पाली के.के. वी.के. गिनी नामक घास का उत्पादन करने में सफल रहा, जो कम पानी में अधिक उत्पादन देती है. इतना ही नहीं एक बार लगाने पर इससे चार से पांच साल तक घास फसल की प्राप्ति होती है. पशुओं की बात करें तो गर्मियों में पशुओं को पानी के साथ-साथ हरे चारे की भी जरूरत होती है. वहीं, राजस्थान जैसे राज्य में जहां पानी की किल्लत हमेशा बनी रहती है, वहां के किसान कम पानी में भी इस फसल को आसानी से उगा सकते हैं. गिनी घास की खेती के लिए किसानों को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है. ऐसे में पशुपालक के लिए यह एक बेहतर विकल्प है. ऐसे में किसानों में इस फसल को लेकर उत्साह है. किसान केवल एक बार इस फसल को लगाकर बार-बार गिनी घास प्राप्त कर सकते हैं.
इतना ही नहीं, गिनी घास पशु का दूध बढ़ाने में भी बहुत मददगार है. कई किसान इस बात से चिंतित रहते हैं कि उनके पशु कम दूध देते हैं. ऐसे में ये घास उनकी समस्या का समाधान कर सकती है.
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25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद की आवश्यकता होती है. इस खाद को खेत में तैयार करते समय मिट्टी में मिला देना चाहिए. बुआई के समय 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. पंक्तियों में पोटाश मिला देना चाहिए. इसके बाद 20 किग्रा. और 10 कि.ग्रा. नाइट्रोजन का उपयोग कटाई के बाद करना चाहिए. बाद में हर साल 40 किग्रा. नाइट्रोजन का प्रयोग प्रति हेक्टेयर करना चाहिए.
यदि सिंचाई उपलब्ध हो तो गर्मी के दिनों में सिंचाई करनी चाहिए, मार्च से जून तक 20 दिन बाद सिंचाई करने से साल भर चारा उपलब्ध रहता है. वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. ऐसे में राजस्थान के किसानों और खासकर पशुपालकों के लिए यह एक बेहतर विकल्प है.
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