देश के एक हिस्से में एक तरफ सरसों के दाम में भारी गिरावट देखी जा रही है तो दुसरे हिस्से में सोयाबीन की खेती करने वाले किसान परेशन हैं. क्योंकि उनको उसकी सही कीमत नहीं मिल पा रही है. महाराष्ट्र की कई मंडियों में सोयाबीन की कीमत सिर्फ 3000 रुपये क्विंटल रह गई है. जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4600 क्विंटल है. इसका मतलब यह है कि कुछ किसान करीब 1600 रुपये क्विंटल के भारी घाटे पर इस साल सोयाबीन बेच रहे हैं. महाराष्ट्र सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. यहां के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते हैं लेकिन इस साल दाम न मिलने की वजह से उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है.
महाराष्ट्र एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि 20 अप्रैल को लासलगांव विंचुर मंडी में 267 क्विंटल सोयाबीन की आवक हुई. इस दिन न्यूनतम दाम सिर्फ 3000 रुपये क्विंटल रहा. अधिकतम दाम 4571 और औसत दाम 4450 रुपये रहा. इसी प्रकार वरोरा शेगांव मंडी में सिर्फ 10 क्विंटल सोयाबीन की आवक हुई. इसके बावजूद न्यूनतम दाम गिरकर सिर्फ 3000 रुपये क्विंटल रह गया. अधिकतम दाम 4250 और औसत रेट 4000 रुपये क्विंटल रहा.
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सोयाबीन को एक तिलहन और दलहन दोनों फसल के रूप में जानी जाती है. शाकाहारी लोगों के लिए सोयाबीन प्रोटीन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है. सोयाबीन का उपयोग तेल उत्पादन में कच्चे माल के रूप में किया जाता है. जबकि इसके अवशेष यानी खली को घरेलू पशुओं के लिए प्रोटीन खाद्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. दुनिया में उत्पादित करीब 85 फीसदी सोयाबीन का इस्तेमाल वनस्पति तेलों को बनाने में किया जाता है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन भारत को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की क्षमता रखता है.
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