जब तक फसल पककर तैयार नहीं हो जाता, तब तक फसलों पर कीटों का खतरा मंडराता रहता है. गेहूं हो, धान हो, सरसों हो या चाय की फसल, इन पर कीटों का खतरा ज्यादा बना रहता है. ऐसे में एक खबर सामने आई है कि चाय बागानों में टी मॉस्किटो बग फसल को प्रभावित कर रहा है. दरअसल, यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ सदर्न इंडिया (UPASI) ने कहा कि टी मॉस्किटो बग अधिक ऊंचाई वाले बागानों में हो रहे चाय उत्पादन को प्रभावित कर रहा है. वहीं, UPASI के अध्यक्ष जेफरी रेबेलो ने एक प्रेस कोन्फ्रेंस के दौरान कहा कि बग जो पहले कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सीमित था, अब वह उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी फैल गया है.
उन्होंने फसल नुकसान के संभावनाओं को बताते हुए कहा कि बग तेजी से चाय बागान में फैल रहा है, जिस वजह से दक्षिण भारत के सभी चाय उत्पादन करने वाले जिलों में भारी फसल का नुकसान हो सकता है.
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किसान प्रभावित चाय बागान पर हर साल कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिए प्रति हेक्टेयर 12,000 रुपये से अधिक खर्च कर रहे हैं. लेकिन कीट को नियंत्रित करने के लिए अभी तक प्रभावी तकनीकों को नहीं खोजा गया है. वहीं भारतीय चाय को हानिकारक कीटनाशकों से बचाने के लिए भारतीय चाय बोर्ड की पौध संरक्षण संहिता (पीपीसी) की अनुमोदित सूची से कई कीटनाशकों को हटा दिया गया है. वर्तमान पीपीसी संस्करण में, दक्षिण भारत में केवल सात कीटनाशकों को उपयोग करने की अनुमति दी गई है. कीटनाशकों के सीमित विकल्प के कारण, चाय उत्पादक टी मॉस्किटो कीट पर प्रभावी नियंत्रण हासिल करने में असमर्थ हैं.
रेबेलो ने कहा कि यूपीएएसआई टी रिसर्च फाउंडेशन के एंटोमोलॉजिस्ट भारतीय बाजार में उपलब्ध कीटनाशकों का मूल्यांकन कर रहे थे और भारत में उगाई जाने वाली अन्य फसलों में केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित थे. इन कीटनाशकों को यूरोपीय संघ द्वारा उपयोग के लिए भी अनुमोदित किया गया है और चाय के लिए न्यूनतम अवशेष स्तर हैं. एसोसिएशन ने चाय बागानों में रसायनों के इस्तेमाल के लिए सरकार से मंजूरी मांगी है.
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