सितंबर महीने में मॉनसून की रिमझिम बूंदों के बीच विदाई शुरू हो जाती है और अक्टूबर के मध्य तक ठंडी की दस्तक शुरू हो जाती है. जहां यह महीना मॉनसून की विदाई का होता है. वहीं, यह महीना अगहनी फूलगोभी सहित गाजर और अन्य सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. साथ ही सब्जियों की नर्सरी में लगने वाले रोगों को लेकर भी किसानों इस दौरान सतर्क रहने की जरूरत होती है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ठंडी के मौसम में सब्जियों की खेती से अच्छी कमाई के लिए किसानों को अभी से तैयारी कर लेनी चाहिए. यानी, अब किसानों के लिए समय आ गया है कि वे सब्जियों की खेती के लिए कमर कस लें, क्योंकि मॉनसून के बाद ही सब्जी की असली खेती का सीजन शुरू होता है.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर) के वैज्ञानिकों के अनुसार अगहनी फूलगोभी की खेती के लिए यह समय उपयुक्त है. बेहतर उत्पादन के लिए किसानों को पूसी, पटना मेन, पूसा सिंथेटिक–1, पूसा शुभ्रा, पूसा शरद, पूसा मेघना, काशी कुंवारी जैसी किस्मों का चयन करना चाहिए. वहीं, वैज्ञानिकों का सुझाव है कि अगेती फूलगोभी की खेती में पत्ती खाने वाले कीटों की नियमित निगरानी जरूरी है. यदि पत्तियों पर डायमंड बैक मॉथ (कीट) का प्रकोप दिखाई दे, तो स्पेनोसेड दवा (1 मिलीलीटर प्रति 4 लीटर पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें.
सितंबर माह में फूलगोभी के साथ किसान मूली और गाजर की भी बुवाई शुरू कर सकते हैं जिनमें मूली की किस्में पूसा चेतकी, पूसा देसी, पूसा हिमानी, जौनपुरी जापानी सफेद, पूसा रश्मि, पंजाब सफेद, जापानी सफेद आदि किस्मों का चयन किसान करें. वहीं, गाजर की किस्मों में पूसा केसर, पूसा मेघाली, पूसा यमदागिनी, अमेरिकन ब्यूटी, कल्याणपुर येलो आदि शामिल हैं. वहीं, प्रति हेक्टेयर 4–5 किलो बीज का उपयोग करना चाहिए. वहीं, बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 25 बाई 10 सेंटीमीटर रखें.
इस मौसम में नर्सरी में तैयार किए जा रहे पौधों की देखभाल करना बहुत जरूरी होता है. वहीं नर्सरी में लाही, सफेद मक्खी और रस चूसने वाले कीटों की निगरानी अवश्य करें. ये कीट विषाणुजनित रोग फैलाने का काम करते हैं. वहीं, जब इन कीटों का प्रकोप दिखे तो किसान बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड दवा 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. छिड़काव हमेशा आसमान साफ रहने पर करें.
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