चाय की पत्तियां खरीदने वाली फैक्ट्रियों की मनमानी और अड़ियल रवैये से परेशान पश्चिम बंगाल के चाय किसानों का गुस्सा फूट पड़ा. नाराज किसानों ने कच्ची चाय की फसल यानी पत्तियों को सिलीगुड़ी इलाके में हाइवे पर फैलाकर विरोध जताया और जमकर प्रदर्शन किया है. दरअसल, टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने चाय पत्तियों में प्रतिबंधित रसायन की मिलावट रोकने के लिए कुछ नियमों में सख्ती की है, जिसके बाद चाय फैक्ट्रियों ने किसानों से पत्तियां लेने से मना कर दिया है या फिर जांच-पड़ताल बढ़ा दी है. चाय उत्पादकों ने इसे शोषण बताया है.
टी बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा लगाये गये नये नियम के कारण चाय फैक्ट्री मालिकों ने कच्ची पत्तियां लेने से इनकार कर दिया है. नए नियम और फैक्ट्रियों के कच्ची चाय पत्तियां नहीं लिए जाने के खिलाफ छोटे चाय उत्पादकों ने नेशनल हाईवे पर कच्ची चाय की पत्तियां फेंककर विरोध प्रदर्शन किया. यह घटना बुधवार को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के फांसीदेवा इलाके में घटी. हाइवे पर हंगामा होने पर जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया.
टी बोर्ड ऑफ इंडिया की ओर से गाइडलाइन जारी की गई है, जिसमें कहा गया है कि चाय की पत्तियों की गुणवत्ता के लिए चाय फैक्ट्री जिम्मेदार हैं. गुणवत्ता खराब होने पर चाय फैक्ट्रियों का लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है. इस निर्देश के बाद चाय फैक्ट्रियों ने छोटे चाय उत्पादकों को सूचित किया कि चाय की पत्तियां तभी स्वीकार की जाएंगी जब पत्तियों में कोई रसायन न हो. फैक्ट्रियां चाय की पत्तियां तभी खरीदेंगी जब किसानों के पास भारत सरकार की ओर से जारी एमआरएल प्रमाणपत्र होगा. यह प्रमाणपत्र नियंत्रित कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर जारी किया जाता है.
फांसीदेवा इलाके के छोटे चाय बागानों के किसान बुधवार को विधाननगर की एक फैक्ट्री में चाय की पत्तियां लेकर पहुंचे. फैक्ट्री अधिकारियों ने पत्तियां लौटा दीं और किसानों से एमआरएल प्रमाणपत्र दिखाने को कहा. चाय पत्तियां नहीं लिए जाने से नाराज छोटे चाय किसानों ने राष्ट्रीय सड़क मार्ग नंबर-1 पर चाय की पत्तियां फेंक दीं और विरोध-प्रदर्शन किया. विरोध कर रहे चाय किसानों ने कहा कि एमआरएल सर्टिफिकेट कैसे मिलेगा. इसकी जानकारी नहीं है तो इन पत्तियों का वह अब क्या करें. अगर इन सबका समाधान नहीं हुआ तो पूरे प्रदेश के करीब 10 लाख छोटे किसानों को संकट का सामना करना पड़ेगा.
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