पंजाब की धान की खेती को लेकर अक्सर विशेषज्ञों की तरफ से चिंताएं जताई गई हैं. अब एक और 'महारथी' ने राज्य में जारी धान की खेती पर बड़ा बयान दिया है. जाने माने कृषि विज्ञानी और जीन साइंस में महारत हासिल करने वाले डॉक्टर गुरदेव सिंह खुश ने राज्य में धान की खेती को लेकर गहरी चिंता जताई है. दिलचस्प बात है कि उन्हें चिंता उन किस्मों की खेती को लेकर है जो उन्होंने ही डेवलप की थीं. आपको बता दें उन्हें साल 1996 में विश्व खाद्य पुरस्कार से नवाजा गया था. उस समय उन्हें 'जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के समय में चावल की ग्लोबल सप्लाई को बढ़ाने और सुधारने' पर किए गए उनके कामों की वजह से सम्मानित किया गया था.
अखबार द ट्रिब्यून को दिए एक खास इंटरव्यू में डॉक्टर खुश ने कई अहम बातें कही हैं. उन्होंने कहा, 'मुझे यह देखकर बहुत दुख होता है कि मेरे द्वारा विकसित धान की फसलें पंजाब में खेती की कमजोरी साबित हो रही हैं और इसके जल भंडार खत्म हो रहे हैं.' दुनिया भर में उगाई जाने वाली चावल की 300 से ज्यादा किस्मों को विकसित करने वाले डॉक्टर खुश ने कहा, 'चावल लाखों लोगों के जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन पंजाब को इसे और ज्यादा उगाना बंद कर देना चाहिए.'
उनका कहना था कि भूमिगत जल तेजी से सूख रहा है और वह रेगिस्तानों को 'पांच नदियों की भूमि' में बढ़ते हुए देख सकता हैं. उनका कहना था कि किसानों को मौजूदा गेहूं-धान चक्र से बाहर निकालने का एकमात्र तरीका यह है कि सरकार उन्हें दालों, सोयाबीन और सरसों जैसी फसलों पर सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दे. सन् 1996 में डॉक्टर खुश फिलीपींस में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI)के साथ काम कर रहे थे जब उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया था.
डॉ. खुश का कहना था, 'खाद्य उत्पादन बढ़ाना आज मानव जाति के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. 2050 तक हमें अपने खाद्य उत्पादन में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी. मेरा मानना है कि उच्च पैदावार वाली फसल किस्मों को विकसित करने के लिए ऊतक संवर्धन, मॉलिक्यूलर मार्कर टेक्नोलॉजी, जीन इंजीनियरिंग और ऐसे विषय जरूरी हैं.' 22 अगस्त 1933 को खटकर कलां जिसे आज शहीद भगत सिंह नगर के नाम से जानते हैं, वहां पर डॉक्टर खुश का जन्म हुआ था. भले ही वह आज देश से बाहर हों लेकिन पंजाब एग्रीकल्चा यूनिवर्सिटर के रेगुलर विजिटर हैं. वह अक्सर यूनिवर्सिटी आते हैं.
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