ड्रैगनफ्रूट फल एक तेजी से बढ़ने वाला बारहमासी नागफनी है. इसमें त्रिकोणीय, चौकोणीय, हरा मांसल, संयुक्त, कई शाखाओं वाला खंडनुमा तना होता है. इसके तने मुलायम और रसीले होते हैं. इस पर कांटे पाये जाते हैं जो दिखने में छोटे होते है, लेकिन बहुत ही नुकीले होते हैं इसके तने के खंड वाले भाग में हवाई जड़ें बनती हैं, ये इसको चढ़ने में मदद करती हैं. इसे पिताया, ड्रैगनफ्रूट, स्ट्रॉबेरी पियर, रात की रानी, सेरेस ट्राइएंगुलरीस आदि नामों से भी जाना जाता है.
ड्रैगन फ्रूट की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है. पहले इक्के-दुक्के किसान इस फल की खेती करते थे. लेकिन अब इसके मुनाफे को देखते हुए किसान अधिक से अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं. देश के कई राज्यों में इसकी खेती लगातार बढ़ रही है. पहले किसानों को इसकी खेती की जानकारी कम थी. इसकी खेती ऐसी है जिसमें कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
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कृषि वैज्ञानिक पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह, राजेन्द्र प्रसाद मिश्रा, राघवेन्द्र सिंह, निर्मल और सुनील कुमार बताते हैं कि कमलम फल का पौधा लगाने के लिए फरवरी-मार्च का महीना उपयुक्त माना जाता है. यह पौधा जलभराव को सहन नही कर पाता है इसलिए इसका रोपण जमीन से 60 सेंटीमीटर ऊंची क्यारी बनाकर ही करना चाहिए। क्यारी की चौड़ाई 1 मीटर तथा लंबाई आवश्यकता अनुरूप होनी चाहिए. दो क्यारी के बीच की दूरी 3 मीटर रखनी चाहिए. क्यारी को बनाने के लिए अलग से मिश्रण तैयार करना चाहिए. बलुई दोमट मृदा में एक भाग मृदा एवं एक भाग सड़ी गोबर की खाद का मिश्रण बनाना चाहिए तथा चिकनी दोमट मिट्टी में दो भाग सड़ी गोबर की खाद, दो भाग मिट्टी एवं एक भाग बालू मिलाकर मिश्रण बनाना चाहिए.
इसके पौधे को सहारे की जरूरत पड़ती है. क्यारी में 3 मीटर की दूरी पर लगभग 7.5 फीट लंबाई के ऊपर बने हुए खंभे को 2 फीट गहराई में गाड़ दिया जाता है. अगर खंभे से खंभे की दूरी 3 मीटर रखते हैं तो एक हैक्टर में 833 खंभे लगते हैं. सीमेंट के खंभे ही उपयुक्त होते हैं.प्रत्येक खंभे से 15-20 सेंटीमीटर की परिधि की दूरी पर कटिंग का रोपण किया जाता है. इस प्रकार एक हेक्टेयर में 2500 कटिंग की आवश्यकता होती है. पौधों को 15 सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए. इसके बाद एक मुट्ठी बालू को पौधों के चारों तरफ बिखेरकर दबाना चाहिए.रोपण के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए. नमी को बरकरार रखने के लिए समय-समय पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए.
ड्रैगन फ्रूट पौष्टिक, खाने में स्वादिष्ट और दिखने में सुन्दर होता है. इसका उपयोग ताजा खाने के साथ-साथ जूस, जैली, योगर्ट तथा आइसक्रीम के रूप में भी किया जाता है. इसका व्यापक रूप से रेस्तरां में जूस और फलों के सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है. इसमें कई औषधीय गुण भी होते हैं, विशेष रूप से लाल गूदे वाली किस्में एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती हैं. ताजा फल का नियमित सेवन करने से अस्थमा, खांसी, कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है. इसमें विटामिन सी, फ्लेवोनोइड एवं फाइबर की प्रचुर मात्रा होती है. यह हृदय संबंधित विकारों को दूर करने एवं आहार को सुपाच्य बनाने में सहायक होता है. इसमें फॉस्फोरस और कैल्शियम उच्च स्तर होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाने और टिश्यू निर्माण में सहायक होता है.
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