
लोकसभा चुनाव में भारी नुकसान झेलने के बाद भी बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार अभी किसानों के मुद्दे पर कोई सबक लेने को तैयार नहीं दिखाई दे रही है. इस बार प्याज किसानों ने महाराष्ट्र में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को बड़ा झटका दिया है. उनकी नाराजगी की वजह से बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सीटें काफी कम हो गई हैं. इसके बावजूद फिर से किसानों को दाम के ही मुद्दे पर छेड़ने की कोशिश शुरू कर दी गई है. सहकारी एजेंसी नेफेड किसानों के लिए विलेन के तौर पर सामने आ रही है. इस बार महाराष्ट्र में अच्छी गुणवत्ता के प्याज का दाम 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहा है तो दूसरी ओर नेफेड बफर स्टॉक के लिए सिर्फ 2550 रुपये प्रति क्विंटल पर प्याज खरीदना चाहता है.
पिछले सप्ताह तो उसने 2105 रुपये का दाम तय किया था, जो पिछले साल से भी कम है. पिछले साल सरकार ने 2410 रुपये के भाव पर 2 लाख टन प्याज खरीदने का एलान किया था. सवाल यह है कि किसानों के हितों को पूरा करने के लिए बनाया गया नेफेड क्यों अब किसानों का गला काटकर कंज्यूमर के हितों को साधने का काम करने लगा है. नेफेड का पूरा नाम नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन है. इसमें कहीं भी कंज्यूमर नहीं है. इसकी स्थापना 2 अक्टूबर 1958 को किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से की गई थी. कृषि उपज की सहकारी मार्केटिंग करना इसका मकसद था. लेकिन लगता है कि इसके सदस्य और अधिकारी अपनी संस्था की स्थापना का मकसद भी अब भूल चुके हैं. इसलिए वो अब किसानों की बजाय कंज्यूमर के फायदे के लिए काम कर रहे हैं.
इसे भी पढ़ें: Wheat Price: गेहूं संकट का सामना कर रहा भारत! बंपर पैदावार के बावजूद क्यों बढ़ रहे हैं दाम?
नफेड के अधिकारी कहते हैं कि वो किसानों को फायदा दिलाने के लिए उनसे प्याज खरीदते हैं. लेकिन, असल में यह सफेद झूठ है. किसानों को फायदा दिलाना उनका मकसद ही नहीं है. उनका मकसद कंज्यूमर को सस्ता प्याज देना है, भले ही किसानों को इससे नुकसान क्यों न हो जाए. वरना वो कभी भी बाजार भाव से कम दाम पर प्याज खरीदने की पेशकश नहीं करते. दूसरी बात यह है कि आपको प्याज के बफर स्टॉक की जरूरत क्यों पड़ी है. क्या प्याज पीडीएस में दी जाने वाली कोई कृषि उपज है या फिर ऐसी कोई उपज है जिसके बिना गरीबों की भूख नहीं मिटेगी.
नेफेड को किसानों का हितैषी उस दिन माना जाता जब वो बाजार भाव से अधिक कीमत पर मंडियों में स्टॉल लगाकर किसानों से सीधे खरीद करती. किसान लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि नेफेड की खरीद पारदर्शी नहीं है. न तो उसका दाम तय करने का तौर-तरीका कभी किसी को समझ में आया.
कुछ लोगों को यह लग सकता है कि नेफेड बहुत महान काम कर रहा है कि वो पांच लाख टन प्याज खरीद रहा है. दरअसल, पांच लाख टन प्याज ऊंट के मुंह में जीरा है. क्योंकि इस देश में सालाना करीब 300 लाख टन प्याज पैदा होता है. अगर नेफेड बाजार भाव से ज्यादा दाम पर भी प्याज खरीद ले तो फिर पांच लाख टन कुल उत्पादन का कितना प्रतिशत हुआ. सिर्फ पौने दो फीसदी. क्या इतने से किसानों का हित सध जाएगा. वो भी तब जब नेफेड की खरीद को किसान पारदर्शी नहीं बताते. क्योंकि वो सीधे मंडियों में आकर किसानों से प्याज नहीं खरीदता.
दरअसल, बफर स्टॉक के लिए प्याज की यह खरीद किसानों पर ही भारी पड़ती है. किसानों के लिए बनी यह संस्था पहले तो बाजार भाव या उससे भी कम कीमत पर अव्वल दर्जे के प्याज को खरीदकर रख लेती है और जब मार्केट में दाम बढ़ने लगता है तो उसे कम करवाने के लिए उसी प्याज को बाजार भाव से कम दाम पर बाजार में उतार देती है. इससे बना बनाया बाजार खराब हो जाता है. एक तरह से नेफेड किसानों के लिए भस्मासुर बन जाता है. क्योंकि दाम गिरने लगता है. इससे किसानों को नुकसान होता है. इसलिए बफर स्टॉक किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है. जिसे भरने का काम नेफेड कर रहा है.
इस साल सरकार ने बफर स्टॉक के लिए पांच लाख टन प्याज खरीदने का लक्ष्य रखा है. इसकी जिम्मेदारी नेशनल कॉपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी एनसीसीएफ और नेफेड को दी गई है. एनसीसीएफ तो कंज्यूमर के लिए ही बनी है लेकिन नफेड का काम किसानों के हितों की रक्षा करना है. इसके बावजूद वह किसानों को ही नुकसान पहुंचाने वाले काम कर रहा है. बताया गया है कि किसानों को कम दाम ऑफर करने की वजह से अब तक बफर स्टॉक का सिर्फ 10 प्रतिशत भी माल नहीं खरीदा गया है. जब नफेड बाजार भाव से कम दाम देगा तो फिर कैसे उसकी खरीद पूरी हो सकती है.
महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि जब किसानों को बाजार में दाम ज्यादा मिल रहा है तो कोई सहकारी एजेंसी कम दाम पर खरीदने की पेशकश कैसे कर सकती है. इससे पता चलता है कि सहकारी एजेंसियों और सरकार की मंशा किसानों को लेकर कितनी खराब है. उन्हें सिर्फ कंज्यूमर के आंसू दिखाई देते हैं लेकिन किसान का दर्द वो समझने के लिए तैयार नहीं हैं. अगर सरकार का यही रवैया रहा तो विधानसभा चुनाव में उसे और बड़ा नुकसान होगा.
हालांकि, नेफेड के एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नेफेड ने न तो बफर स्टॉक बनाया और न तो दाम तय कर रहा है. उपभोक्ता मामले के मंत्रालय ने उसे खरीद की एजेंसी बनाया है. किसानों से खरीद का दाम खुद उपभोक्ता मामले मंत्रालय तय कर रहा है. इसमें नेफेड की कोई भूमिका नहीं है. फिर भी नेफेड पर सवाल तो उठेंगे ही, क्योंकि नेफेड का काम किसानों के हितों की रक्षा करना है न कि कंज्यूमर के.
इसे भी पढ़ें: आजादी के 75 साल बाद भी मंडियों की कमी से जूझ रहे किसान, कैसे मिलेगा कृषि उपज का अच्छा दाम?
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today