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Mustard Farming: क‍िसानों को बंपर मुनाफा देगी कम अवधि वाली सरसों की खेती, जान‍िए कौन-कौन सी हैं क‍िस्में? 

Mustard Farming: क‍िसानों को बंपर मुनाफा देगी कम अवधि वाली सरसों की खेती, जान‍िए कौन-कौन सी हैं क‍िस्में? 

अगर किसी कारण से आपकी खरीफ फसलों की कटाई में देरी हो गई है या आप अब तक सरसों की बुवाई नहीं कर पाए हैं तो परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. कम अवधि वाली सरसों की किस्में आपका साथ देंगी. यह कमाई के ल‍िहाज से बेहतर विकल्प साबित हो सकती हैं. कम समय में पकने वाली सरसों क‍िस्मों की खास‍ियत क्या है. 

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कम समय में पकने वाली सरसों क‍िस्मों की खास‍ियत क्या है. कम समय में पकने वाली सरसों क‍िस्मों की खास‍ियत क्या है.

खाद्य तेलों की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए क‍िसान त‍िलहन फसलों की बुवाई बढ़ा सकते हैं. रबी सीजन की मुख्य तिलहन फसल सरसों की खेती कम सिंचाई और कम खाद-पानी में अच्छी कमाई का एक बेहतर विकल्प है. अगर अभी तक सरसों की फसल नहीं लगाई है, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. कम अवधि वाली सरसों की किस्में आपकी मदद कर सकती हैं. इन किस्मों को आप रबी फसलों के साथ इंटरक्रॉपिंग या मिश्रित खेती के रूप में उगा सकते हैं, जिससे आपको फसल को जल्दी पकने के साथ-साथ अधिक लाभ मिल सकता है. इससे आप जायद फसलों की बुवाई भी समय पर कर पाएंगे.

सरसों की लंबी अवधि वाली किस्मों की बुवाई अक्टूबर तक की जाती है. अगर इसकी बुवाई देरी से की जाती है, तो उपज कम मिलती है. इसलिए, अब किसान कम अवधि वाली सरसों की खेती नवंबर-दिसंबर में कर सकते हैं. आईएआरआई पूसा की कम अवधि वाली सरसों की किस्में हैं, जो जल्दी पक जाती हैं और आमतौर पर 100 से 125 दिनों में तैयार हो जाती हैं. इसका मतलब है कि अगर लंबी अवधि वाली किस्मों की अभी तक बुवाई नहीं की है, तो किसान कम अवधि वाली किस्मों को बोकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं. इंटरक्रॉपिंग के रूप में इसे किसान गेहूं, चावल, मटर और अन्य रबी फसलों के साथ इसे उगा सकते हैं. इस प्रकार, किसान कम जगह में अधिक फसलें प्राप्त कर सकते हैं, जिससे मुनाफा बढ़ सकता है. 

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कम अवधि वाली सरसों की किस्में

  • पूसा तारक: यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए बेहतर है. यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार तेल को मानव उपयोग के लिए बेहतर बनाती है. इसकी औसत उपज 19.24 क्व‍िंटल प्रति हेक्टेयर है और यह 121 दिनों में तैयार हो जाती है.
  • पूसा सरसों 28 (NPJ-124): मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए यह बेहतर किस्म है. यह समय पर सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जिसकी औसत उपज 19.93 क्व‍िंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें तेल की मात्रा 41.5% है. यह 107 दिन में पककर तैयार हो जाती है और उच्च तेल सामग्री के कारण किसानों के लिए लाभकारी है.
  • पूसा सरसों 25: यह सरसों की एक लोकप्रिय कम अवधि वाली किस्म है, जिसे पूसा संस्थान द्वारा विकसित किया गया है. यह अधिक उपज देती है. इसमें तेल की मात्रा 39.6% है. यह किस्म राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश क्षेत्रों में खेती के लिए अत्यधिक बेहतर है.
  • पूसा अग्रणी सरसों: यह किस्म अधिक उपज के लिए जानी जाती है और रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती है. इसकी औसत उपज 17.5 क्व‍िंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें तेल की मात्रा अधिक होती है. यह 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिससे इसे धान की कटाई के बाद भी बोया जा सकता है. यह किस्म उत्तर भारत, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में उगाने के लिए बेहतर मानी जाती है.

बुवाई का समय और बीज की मात्रा

सरसों की बुवाई का समय प्रजाति के आधार पर बदलता है. लंबी अवधि वाली किस्मों की बुवाई अक्टूबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में की जाती है, जबकि छोटी अवधि वाली प्रजातियों की बुवाई सितंबर से दिसंबर तक की जा सकती है. बुवाई के लिए प्रत‍ि हेक्टेयर 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है. बुवाई के दौरान पौधों के बीच 15 सेंटीमीटर और कतारों के बीच 40 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.

सिंचाई का तरीका

सरसों की फसल में पहली सिंचाई तब करनी चाहिए जब पहला फूल दिखाई दे, दूसरी सिंचाई फलियों के बनने के दौरान करनी चाहिए. किसान इसे गेहूं या अन्य फसलों के साथ उगाकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. वे किसान जो फरवरी में गन्ना या अगेती सब्जियां लगाना चाहते हैं, या जनवरी में प्याज और लहसुन की खेती करना चाहते हैं, वे भी कम अवधि वाली सरसों की किस्मों की खेती से लाभ उठा सकते हैं. इस प्रकार, कम अवधि वाली सरसों की खेती काफी लाभकारी साबित हो सकती है. 

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