सोयाबीन कई सालों से भारत में उगाई जाने वाली तिलहन फसलों में पहले स्थान पर है. पिछले कई दशकों से इसने देश की खाद्य तेल अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इससे पहले सोयाबीन ने देश के लाखों छोटे और सीमांत किसानों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में भी अहम भूमिका निभाई है. आज के समय में देश के कई राज्यों में सोयाबीन की खेती की जा रही है. खासकर अगर महाराष्ट्र के किसानों की बात करें तो यहां पर ज्यादातर किसान सोयाबीन की खेती करते हैं. ऐसे में इन किसानों की सबसे बड़ी चिंता फसल में लगने वाली बीमारी है. बीमारी के कारण पत्तियां पीली पड़ जाती हैं या फिर पत्तियों में छेद होने लगते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है ये बीमारी और इसका इलाज कैसे करें.
बारिश की वजह से सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक का खतरा मंडराने लगता है. खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल पीली पड़ने लगती है, उसके पत्तों में छेद होने लगते हैं. इससे किसानों की चिंता बढ़ जाती है. बारिश के बाद मौसम साफ होता है तो खेतों में नमी की मात्रा संतुलित हो जाती है. लेकिन खेतों में खड़ी सोयाबीन पर पीला मोजेक रोग का प्रकोप शुरू हो जाता है जिसको लेकर किसानों की चिंता बढ़ जाती है. किसानों का कहना है कि इस रोग से फसल नष्ट हो जाती है और उत्पादन भी कम होता है.
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गर्मी के मौसम में जिन खेतों में मूंग की फसल बोई गई थी, वहां पीला मोजेक वायरस रहता है और जब किसान सोयाबीन की फसल लगाते हैं तो वो इसपर हमला करता है. फसल में अगर पीले पत्ते दिखाई दे रहे हैं, वे खेतों से पानी की निकासी न होने के कारण भी हो सकते हैं. लेकिन पीलापन की असली वजह पीला मोजेक वायरस है जो सफेद मक्खी से फैलता है. इस बीमारी के कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं और फलियां आकार में छोटी हो जाती हैं और दाने सिकुड़ जाते हैं.
रोग की रोकथाम के लिए जब भी फसल में पीलापन दिखे तो 1 मिली लीटर पानी में 1 मिली सल्फ्यूरिक एसिड और 0.5 प्रतिशत फेजर सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा मोजेक रोग की रोकथाम के लिए पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें. इसमें 500 से 600 ग्राम मेथोएट, मेटासिस्टॉक्स दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. उन्होंने बताया कि मोजेक रोग के कारण पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पौधे छोटे रह जाते हैं. पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है और फट जाती हैं.
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कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि खेतों में जलभराव की समस्या हो तो तुरंत जल निकासी की व्यवस्था करें. खेत में अधिक समय तक पानी भरा न रहने दें. खेतों में अधिक नमी होने से पौधे पोषक तत्व नहीं ले पाते हैं. इससे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. जिन पौधों की पत्तियां सफेद मक्खी के कारण पीली पड़ गई हैं, उनके पत्तों को किसान उखाड़कर फेंक दें. पीला मोजेक रोग से प्रभावित पौधों को खेत के बाहर गड्ढा खोदकर दबा देना बेहतर है. इससे अन्य पौधे रोग से बच जाएंगे. किसानों को खेत में प्रति एकड़ 20 टी आकार की खूंटियां लगानी चाहिए.
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