Soybean Farming: मॉनसून की बेरुखी से क‍िसान परेशान, कम हो गया सोयाबीन का रकबा

Soybean Farming: मॉनसून की बेरुखी से क‍िसान परेशान, कम हो गया सोयाबीन का रकबा

महाराष्ट्र के कई ज‍िलों में बार‍िश न होने की वजह से फसल प‍िछड़ गई थी. सांगली ऐसे ही ज‍िलों में शाम‍िल है जहां पर शुरू से ही सूखा क‍िसानों को परेशान कर रहा है. इस वजह से क‍िसान बुवाई नहीं कर पाए. क्योंक‍ि बुवाई के ल‍िए खेत में नमी होनी चाह‍िए.   

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Soybean Farming: मॉनसून की बेरुखी से क‍िसान परेशान, कम हो गया सोयाबीन का रकबासोयाबीन का कम हुआ रकबा (photo kisan tak)

बार‍िश की कमी के कारण न स‍िर्फ फसलें सूख रही हैं बल्क‍ि कई ज‍िलों में बुवाई भी कम हुई है. सांगली में सोयाबीन का रकबा 18 हजार हेक्टेयर कम हो गया है. क‍िसानों के ल‍िए यह च‍िंता की बात है. सोयाबीन महाराष्ट्र की मुख्य फसलों में से एक है, जो दलहन और त‍िलहन दोनों में शाम‍िल की जाती है. सांगली ज‍िले में मुख्य रूप से खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती की जाती है. लेकिन इस साल तीन महीने तक पर्याप्त बारिश नहीं हुई. ऐसे में रकबा काफी घट गया. महाराष्ट्र के कई ज‍िलों में बार‍िश न होने की वजह से फसल प‍िछड़ गई थी. सांगली ऐसे ही ज‍िलों में शाम‍िल है जहां पर शुरू से ही सूखा क‍िसानों को परेशान कर रहा है. इस वजह से क‍िसान बुवाई नहीं कर पाए. क्योंक‍ि बुवाई के ल‍िए खेत में नमी होनी चाह‍िए.  

मौसम व‍िभाग के अनुसार सांगली में एक जून से आठ स‍ितंबर तक सामान्य से 40 फीसदी कम बार‍िश हुई है. इस सीजन में अब तक यहां स‍िर्फ 226.8 एमएम बार‍िश हुई है, जबक‍ि अगर 378.6 एमएम बार‍िश होती तब सामान्य स्थ‍ित‍ि होती. आठ स‍ितंबर को यहां 100 फीसदी कम बार‍िश हुई है. यानी बार‍िश हुई ही नहीं. सांगली मध्य महाराष्ट्र में आता है. इस रीजन के छह ज‍िलों में सूखा पड़ा हुआ है. 

सोयाबीन की बुवाई से मुंह मोड़ा 

फ‍िलहाल, अगर सांगली की बात करें तो इस साल तीन महीने तक पर्याप्त बारिश नहीं हुई है. इसलिए तस्वीर यह है कि किसानों ने सोयाबीन की बुआई से मुंह मोड़ लिया है. जिले में पिछले साल की तुलना में इस साल सोयाबीन का रकबा 18 हजार 558 हेक्टेयर कम है. इस साल जिले में सोयाबीन का औसत क्षेत्रफल 43 हजार 96 हेक्टेयर था. ज‍िसमें से स‍िर्फ 24 हजार 273 हेक्टेयर में ही बुवाई हुई है. जबक‍ि प‍िछले साल 42 हजार 831 हेक्टेयर में बुवाई हुई थी. यहां पर सोयाबीन की खेती कृष्णा और वार्ना नदियों के किनारे के गांवों में की जाती है. पिछले साल गर्मी और मॉनसून की बारिश समय पर शुरू हुई थी. ऐसे में बुवाई अच्छी हुई थी. उत्पादन भी बंपर हुआ था.

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नमी की कमी से शुरू हुई परेशान 

इस वर्ष बार‍िश नहीं हुई. ऐसे में कृष्णा और वार्ना नदियों का जलस्तर कम हो गया. इसलिए नदी किनारे के गांवों के किसानों ने इसकी खेती नहीं की. क्योंक‍ि बार‍िश की कमी के कारण खेतों में नमी नहीं थी. ऐसे में अगर क‍िसान बुवाई करते तो फ‍िर बीज में अंकुरण नहीं होता. उसकी लागत बेकार जाती. क‍िसान बारिश का इंतजार करने लगे. लेकिन जून सूखा बीत गया. जुलाई में 15 से 20 दिन बारिश हुई. इस बारिश से सोयाबीन की बुआई हुई लेक‍िन, एर‍िया कम ही रहा. देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र की ह‍िस्सेदारी अब 45.35 फीसदी है, जबक‍ि मध्य प्रदेश का योगदान 39.83 फीसदी है.

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