Wheat Price: गेहूं के बढ़ते दाम पर क्यों लगा ब्रेक, क्या आयात की 'अफवाह' ने क‍िसानों का क‍िया नुकसान? 

Wheat Price: गेहूं के बढ़ते दाम पर क्यों लगा ब्रेक, क्या आयात की 'अफवाह' ने क‍िसानों का क‍िया नुकसान? 

देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक उत्तर प्रदेश की मंड‍ियों में 2500 रुपये के अंदर आ गया है गेहूं का दाम. कुछ बाजार व‍िशेषज्ञों का कहना है क‍ि व्यापार‍ियों द्वारा गेहूं इंपोर्ट को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम की वजह से ऐसा हुआ है. सवाल यह है क‍ि बंपर पैदावार के बावजूद रोलर फ्लोर म‍िलर्स क्यों बना रहे हैं गेहूं आयात का माहौल? 

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Wheat Price: गेहूं के बढ़ते दाम पर क्यों लगा ब्रेक, क्या आयात की 'अफवाह' ने क‍िसानों का क‍िया नुकसान? गेहूं आयात हुआ तो क‍िसानों को होगा नुकसान.

रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं के बढ़ते भाव पर लगाम लगती नजर आ रही है. देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक सूबे उत्तर प्रदेश में इसका दाम 2500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल से नीचे आ गया है, यह उपभोक्ताओं के ल‍िए तो अच्छी बात है लेक‍िन मार्केट के इस ट्रेंड ने उन क‍िसानों की टेंशन बढ़ा दी है ज‍िन्होंने अच्छे दाम की उम्मीद में इसे स्टोर करके रखा हुआ था. उत्तर प्रदेश देश का करीब 35 फीसदी गेहूं पैदा करता है, ऐसे में यहां से दाम का ट्रेंड सेट होता है. कुछ बाजार व‍िशेषज्ञों का कहना है क‍ि व्यापार‍ियों द्वारा गेहूं इंपोर्ट को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम की वजह से ऐसा हुआ है. अगर गेहूं सच में इंपोर्ट हो गया तो क‍िसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. 

उत्तर प्रदेश के वर‍िष्ठ कृष‍ि पत्रकार टीपी शाही का कहना है क‍ि देश में गेहूं का बंपर उत्पादन हुआ है. गेहूं का उत्पादन खपत के मुकाबले अध‍िक है. ऐसे में सरकार को आयात के बारे में सोचना भी नहीं चाह‍िए. क्योंक‍ि गेहूं का आयात होते ही क‍िसानों को भारी नुकसान होगा. दाम ग‍िर जाएगा. अगर सरकारी नीत‍ियों की वजह से दाम ग‍िरेगा तो क‍िसानों में सरकार के प्रत‍ि नाराजगी बढ़ेगी. व्यापारी स‍िर्फ अपने ह‍ितों को साधने के ल‍िए आयात की बात कर रहे हैं. उनकी मंशा महंगाई कंट्रोल करना ब‍िल्कुल नहीं है. गेहूं आयात की खबरों और अफवाहों से मार्केट का सेंटीमेंट खराब हो रहा है और इससे दाम ग‍िर रहे हैं.  

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सरकार को नहीं बेचा गेहूं 

देश में गेहूं की सरकारी खरीद प्रक्रिया 30 जून को खत्म हो रही है. इस बीच आंकड़ों से साफ हो रहा है क‍ि काफी क‍िसानों ने या तो गेहूं को अपने पास रोक कर रखा हुआ है या फ‍िर उन्होंने सरकार को बेचने की बजाय व्यापार‍ियों को बेचा है. इस वर्ष देश के 37,05,048 क‍िसानों ने सरकार को गेहूं बेचने के ल‍िए रज‍िस्ट्रेशन करवाया था, लेक‍िन स‍िर्फ 21,03,271 क‍िसानों ने ही बेचा. उत्तर प्रदेश में 4,09,289 क‍िसानों ने रज‍िस्ट्रेशन करवाया था, लेक‍िन महज 1,51,615 ने ही एमएसपी पर सरकार को अपना गेहूं बेचा. ऐसे में साफ है क‍ि बड़े क‍िसानों ने प‍िछले तीन साल के दाम के ट्रेंड को देखते हुए अभी अपने पास गेहूं रोका हुआ है, ताक‍ि बाजार में तेजी आने पर फायदा हो.

भारत में गेहूं की मांग और उत्पादन.

