अंतरराष्ट्रीय करार

उपकार पहले भी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी कर चुका है. कुछ समय पहले ही CIMMYT के साथ मक्के की उत्पादकता बढ़ाने के लिए समझौता हुआ था. अब दलहन और श्रीअन्न पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. इस साझेदारी से किसानों को बेहतर बीज. फसल सुरक्षा तकनीक और वैश्विक मानकों पर खरा उतरने वाला उत्पादन मिलेगा. आने वाले समय में यह सहयोग प्रदेश को कृषि नवाचार और आय वृद्धि में अग्रणी बना सकता है.

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