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क्या है कैमोमाइल चाय, जिसकी मांग तेजी से बढ़ रही है, कैसे होती है इसकी खेती

क्या है कैमोमाइल चाय, जिसकी मांग तेजी से बढ़ रही है, कैसे होती है इसकी खेती

आपने कभी न कभी नींबू की चाय, पुदीने की चाय, ग्रीन टी और अदरक की चाय का सेवन तो किया ही होगा. कभी स्वाद के लिए तो कभी सेहत के लिए. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी टी के बारे में बता रहे हैं जो इन सबसे अलग है. वह है कैमोमाइल चाय. दरअसल कैमोमाइल चाय सबसे हेल्दी ड्रिंक में से एक है. कैमोमाइल एक हर्बल चाय है जो काफी लोकप्रिय भी है.

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कैसे करें कैमोमाइल चाय की खेती कैसे करें कैमोमाइल चाय की खेती

ठंड के मौसम में अगर चाय का नाम भी ले लिया जाए तो पीने का मन अपने आप करने लगता है. हालांकि भारत एक ऐसा देश है जहां चाय की मांग सर्दी, गर्मी, बरशात सभी मौसम में रहती है. जिस वजह से यहां चाय की खेती और मांग दोनों समय के साथ बढ़ती जा रही है. भारत लगभग 1350 मिलियन किलोग्राम चाय उत्पादन के साथ दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक और सबसे बड़ा काली चाय उत्पादक है. इतना ही नहीं, भारत घरेलू आवश्यकताओं और निर्यात को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर भी है. 

देश में उत्पादित चाय का 80% घरेलू आबादी द्वारा उपभोग किया जाता है. वहीं अगर बात करें कैमोमाइल चाय की तो इसकी मांग भी तेजी से बढ़ती नजर आ रही है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है कैमोमाइल चाय और कैसे की जाती है इसकी खेती. 

क्या है कैमोमाइल चाय

आपने कभी न कभी नींबू की चाय, पुदीने की चाय, ग्रीन टी और अदरक की चाय का सेवन तो किया ही होगा. कभी स्वाद के लिए तो कभी सेहत के लिए. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी टी के बारे में बता रहे हैं जो इन सबसे अलग है. वह है कैमोमाइल चाय. दरअसल कैमोमाइल चाय सबसे हेल्दी ड्रिंक में से एक है. कैमोमाइल एक हर्बल चाय है जो काफी लोकप्रिय भी है. आपको बता दें कि कैमोमाइल मूल रूप से एक जड़ी बूटी है जो एक फूल है. यह चाय कैमोमाइल नामक फूलों की मदद से बनाई जाती है. कैमोमाइल चाय में शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं. इसमें कैफीन नहीं होता है. इसका स्वाद हल्का मीठा होता है. कैमोमाइल चाय में एंटी-इंफ्लेमेटरी और फ्लेवोनोइड तत्व पाए जाते हैं. कैमोमाइल चाय का सेवन कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकता है. कैमोमाइल चाय हृदय स्वास्थ्य के लिए अच्छी मानी जाती है. इतना ही नहीं इसके सेवन से डायबिटीज को भी नियंत्रित किया जा सकता है.

कैसे करें इसकी खेती

कैमोमाइल एक अद्वितीय यूरोपीय जड़ी बूटी है जो लाभ के साथ एक सुंदर फूल बनाती है. कैमोमाइल का उपयोग हर्बल उपचार, पेय पदार्थों और त्वचा देखभाल उत्पादों के लिए किया जाता है. आम कैमोमाइल दो प्रकार के होते हैं: जर्मन और रोमन. दोनों प्रजातियों में पीले केंद्र के चारों ओर सफेद पंखुड़ियों वाले सुगंधित, डेज़ी जैसे फूल होते हैं. 

बुवाई का तरीका

कैमोमाइल पौधों को बीज द्वारा उगाया जाता है. इसके बीज बहुत अच्छे होते हैं. इसके एक हजार बीजों का वजन 0.088 से 0.153 ग्राम होता है. इसकी खेती दो तरह से की जाती है. पहली सीधी बुआई, जिसमें बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं और दूसरा इसकी नर्सरी तैयार करके. इसके पौधों को बाद में खेत में लगाया जाता है. इसकी नर्सरी तैयार करने के लिए 200 से 250 वर्ग सेमी. क्षेत्रफल में 0.3 से 0.5 कि.ग्रा. बीज बोए जाते हैं, जो एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं.

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फसल की वृद्धि

जनवरी के मध्य तक फसल की वृद्धि धीमी रहती है. इसके बाद फरवरी की शुरुआत तक यह बढ़ जाती है. जैसे-जैसे मौसम गर्म होता है, फसल में अधिक वृद्धि और फूल बनना शुरू हो जाता है. इसके फूलों को समय-समय पर तोड़ा जाता है. तापमान अचानक 33 से 39 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से फसल में अधिक बीज बनते हैं और पौधा परिपक्वता तक पहुंचता है. इसके बीज नीचे गिर जाते हैं, जो अगले वर्ष अपने आप उस स्थान पर उग आते हैं.

सिचाई की जरूरत

इसके पौधे की जड़ें उथली होने के कारण मृदा के निचले स्तरों से नमी सोखने में असमर्थ होती हैं. इसलिए इस फसल में लगातार सिंचाई की जरूरत होती है.

खाद की जरूरत

फसल से सही उत्पादन लेने के लिए जरूरी है कि पौधों का सही देखभाल किया जाए. ताजे फूलों और तेल की उपज पर नाइट्रोजन का प्रभाव पड़ता है, जबकि फॉस्फोरस और पोटेशियम का प्रभाव कम होता है. रोपाई से पहले 15 से 25 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग लाभकारी होता है.

खरपतवार नियंत्रण

शुरुआत में इसके पौधों की वृद्धि धीमी होने के कारण खरपतवार आसानी से निकले जा सकते हैं. फूलों के उत्पादन के लिए इन्हें हटाना फायदेमंद होता है. छोटी अवस्था में खरपतवारों को हाथ से उखाड़ना चाहिए और फिर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. पूरी फसल अवधि के दौरान 3 से 4 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए.

कीटों का प्रकोप

कैमोमाइल की फसल विभिन्न प्रकार के कवक, कीड़ों, वायरस आदि से प्रभावित होती है. इनमें एल्बुगो ट्रैगोपोगोनिस, एरीसिपे चिकोरियम, हेलिकोबासिडियम परप्यूरियम आदि प्रमुख हैं. अल्टरनेरिया के कारण होने वाला पत्ती झुलसा रोग मार्च के आरंभ में देखा जाता है. जिसे बेनलेट 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है. एफिड की रोकथाम के लिए फॉस्फोथियोन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए. भंडारण के दौरान सूखे फूलों को फंगस और कीड़ों से बचाने के लिए उचित आर्द्रता और तापमान पर संग्रहित किया जाना चाहिए.

फूलों की पैदावार

ताजे फूलों की पैदावार 3500 से 4000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है. अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक 1000 फूलों का वजन घटकर 80 से 130 ग्राम रह जाता है.