चीनी का दाम बढ़ रहा है. अभी जो हालात है उसे देखते हुए त्योहारी सीजन के दौरान भाव में और इजाफा होने का अनुमान है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी उत्पादन कम होने की बात कही जा रही है तो भारत की स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है. क्योंकि खासतौर पर महाराष्ट्र में गन्ने की खेती पर मौसम की मार पड़ी है. ऐसे में कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने इथेनॉल को लेकर एक बड़ा सवाल उठा दिया है. कैट के महाराष्ट्र प्रदेश महामंत्री शंकर ठक्कर का कहना है कि अगर चीनी का दाम कंट्रोल में करना है तो इथेनॉल बनाने के लिए गन्ने का इस्तेमाल बंद करना होगा. चीनी सीजन-2022-23 (अक्टूबर-सितंबर) 30 सितंबर को समाप्त हो रहा है.जिसमें इथेनॉल उत्पादन के लिए लगभग 43 लाख मीट्रिक टन चीनी का डायवर्जन किया गया है.
ऐसा माना जाता है कि जब फसल सरप्लस हो तब उससे इथेनॉल बनाया जाना चाहिए. पहले फूड, फिर फीड और उसके बाद फ्यूल की बात करनी चाहिए. शंकर ठक्कर का कहना है कि इस वर्ष मसाले, दलहन, अनाज और देसी खाद्य तेल आदि के दाम पिछले वर्षों के मुकाबले 20 से लेकर 40 फीसदी तक बढ़ गए हैं. जिसके चलते किचन का बजट बिगड़ गया है. अब चीनी ने भी इन सभी के साथ प्रतिस्पर्धा में उतर गई है. त्योहारी सीजन में इसका दाम बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में इथेनॉल बनाने के लिए सरकार गन्ने के इस्तेमाल पर रोक लगाए. वरना उपभोक्ताओं को दिक्कत होगी. पहले फूड जरूरी है फिर फ्यूल की बारी आती है.
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी का उत्पादन कम है. हमारे देश के बड़े चीनी उत्पादक महाराष्ट्र में फसल खराब है. ऐसे में चीनी के दाम बढ़ने के आसार हैं. अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन (आईएसओ) के मुताबिक वैश्विक स्तर पर खपत के मुकाबले चीनी का उत्पादन 21 लाख टन कम होगा. आईएसओ ने 2023-24 में शक्कर का उत्पादन 174.84 मिलियन टन होने का अनुमान जताया है. पिछले सीजन में 177.02 मिलियन टन उत्पादन हुआ था. इस साल खपत 176.53 मिलियन टन से बढ़कर 176.96 मिलियन टन हो सकती है. ऐसे में दाम बढ़ने के आसार हैं. अपने देश में भी अनियमित मॉनसून की वजह से दिक्कत है. ऐसे में गन्ने का इस्तेमाल फिलहाल इथेनॉल बनाने में नहीं करना चाहिए. जब हमारे पास सरप्लस हो तभी उससे फ्यूल बनाया जाना चाहिए. सबसे पहले सरकार खाद्यान्न सुरक्षा पर ध्यान दे.
हालांकि, त्योहार के साथ ही बाजार में चीनी की किल्लत न रहे, इसके लिए सरकार ने कमर कस ली है. व्यापारियों और बड़े रिटेल चेन को तत्काल चीनी का स्टॉक डिस्क्लोज करने का आदेश दिया गया है. स्टॉक ट्रैकिंग ठीक से हो पाए इसके लिए हर सोमवार पोर्टल पर स्टॉक की जानकारी देना जरूरी कर दिया गया है. कंपनियों की तरफ से जो डेटा जारी किया जाएगा उसका मिलान भी किया जाएगा. इस बीच चीनी का दाम समझ लेते हैं. उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 24 सितंबर को चीनी का औसत दाम 43.35 रुपये प्रति किलो था. अधिकतम दाम 60 और न्यूनतम 37 रुपये प्रति किलो रहा. जबकि एक जनवरी को औसत दाम 41.45 रुपये था. तब अधिकतम दाम 50 और न्यूनतम दाम 35 रुपये किलो था.
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हालांकि, महाराष्ट्र में बारिश की कमी की वजह से फसल पर थोड़ा संकट है. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि पिछले सीजन यानी 2022-23 की तुलना में इस बार राज्य में चीनी उत्पादन 20-25 प्रतिशत कम हो सकता है. देश के चीनी उत्पादन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा महाराष्ट्र से आता है. गन्ना संकट को देखते हुए राज्य सरकार ने महाराष्ट्र के किसानों को दूसरे राज्यों में गन्ना बेचने पर रोक लगा दी थी. हालांकि विरोध के बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया है. शंकर ठक्कर ने कहा कि अल नीनो के असर के कारण कई देशों में मौसम में गर्मी बढ़ गई है, जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है. ऐसे में चीनी के दाम को नियंत्रण में रखने के लिए इथेनॉल उत्पादन में गन्ने के इस्तेमाल को बंद करना होगा.
संगठन के महामंत्री तरुण जैन ने कहा कि चुनावी साल होने के नाते चीनी की कीमत में वृद्धि एक बेहद संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. खासकर जब कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव नजदीक आ रहे हों. सरकार ने कीमतों में बढ़ोतरी को रोकने के लिए इस सीजन में चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. वैश्विक बाजार में तेजी का असर घरेलू कीमत पर पूरी तरह से नहीं पड़ा है. वर्तमान में अपने देश में चीनी की कीमत वैश्विक बाजार से लगभग 37 फीसदी कम है.
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