हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी, कुछ ही दिनों में 468 मामले आए सामने

हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी, कुछ ही दिनों में 468 मामले आए सामने

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने खेतों में आग लगाने की घटनाओं को कम करने के लिए उपाय किए हैं. हालांकि इसके बावजूद भी इस साल धान की पराली का प्रबंधन करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि फसल बहुत अच्छी हुई है. हैप्पी और सुपर सीडर जैसी मशीनें इस समस्या से निपटने में कारगर हैं.

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हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी, कुछ ही दिनों में 468 मामले आए सामनेहरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़े. (सांकेतिक फोटो)

इस साल धान की कटाई शुरू होने के बाद 15 सितंबर से 14 अक्टूबर के बीच हरियाणा में पराली जालने की 468 घटनाएं दर्ज की गईं. कहा जा रहा है कि 2020 के बाद इस बार इस अवधि के दौरान पराली जलाने के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के आंकड़ों के मुताबिक, 15 सितंबर से 14 अक्टूबर के बीच साल 2023 में पराली जलाने के 374 मामले, 2022 में 102 मामले और 2021 में 389 मामले सामने दर्ज किए गए थे. वहीं, कैथल में सबसे अधिक 75 पराली जलाने की घटनाएं सामने आई हैं. इसके बाद कुरुक्षेत्र में 71, अंबाला में 51, करनाल में 50, जींद में 42, सोनीपत में 36, फतेहाबाद में 24, पानीपत में 22, यमुनानगर में 20, पलवल में 20, फरीदाबाद में 19, हिसार में 11, पंचकूला में 10 और रोहतक में 6 मामले दर्ज किए गए हैं.

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, धान कटाई के बाद हर साल किसान पराली जलाते हैं. हर साल सितंबर और नवंबर के बीच हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान गेहूं की बुवाई करने के लिए फसल अवशेष जलाते हैं. इससे उठने वाला धुआं दिल्ली-एनसीआर में घना कोहरा पैदा करता है, जिससे वायु गुणवत्ता का स्तर गिर जाता है. ऐसे में अधिकारियों को GRAP के तहत प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं. सोमवार को, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने GRAP के चरण 1 को लागू किया, जो दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में निर्माण और डेमोलिशन (C&D) गतिविधियों को प्रतिबंधित करेगा. साथ ही कूड़े जलाने की घटना पर भी बैन लगेगा.

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पराली जलाने पर मजबूर होना पड़ता है

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने खेतों में आग लगाने की घटनाओं को कम करने के लिए उपाय किए हैं. हालांकि इसके बावजूद भी इस साल धान की पराली का प्रबंधन करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि फसल बहुत अच्छी हुई है. हैप्पी और सुपर सीडर जैसी मशीनें इस समस्या से निपटने में कारगर हैं, लेकिन सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वे सभी के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) में नीति विशेषज्ञ (वायु गुणवत्ता) स्वागता डे ने कहा कि संपन्न ग्रामीणों के पास अपनी मशीनें हैं, लेकिन छोटे और मध्यम किसान सीडर के लिए दूसरे पर निर्भर हैं. इससे देरी होती है, जिससे किसानों को पराली जलाने पर मजबूर होना पड़ता है. 

38 लाख एकड़ में की गई है धान की खेती

ऐसे भी सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल राज्य में 38.9 लाख एकड़ में धान की खेती की गई, जिससे अनुमानित 81 लाख टन फसल अवशेष पैदा हुए हैं. इनमें से अधिकांश को जलाया जा सकता है. कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हम खेतों में आग लगने की घटनाओं को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. किसानों को फसल के अवशेषों के प्रबंधन के लिए सब्सिडी वाली मशीनरी उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है. पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि पराली जलाने की घटनाओं में वास्तव में कमी आई है, लेकिन अभी भी हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए पर्याप्त नहीं है. 2023 के खरीफ सीजन में, हरियाणा में 2,303 सक्रिय आग वाले स्थान (एएफएल) दर्ज किए गए, जो 2022 में 3,661 और 2021 में 6,997 से कम है. 

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