क‍ितना चल रहा है दाम 

केंद्र सरकार के ऑनलाइन ट्रेड‍िंग प्लेटफॉर्म 'ई-नाम' के अनुसार 26 जून को पूर्वांचल की बस्ती मंडी में गेहूं का न्यूनतम दाम स‍िर्फ 2,390 और अध‍िकतम 2,400 रुपये रहा. बुंदेलखंड में आने वाले जालौन ज‍िले की अनाज मंडी में न्यूनतम और अध‍िकतम दाम स‍िर्फ 2,355 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. उधर, सीतापुर में 2,410 रुपये दाम रहा. लखीमपुर में न्यूनतम दाम 2,350 और अध‍िकतम 2,390 रुपये रहा. यह दाम एमएसपी यानी 2275 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल से बहुत अध‍िक नहीं है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में तो 2400 रुपये पर सरकारी खरीद हुई है, क्योंक‍ि राज्य सरकार ने 125 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल का बोनस द‍िया है. 

आवक का क्या है हाल 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िसर्च र‍िपोर्ट में बताया गया है क‍ि 1 से 26 जून के बीच उत्तर प्रदेश में बेचने के ल‍िए 8,03,049 टन गेहूं की आवक हुई है, जो 2023 की इसी अवध‍ि के मुकाबले 10 फीसदी अध‍िक है. प‍िछले साल यानी 1 से 26 जून 2023 के बीच यूपी में 7,27,222 टन गेहूं की आवक हुई थी. जाह‍िर है क‍ि क‍िसान इस साल अच्छे दाम की उम्मीद में ओपन मार्केट में गेहूं बेचना चाहते हैं, लेक‍िन आयात की अफवाह ने गेहूं के बढ़ते दाम पर फ‍िलहाल ब्रेक लगा द‍िया है. 

आयात का खेल क्या है? 

सरकार ने इस साल 1129 मीट्र‍िक टन गेहूं उत्पादन का अनुमान जारी क‍िया है. जबक‍ि आटे का कारोबार करने वाले रोलर फ्लोर म‍िलर्स की ओर से लगातार यह माहौल बनाया जा रहा है क‍ि सरकार द्वारा जारी गेहूं उत्पादन के आंकड़े गलत हैं. म‍िलर्स यह माहौल रहे हैं क‍ि अगर गेहूं आयात नहीं क‍िया गया तो देश में गेहूं के दाम बहुत तेजी से बढ़ जाएंगे. 

हालांक‍ि, सरकार ने उन्हें आयात करने से रोका नहीं है. लेक‍िन वर्तमान कंडीशन में अगर वो आयात करते हैं तो माल भाड़ा और 40 फीसदी ड्यूटी लगाकर दाम 3000 रुपये क्व‍िंटल तक पहुंच जाएगा, जो मुनाफे का सौदा नहीं होगा. क्योंक‍ि उससे सस्ता गेहूं तो अपने ही देश में उपलब्ध है. दूसरे देशों में 2000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल के आसपास दाम चल रहा है. ऐसे में वो सरकार से गेहूं पर आयात शुल्क जीरो करने की मांग कर रहे हैं.

दरअसल, प‍िछले साल म‍िलर्स और सहकारी एजेंस‍ियों को सरकार ने ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत करीब 100 लाख टन सस्ता गेहूं महंगाई कम करने के नाम पर द‍िया था. सरकार को ज‍िस गेहूं की आर्थ‍िक लागत 3000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल पड़ती है उसे सरकार ने 2300 रुपये के एवरेज प्राइस पर इन म‍िलर्स को द‍िया. लेक‍िन गेहूं और आटे की महंगाई घटने की बजाय बढ़ गई. सरकार से सस्ता गेहूं लेने के बावजूद जनता को सस्ता आटा नहीं म‍िला. मुनाफा क‍िसने कमाया आप आसानी से समझ सकते हैं. 

फ‍िर द‍िक्कत क्या है? 

इस साल सरकार के पास गेहूं का इतना स्टॉक नहीं है क‍ि वो प‍िछले वर्ष की तरह 100 लाख टन सस्ता गेहूं म‍िलर्स और सहकारी एजेंस‍ियों को दे दे. आटे के कारोबार‍ियों की द‍िक्कत यही है. वो इस साल भी अपने मुनाफे के ल‍िए सरकार से सस्ता गेहूं चाहते हैं. इसल‍िए वो ऐसा माहौल बना रहे हैं क‍ि सरकार को गेहूं आयात करके अपना स्टॉक ठीक करना चाह‍िए. लेक‍िन जब प‍िछले साल 100 लाख टन गेहूं सस्ते में देने के बावजूद गेहूं और आटे की महंगाई नहीं घटी तो फ‍िर इस योजना की सार्थकता क्या है? सरकार ने प‍िछले द‍िनों साफ क‍िया है क‍ि गेहूं पर से आयात शुल्क नहीं घटाया जाएगा, फ‍िर भी व्यापारी दबाव बनाए हुए हैं. 

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