Vegetable Price Hike: किसान, बिचौलिया या मॉनसून...सब्ज‍ियों की महंगाई का खलनायक कौन? 

Vegetable Price Hike: किसान, बिचौलिया या मॉनसून...सब्ज‍ियों की महंगाई का खलनायक कौन? 

Tomato Price: बाजार में 160 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक के भाव पर ब‍िक रहा है टमाटर, लेक‍िन क्या आप जानते हैं क‍ि क‍िसानों को क‍ितना दाम म‍िल रहा है. हरी म‍िर्च उपभोक्ताओं को 300 रुपये प्रत‍ि क‍िलो से ज्यादा दाम पर म‍िल रही है, लेक‍िन क‍िसानों के ह‍िस्से इसमें से क‍ितना पैसा आता है.  

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Vegetable Price Hike: किसान, बिचौलिया या मॉनसून...सब्ज‍ियों की महंगाई का खलनायक कौन? सब्ज‍ियों की महंगाई के ल‍िए कौन है ज‍िम्मेदार (Photo-Kisan Tak).

जैसा कि हर साल होता है. इस साल भी मॉनसून आने के बाद से सब्ज‍ियों के दाम में आग लगी हुई है. देखते ही देखते कुछ ही द‍िनों में सब्ज‍ियों की कीमत 25 से 30 फीसदी तक बढ़ गई है. इससे लोगों के घर का बजट ब‍िगड़ रहा है. हर घर में सब्जियों की कीमत की ही चर्चा हो रही है. टमाटर 150 रुपये क‍िलो ब‍िक रहा है, हरी म‍िर्च का दाम 300 रुपये क‍िलो तक पहुंच गया है, अदरक का दाम 300 रुपये के पार पहुंच चुका है, लौकी 60 रुपये और परवल 80 रुपये तक की ऊंचाई को छू रहा है. आलू और प्याज भी अब अपना रंग द‍िखाने लगे हैं. सभी इस महंगाई को लेकर सरकार और क‍िसानों को कोस रहे हैं. लेक‍िन प्रश्न ये है कि क्या आप सब्जियों की जो कीमत चुका रहे हैं, वो सारा का सारा किसान की जेब में जा रहा है? क्या इस बढ़ती महंगाई के ल‍िए क‍िसान ज‍िम्मेदार है? या फिर वो आढ़तियों और व्यापारियों का वर्ग है जो ढुलाई से लेकर दुकानदारी तक की लागत जोड़कर इस महंगाई को कई गुना बढ़ा देता है?

आज हम बढ़ती महंगाई के बाजार को ड‍िकोड करेंगे और आपको बताएंगे कि इसकी जड़ में कौन है. दरअसल टमाटर, प्याज और आलू यानी टॉप (TOP-Tomato, Onion and Potato) में से क‍िसी भी एक वस्तु का दाम बढ़ता है तो पूरे देश में हाहाकार मच जाता है. इसकी वजह भी है. इनका इस्तेमाल हर घर में होता है. इस बार प्याज और आलू का दाम भले ही काबू में हो, लेक‍िन टमाटर का रेट आसमान पर पहुंच गया है. लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि जिस फसल को किसान महीनों की मेहनत से तैयार करता है, उसकी उपज की कीमत का फैसला कुछ ही म‍िनट में आढ़ती और व्यापारी कर देते हैं. इस खेल में कभी-कभी तो किसानों को अपनी उपज फेंकने पर मजबूर हो जाना पड़ता है. लेकिन, अब जब सब्जियों की कीमत आसमान पर पहुंच गई है, तो किसानों के हिस्से में क्या आ रहा है, इसके तथ्य आपको चौंका देंगे.

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क‍ितना लाभ कमा रहे ब‍िचौल‍िया 

सच ये है कि क‍िसान से कस्टमर तक पहुंचते-पहुंचते सब्जियों का दाम दो से पांच गुना तक बढ़ जाते हैं. यहां तक कि महाराष्ट्र के क‍िसानों ने जो प्याज 3 रुपये प्रति किलो के दर से बेचे, उसका भाव कस्टमर तक पहुंचते-पहुंचते 25-30 रुपये प्रत‍ि क‍िलो हो गया है. प्याज क‍िसानों की दुर्दशा पर बहुत बात हो चुकी है. 

अभी हरी म‍िर्च काफी ऊंचे दाम पर ब‍िक रही है. देखते हैं क‍ि इसकी खेती करने वाले क‍िसानों को क‍ितना म‍िल रहा है. महाराष्ट्र के संभाजीनगर जिले के किसान अमोल बावस्कर बताते हैं कि इन द‍िनों थोक व्यापारी किसानों को हरी मिर्च के लिए 70 से 100 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक की कीमत दे रहे हैं. जबकि कुछ दिन पहले तक यह 20-25 रुपये किलो बिकती थी. यानी ये बात सही है कि रेट बढ़ने से किसानों को पहले के मुकाबले तीन से चार गुना अध‍िक भाव मिल रहा है. लेक‍िन, कंज्यूमर को हरी मिर्च 300 रुपये प्रति किलो के दर पर खरीदनी पड़ रही है. ये किसानों से खरीदी गई कीमत से भी तीन गुना ज्यादा है. 

अदरक की खेती करने वाले जालना ज‍िले के क‍िसान सोमनाथ के मुताबिक किसानों को एक किलो अदरक की कीमत 160 से 200 रुपये तक मिल रही है, जबकि मार्केट में इसका भाव 300 से 400 रुपये प्रत‍ि क‍िलो के बीच में है. 

