बांग्लादेश लंबे समय से अपनी घरेलु जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत से चावल खरीदना चाह रहा था. लेकिन, अब बांग्लादेश इससे पीछे हटता हुआ दिख रहा है. असल में अब बांग्लादेश 2 लाख टन चावल आयात पर भारतीय सहकारी एजेंसियों एनसीसीएफ (NCCF) और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के साथ सरकार से सरकार (जी2जी) सौदे के तहत चावल आयात करने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से हिचकिचा रहा है.इसके पीछे वजह जो सामने आ रही है, वो ये है कि आरोप लग रहे हैं कि चावल की खरीद के लिए निजी व्यापारियों की तुलना में इन सहकारी एजेंसियों को बांग्लादेश 35 डॉलर टन अधिक दे रहा है. इस वजह से अब बांग्लोदश ने अपने पैर पीछे खींंचते हुए दिख रहा है.
बांग्लादेश ने 21 दिसंबर 2022 को एनसीसीएफ (NCCF) और केंद्रीय भंडार से लगभग 433.60 डॉलर और 433.50 डॉलर प्रति टन पर एक लाख टन चावल खरीदने का आशय पत्र (एलओआई) रखा था, इसके अलावा उन्होंने 3 लाख टन चावल खरीदने के तहत 50000 टन की खरीद के लिए दो वैश्विक निविदाएं जारी की थी. वहीं 21 दिसंबर को खोले गई पहले टेंडर में भारत के बगाड़िया ब्रदर्स ने सबसे कम 393.90 डॉलर की बोली लगाई थी.
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वहीं सिंगापुर के एग्रोकॉर्प इंटरनेशनल ने 27 दिसंबर को खोले गए दूसरे टेंडर में 397.03 पर सबसे अधिक दर की पेशकश की थी. व्यापार सूत्रों ने कहा कि भारतीय एजेंसियों को बैंक गारंटी देनी थी. लेकिन इसमें 6 दिन की देरी की वजह से बांग्लादेश ने इसे स्वीकार करने के इंकार कर दिया.
बांग्लादेश मीडिया के एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शेख हसीना सरकार के खाद्य मंत्रालय और सार्वजनिक खरीद पर निर्णय लेने वाली कैबिनेट समिति ने आयात को मंजूरी दे दी है. व्यापार सूत्रों ने कहा कि बांग्लादेश को अधिक भुगतान करना पड़ा क्योंकि उसे वर्तमान फसल से दो महीने के भीतर चावल की जरुरत थी. एक अधिकारी ने कहा कि, अगर सरकार ने अधिक समय दिया होता और पुरानी फसल का विकल्प चुना होता तो उसे सस्ती दर पर चावल मिल सकता था. इसी मुद्दे को लेकर वहां के कारोबारियों का कहना है कि बांग्लादेश जो अतिरिक्त रकम चुका रहा है वह वाजिब है क्योंकि वह डिलीवरी में गारंटी चाहता है.
चावल निर्यातकों का कहना है कि इस आक्रामक बोली को देखते हुए भारतीय चावल की मांग बनी हुई है. दक्षिण के एक निर्यातक ने बिजनेस लाइन को बताया कि वर्ष 2021 में कुछ निर्यातकों ने 1 डॉलर प्रति टन के मार्जिन पर समझौता किया था. व्यापारियों को आश्चर्य है कि वैश्विक बाजार में बांग्लादेश को ऐसी प्रतिस्पर्धा के वक्त उबला हुआ चावल कहां से मिल सकता है. बांग्लादेश के अधिकारी नवम्बर में इसके आपूर्ति के लिए वियतनाम, थाईलैंड और कंबोडिया गए थे. जहां से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था. नजरअंदाज किए जाने के बावजूद भारत मदद के लिए आगे आया.
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