फूलगोभी का काला गलन रोग क्या है, इसे कैसे रोक सकते हैं?

फूलगोभी का काला गलन रोग क्या है, इसे कैसे रोक सकते हैं?

फूलगोभी को मूल रूप से ठंडी और आर्द्र जलवायु की फसल माना जाता है. अच्छे अंकुरण के लिए फूलगोभी को 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है. फूलगोभी के फूलों का विकास किस्म के अनुसार और तापमान पर भी निर्भर करता है. यदि सही तापमान नहीं मिलता है, तो समय से पहले फूल आना, पीले फूल आना, पौधे का विकास रुक जाना और अन्य रोगों का खतरा बढ़ने लगता है. ऐसे में आइए जानते हैं गोभी में लगने वाले प्रमुख रोग के बारे में.

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फूलगोभी का काला गलन रोग क्या है, इसे कैसे रोक सकते हैं?गोभी की फसल को खराब कर सकता है ये रोग

फूलगोभी सर्दियों की मुख्य सब्जियों में से एक है जो ज्यादातर उत्तरी भारत में उगाई जाती है. इसके फूलों का इस्तेमाल सब्जी बनाने के लिए किया जाता है. ठंड के मौसम में इसकी मांग काफी अधिक होती है. इसके फूलों का इस्तेमाल सब्जी से लेकर अचार बनाने तक के लिए किया जाता है. इसे गोभी और फूलगोभी दोनों नामों से जाना जाता है. भारतीय किसानों की बात करें तो ठंड के मौसम में फूलगोभी की खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं, लेकिन कई बार फूलगोभी में लगाने वाले रोग की वजह से किसानों को नुकसान भी काफी होता है. ऐसे में आइए जानते हैं गोभी में लगाने वाले काला गलन रोग के बारे में और इसको रोकने के उपायों के बारे में भी.

क्या है काला सड़न रोग

काला सड़न रोग का शुरुआती लक्षण पीला रंग और 'V' आकार का होता है. रोग के लक्षण पत्ती के किसी भी किनारे या मध्य भाग से शुरू हो सकता है. इस रोग को रोकने के लिए बीजों को 100 मिलीग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन रसायन प्रति लीटर पानी के घोल से उपचारित करें. स्ट्रेप्टोमाइसिन (100 मिलीग्राम/लीटर) + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम दवा/लीटर पानी) जलीय घोल को 0.1 प्रतिशत चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिलाकर प्रयोग करें.

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खेती के लिए जलवायु

फूलगोभी को मूल रूप से ठंडी और आर्द्र जलवायु की फसल माना जाता है. अच्छे अंकुरण के लिए फूलगोभी को 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है. फूलगोभी के फूलों का विकास किस्म के अनुसार और तापमान पर भी निर्भर करता है. यदि सही तापमान नहीं मिलता है, तो समय से पहले फूल आना, पीले फूल आना, पौधे का विकास रुक जाना और अन्य रोगों का खतरा बढ़ने लगता है. 

मिट्टी की जरूरत

अगेती फसल के लिए उचित जल निकास और कार्बनिक पदार्थ वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है और पछेती फसल के लिए दोमट या चिकनी मिट्टी उपयुक्त होती है. 5.5 से 7 pH मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. पहली जुताई डिस्क हल से करनी चाहिए और फिर 2-3 बार हैरो चलाना चाहिए और फिर भूमि को समतल करना चाहिए ताकि मिट्टी ढीली हो जाए.

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खाद और उर्वरक

फूलगोभी की अधिक उपज के लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में खाद और उर्वरक का होना बहुत जरूरी है. पौध रोपण से लगभग 2-3 सप्ताह पहले खेत में 25-30 टन/हेक्टेयर पूरी सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दें. खेत की जुताई करने के बाद खेत में प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटाश मिला दें और अगेती फसल के लिए 45 सेमी और मध्य और पछेती फसल के लिए 60-45 सेमी की दूरी पर मेड़ तैयार कर लें. अंतिम तैयारी के समय आधी मात्रा नाइट्रोजन और आधी मात्रा फास्फोरस और पोटाश मिट्टी में मिला दें. शेष नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटकर एक भाग रोपण के एक माह बाद निराई-गुड़ाई के साथ डालें और दूसरा भाग फूल बनने पर पौधों में मिट्टी चढ़ाते समय मिला दें. पौधों की वृद्धि कम होने पर 1.0 से 1.5 प्रतिशत यूरिया का 2-3 बार छिड़काव विशेष रूप से लाभकारी होता है.

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