सब्ज‍ियों की महंगाई में मॉनसून भी एक खलनायक है. बार‍िश की वजह से आमतौर पर सब्ज‍ियां कुछ महंगी हो जाती हैं. क्योंक‍ि ज्यादा पानी से कई सब्जी फसलें खराब हो जाती हैं. खासतौर पर अगर खेत न‍िचले इलाकों में है तो फ‍िर उसमें पानी भर जाता है और फसल तबाह हो जाती है. इसल‍िए भी महंगाई बढ़ती है.

टमाटर का क‍ितना दाम पा रहा क‍िसान 

ऑल इंड‍िया वेज‍िटेबल ग्रोवर एसोस‍िएशन के अध्यक्ष श्रीराम गाडवे कहते हैं क‍ि महंगाई बढ़ने का ज‍िम्मेदार क‍िसान नहीं ब‍िचौल‍िए हैं. क्योंक‍ि उनकी बेतहाशा कमाई पर कोई रोकटोक नहीं है. क‍िसान से 10 रुपये की चीज लेते हैं और 50 रुपये में बेचते हैं. जहां तक टमाटर की बात है तो अभी क‍िसानों को 50 से 70 रुपये प्रत‍ि क‍िलो का भाव म‍िल रहा है. लेक‍िन, इसके पीछे उनकी बहुत मेहनत है. कुछ क‍िसानों ने काफी कोश‍िश से अपनी फसल बचाई हुई है. वरना मई और जून की लू में अध‍िकांश क‍िसानों की टमाटर की फसल बर्बाद हो गई.अब कस्टमर को 160 रुपये क‍िलो म‍िल रहा है तो इसमें क‍िसानों की कोई भूम‍िका नहीं है. 

इसमें कोई संदेह नहीं क‍ि क‍िसानों को पहले के मुकाबले काफी अच्छा दाम म‍िल रहा है. लेक‍िन, अब मुश्क‍िल से तीन-चार फीसदी क‍िसानों के पास ही इसकी फसल बची हुई है. मई और जून में हीट वेव की वजह से टमाटर की खेती झुलस गई थी. यही नहीं प‍िछले दो साल से दाम अच्छा नहीं म‍िल रहा था इसल‍िए क‍िसानों ने इस बार इसकी खेती का दायरा कम कर द‍िया था. ऐसे में इस वक्त टमाटर की शॉर्टेज हो गई और दाम बढ़ गया. 

उपभोक्ताओं को महंगाई की बात करते वक्त दो बातों का ध्यान रखना चाह‍िए. एक तो जब क‍िसान 100 रुपये में 100 क‍िलो टमाटर बेचते हैं तो फ‍िर कौन उनकी बात उठाता है? दूसरी बात यह क‍ि आज जो र‍िटेल प्राइस है उसका 40 फीसदी ही क‍िसानों को म‍िल रहा है. बाकी 60 फीसदी ब‍िचौल‍ियों को जा रहा है. इसल‍िए महंगाई का खलनायक क‍िसानों को न बनाया जाए.

छह महीने की फसल, छह म‍िनट में फैसला 

पोटैटो प्रोड्यूसर्स फार्मर्स एसोस‍िशन में आगरा मंड‍ल के महासच‍िव आम‍िर चौधरी कहते हैं क‍ि महंगाई का खलनायक ब‍िचौल‍िया हैं. टमाटर की फसल चार महीने की होती है. ज‍ितनी मेहनत के बाद क‍िसान कमाई करता है उससे अध‍िक पैसा ब‍िचौल‍िया कुछ ही समय में कमा लेता है. इस वक्त कोल्ड स्टोर से जो आलू न‍िकाला जा रहा है उसका दाम 3 से 8 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक है. जबक‍ि यह र‍िटेल में 25 रुपये के ह‍िसाब से ब‍िक रहा है. बीच का पैसा ब‍िचौल‍ियों और र‍िटेलर की जेब में जा रहा है. इसील‍िए क‍िसान से कस्टमर तक पहुंचते-पहुंचते दाम महंगा हो जाता है. हरी सब्ज‍ियों में आढ़ती का कमीशन 8 से 10 फीसदी तक है. क‍िसान जो छह महीने में पैदा करता है आढ़ती उसका स‍िर्फ छह म‍िनट में फैसला कर देता है. 

क‍िसान और कस्टमर 

चौधरी का कहना है क‍ि क‍िसान कभी सीधे कस्टमर से जुड़ ही नहीं पाया वरना महंगाई इतनी नहीं बढ़ती. क‍िसान से उसकी उपज व्यापारी खरीदता है और उसे मंडी में बेचता है. आढ़ती मंडी का कमीशन लगाकर र‍िटेलर को देता है. अगर क‍िसी दूसरे शहर से माल मंगवाना है तो एक शहर का आढ़ती दूसरे शहर के आढ़त‍ी से संपर्क कर लेता है. जहां तक भाड़ा की बात है तो अगर टमाटर महाराष्ट्र से द‍िल्ली आता है तो खर्च 4 से 5 रुपये प्रत‍ि क‍िलो लगता है. जबक‍ि ह‍िमाचल से लाने में 2 से 3 रुपये प्रत‍ि क‍िलो का खर्च पड़ता है.

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