मूंग की खेती खरीफ फसल के रूप में की जाती है. वहीं, मूंग के दाल को हरा चना भी कहा जाता है. ये भारत में एक प्रमुख दाल है, जो कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मूंग की खेती कम लागत और कम समय में खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में आसानी से की जा सकती है. ऐसे में रबी की फसल की कटाई के बाद किसान अपने खाली खेतों में मूंग की खेती कर सकते हैं. ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल उच्च तापमान को सहन कर सकती है और यह जल्दी पकने वाली फसल है.
मूंग की खास बात यह है कि ये जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है, जिससे अगली फसलों से बढ़िया उत्पादन मिलता है. ऐसे में अगर आप मूंग की खेती करना चाहते हैं तो इस खास किस्म की खेती करें जो 'रोगमुक्त' है. साथ ही ये किस्म 70 दिनों में पर कर तैयार हो जाती है. आइए जानते हैं इसकी खासियत.
बात करें मूंग की खास वैरायटी कि तो इसका नाम MH1142 है. यह वैरायटी 63 से 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म की खासियत ये है कि ये मोजेक, पत्ता झूरी, पत्ता मरोड़ जैसे खतरनाक रोग और सफेद चूर्णी जैसे फफूंद रोगों से मुक्त है. साथ ही इस किस्म की उपज क्षमता भी बेहतर है.
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मूंग की फसल के लिए गर्म जलवायु की जरूरत होती है और यह सूखा भी सहन कर सकती है, जिससे यह ग्रीष्मकालीन फसल बन जाती है. विकास के लिए सर्वोत्तम तापमान सीमा 27 से 30 डिग्री है. इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. लेकिन यह अच्छी जल निकासी वाली हल्की दोमट मिट्टी पर सबसे अच्छी तरह उगती है. इसकी खेती के लिए जलजमाव वाली मिट्टी या लवणीय मिट्टी का उपयोग करने से बचें क्योंकि यह मूंग उगाने के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है. इसकी खेती में सिंचाई का मैनेजमेंट बहुत जरूरी है.
मूंग की खेती के लिए भूमि की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है. भूमि की दो से तीन बार जुताई करें. उसके बाद ढेलों को कुचलने और खरपतवारों को नष्ट करने के लिए हल्की जुताई करें. मूंग दाल के बीज बोने की विधि में मौसम का भी ध्यान रखना चाहिए. खरीफ की बुवाई के लिए पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी और पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखने की सलाह दी जाती है. साथ ही ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से मई तक का होता है.
मूंग की खेती खरीफ फसल के रूप में की जाती है, जिसमें जरूरत के अनुसार सिंचाई की व्यवस्था की जाती है. ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल के मामले में, मिट्टी की संरचना और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर तीन से पांच सिंचाई की जरूरत होती है. मूंग की अधिक उपज पाने के लिए बुवाई के 55 दिन बाद सिंचाई बंद कर देनी चाहिए.
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