मॉनसून अपने पीक पर है. मॉनसून की ये बारिश किसानों के लिए जहां राहत बन कर बरस रही है तो वहीं आम उपभोक्ता के लिए आफत बनी हुई है. मसलन, इस मॉनसून सीजन में सब्जियों के दाम आसमान पर हैं. इसकी एक बानगी टमाटर के बढ़ते हुए दामाें से समझी जा सकती है. दिल्ली की आजादपुर मंडी में ही टमाटर के दाम 200 रुपये के किलो पार पहुंच गए हैं. ऐसे में अंतिम उपभोक्ता को टमाटर 250 रुपये किलो तक मिल सकता है. टमाटर की तरह ही अन्य सब्जियाें के दामों में आग लगी हुई है. मसलन, उपभोक्ताओं को सामान्य दिनों की तुलना में दो से तीन गुना अधिक दाम चुकाना पड़ रहा है.
ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल ये है कि आखिर क्यों टमाटर समेत अन्य सब्जियों के दामों में आग लगी हुई है और इन हालातों में जब आम उपभोक्ताओं को अधिक पैसा चुकाना पड़ रहा है तो क्या किसानाें को इसका लाभ मिल रहा है. मसलन, किसानों को कितना लाभ इससे मिल रहा है. इन सभी सवालों के जवाब किसान तक ने खोजने की कोशिश की है. आइए जानते हैं कि सब्जियों के दामों में हुई इस बढ़ोतरी में किसानों को कितना मिल रहा है.
टमाटर के महंगे होने और सब्जियों के दाम अधिक होने की कहानी मॉनसून से जुड़ी हुई है तो वहीं इसकी वजह का दूसरा छोर बाजार के नियम, मांग और आपूर्ति से भी जुड़ा हुआ है. असल में मॉनसून सीजन में कई जगह मूसलाधार बारिश और बाढ़ की वजह से फसलें खराब हुई हैं. इस वजह से मांग और आपूर्ति का नियम गड़बड़ाया हुआ है. नतीजन मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं होने से टमाटर समेत अन्य सब्जियों के दाम बढ़े हुए हैं.
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सब्जियों के दाम आसमान में है, जिसमें टमाटर ने सबसे अधिक महंगाई का ऐलान किया हुआ है. ऐसे में सवाल ये है कि, जब उपभोक्ताओं को टमाटर 150 से 200 रुपये किलो तक मिल रहा है. इसमें किसानों को कितना मुनाफा मिल रहा है. इसका जवाब किसान तक ने खोजने की कोशिश की. इस कड़ी में किसान तक ने टमाटर बेचकर बीते दिनों करोड़पति बने छत्तीसगढ़ के किसान अरुण साहू से बात की. अरुण साहू ने किसानों को रहे मुनाफे की जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें मौजूदा समय में टमाटर का भाव 80 रुपये किलाे मिल रहा है. हालांकि वह ये भी कहते हैं कि इस बार टमाटर बेचकर उन्हें मुनाफा हुआ है, लेकिन कई बार ऐसे हालात भी बने कि किसानों को टमाटर फेंकना भी पड़ा.
टमाटर बेचकर करोड़पति बने किसान अरुण साहू सब्जियों के बाजार भाव में किसानों की हिस्सेदारी को विस्तार से बताते हुए कहते हैं अगर कोई किसान खेत से 10 रुपये किलो कोई सब्जी बेचता है तो वह अंतिम उपभोक्त को 4 गुना तक महंगी यानी 40 रुपये किलो तक मिलती है. हालांकि दामों में इस फर्क के पीछे ट्रांसपोर्ट पर होने वाले खर्च अहम होता है. वह इसे उदाहरण के साथ समझाते हुए कहते हैं कि एक बार उन्होंने छत्तीसगढ़ से दिल्ली की आजादपुर मंडी पहुंचकर भी सब्जियां बेची. जिसमें उन्हें ट्रांसपोर्ट के तौर पर अधिक पैसा खर्च करना पड़ा. मसलन, 10 रुपये किलो वाली सब्जी के लिए उन्हें 10 रुपये ट्रांसपोर्ट पर खर्च करने पड़े. इसके बाद मंडी में उन्हें 22 रुपये किलो तक का भाव मिला.
तो वहीं वह आगे कहते हैं कि ये ही सब्जी अंतिम उपभोक्ता तक 40 रुपये किलो तक पहुंचती है. साथ ही वह कहते हैं अगर कोई किसान खेत से ही अपनी फसल बेचता है तो कई बार उन्हें मजदूर का खर्च भी उठना पड़ता है. कई बार मजदूर का खर्च व्यापारी की तरफ से देय होता है. वह कहते हैं कि ये पूरा सिस्टम बेहद ही अनिश्चित है. ऐसे में इस चैन सिस्टम को दुरस्त करने की जरूरत है. इसके लिए अगर सब्जियाें की MSP तय हो जाए तो किसानों को उपज का वाजिब दाम मिलेगा और आम आदमी को भी कम दाम में सब्जियां मिलेंगी.
सब्जियों के आसमान पहुंचे दाम से व्यापारियों को हो रहा फायदा और मुनाफाखोरी के सवाल को आजादपुर मंडी समित के पदाधिकारी अनिल मल्होत्रा खारिज करते हैं. मंडी में टमाटर के थोक काराेबार अनिल मल्होत्रा कहते हैं कि, जो टमाटर मौजूदा समय में मंडी में ही 200 रुपये किलो है, वह कर्नाटक में किसानों के खेत से 180 रुपये किलो तक खरीदा जा रहा है. साथ ही किसान अरुण साहू को मौजूदा समय में टमाटर के दाम 80 रुपये किलो मिलने के सवाल पर कहते हैं कि उनकी फसल अंतिम दौर में है, ऐसे में उनके टमाटर का साइज छोटा होगा. इस वजह से उन्हें दाम कम मिल रहे हैं. साथ ही किसान और उपभोक्ताओं के बीच दामों में 4 गुना फर्क होने के सवाल पर वह कहते हैं कि किसान और उपभोक्ताओं के बीच कई कड़ी हैं. साथ ही वह जोड़ते हैं कि व्यापारी भी कई रिस्क लेकर किसानों का उत्पाद बेचते हैं. ऐसे में दामाें में बढ़ोतरी होती है.
वह विस्तार से किसान और उपभोक्ताओं के बीच की कड़ी को समझाते हुए कहते हैं कि किसानों के खेत से माल खरीदने वाले को लोडर कहा जाता है. जो ट्रांसपोर्ट कर किसान की सब्जियों को मंडी में लाता है. मंडी में व्यापारी 6 फीसदी के कमीशन पर कारोबार करते हैं. इस मंडी के व्यापारी इस कमीशन पर छाेटे व्यापारियों को माल भेजते हैं, जो आगे छोटे मंडी व्यापारियों को बेचते हैं, जिनसे अन्य रेहड़ी वाले खरीदते हैं. इस तरह से किसान से उपभोक्ता तक सब्जी पहुंचाने में कई लोगों की भूमिका है. जिनका अपना प्रोफिट होता है. साथ ही वह कहते हैं कि व्यापारी किसान से माल खरीदने और बेचने में अपना निवेश भी करते हैं तो वहीं उनका रिस्क भी होता है. मसलन, बारदाना व्यापारियों का होता है. इसी तरह खरीदी हुई सब्जियों के खराब होने की संभावनाएं रहती हैं, जिसका नुकसान भी व्यापारियों को ही उठाना पड़ता है.
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