आपने हाल ही में गेहूं या आटा किस भाव पर खरीदा था? भाव जो भी लेकिन इतना तो तय ही है कि आपको हर बार बढ़े हुए दाम का सामना करना पड़ा होगा. मतलब रोटी महंगी हो रही है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि गेहूं की कीमतें आसमान छू रही हैं. लेकिन, बंपर पैदावार, एक्सपोर्ट बैन और सरकारी गोदामों में पर्याप्त भंडार के बावजूद आखिर क्यों गेहूं और उसका आटा महंगा हो रहा है? यह सवाल आपके मन में भी बार-बार ही उठता होगा. सरकार ने रियायती दर पर गेहूं बेचने और व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट लगाने जैसे कई प्रयोग कर लिए हैं लेकिन दाम की रफ्तार रुक नहीं रही है. जबकि गेहूं का उत्पादन इसकी घरेलू मांग से अधिक हुआ है. तो सवाल यह है कि क्या किसानों ने गेहूं को अपने पास स्टोर किया हुआ है या फिर व्यापारी मुनाफा कमाने के लिए कोई खेल कर रहे हैं?
सबसे पहले हम इसके आधिकारिक दाम को समझ लेते हैं. उपभोक्ता मामले मंत्रालय के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के मुताबिक 22 अक्टूबर 2024 को देश में गेहूं का औसत दाम 31.36 रुपये, अधिकतम 58 और न्यूनतम 22 रुपये प्रति किलो था. जबकि आटा का औसत भाव 36.51, अधिकतम 70 और न्यूनतम दाम 29 रुपये प्रति किलो था. हालांकि, गेहूं का एमएसपी यानी सरकारी रेट 22.75 रुपये प्रति किलो ही है. ये तो रहा देश में गेहूं के दाम का हाल. अब जरा मंडी भाव को भी समझ लेते हैं.
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केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 22 अक्टूबर 2024 को गेहूं का थोक दाम 27.34 रुपये प्रति किलो रहा. जबकि पिछले साल इसी दिन दाम 23.82 रुपये ही था. यानी एक साल में दाम 14.81 फीसदी बढ़ गए हैं. तीन साल पहले यानी 22 अक्टूबर 2021 को दाम 19.84 रुपये प्रति किलो था. यानी तीन साल में गेहूं का मंडी भाव 37.79 फीसदी बढ़ चुका है. इससे किसानों को तो फायदा मिल रहा है लेकिन उपभोक्ता परेशान हैं.
कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि बफर स्टॉक कम और अधिक होने का दाम पर असर पड़ता है. लेकिन, भारत में गेहूं का पर्याप्त सरकारी भंडार भी मौजूद है. इसकी तस्दीक खुद केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट कर रही है. एक अक्टूबर को भारत के पास बफर स्टॉक के नॉर्म्स से 32.63 लाख टन अधिक गेहूं मौजूद था. नॉर्म्स के अनुसार सरकारी भंडार में हर साल एक अक्टूबर को 205.20 लाख टन गेहूं होना चाहिए, जबकि हमारे पास 237.83 लाख टन का भंडार मौजूद था.
नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में गेहूं की खपत का जिक्र किया है. इसके मुताबिक 2021-22 में गेहूं की मांग 971.20 लाख टन थी, जिसे 2028-29 में बढ़कर 1070.8 लाख टन होने का अनुमान है. इस हिसाब से 2024 में गेहूं की मांग 1001 लाख टन है. दूसरी ओर, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने दावा किया है कि 2023-24 में गेहूं का उत्पादन 1132.92 लाख मीट्रिक टन हुआ है, जो पिछले साल से 27.38 लाख मीट्रिक टन ज्यादा है. ऐसे में गेहूं संकट जैसी कोई स्थिति नहीं है. अगर संकट नहीं है तो दाम भी नहीं बढ़ना चाहिए.
दरअसल, बाजार कुछ बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि कई व्यापारी और किसान अच्छे दाम की उम्मीद में गेहूं को स्टॉक कर रहे हैं. इस वजह से दाम बढ़ रहे हैं. रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रमोद कुमार एस भी इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. 'किसान तक' से बातचीत में कुमार ने कहा कि कुछ बड़े खिलाड़ियों ने गेहूं को स्टॉक किया हुआ है. उनको स्टॉक लिमिट से छूट भी मिली हुई है. ऐसे में अगर गेहूं और आटा सस्ता करना है तो आयात ही बड़ा विकल्प है. कम से कम 50 लाख टन गेहूं का आयात हो तब जाकर बाजार में नरमी आएगी. लेकिन आयात तब हो पाएगा जब जीरो इंपोर्ट ड्यूटी कर दी जाए.
अभी गेहूं आयात पर 40 फीसदी ड्यूटी है. इतनी ड्यूटी के साथ गेहूं लाना बहुत महंगा पड़ेगा. इस समय अगर सरकार जीरो इंपोर्ट ड्यूटी पर गेहूं आयात करने की अनुमति दे, तो भी रूस से भारत के तूतीकोरिन पोर्ट, तमिलनाडु में गेहूं लाने पर भाड़ा सहित उसका दाम 2700 रुपये प्रति क्विंटल पड़ेगा. जो भारत में चल रहे गेहूं के दाम से थोड़ा कम होगा. ऐसे में अगर सरकार को गेहूं का दाम कम करके जनता को सस्ती रोटी खिलानी है तो गेहूं पर लगी 40 फीसदी ड्यूटी को खत्म करके आयात की अनुमति देनी होगी.
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