दुनिया के शीर्ष चावल निर्यातक भारत से अगले साल तक विदेशी बिक्री पर अंकुश बनाए रखने की उम्मीद है. भारत घरेलू कीमतें नियंत्रित करने के उद्देश्य से यह प्रतिबंध आगे भी लागू रख सकता है. क्योंकि, अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार कीमतों में बढ़ोत्तरी का सामना नहीं करना चाहती है. जबकि, वर्तमान में ही बाजार भाव से सस्ता आटा, दाल, प्याज समेत कई वस्तुएं सरकारी एजेंसियों के जरिए बेची जा रही हैं. चावल निर्यात पर प्रतिबंध लागू रहने का असर वैश्विक बाजार में कीमतों पर और दबाव बढ़ा देगा. वैसे भी बीते माह चावल निर्यात बैन करने के बाद कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं.
कम कीमतों और पर्याप्त भंडार ने पिछले एक दशक में भारत को वैश्विक स्तर पर चावल का शीर्ष शिपर्स बनने में मदद की है. भारत वर्तमान में कुल वैश्विक निर्यात का लगभग 40 फीसदी अकेले निर्यात करता है. भारत से सबसे बड़े चावल खरीदारों में अफ्रीकी देश बेनिन और सेनेगल शीर्ष पर हैं. लेकिन, अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार घरेलू कीमतों में वृद्धि को रोकने और भारतीय उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए चावल निर्यात पर प्रतिबंध कड़े करने के साथ ही आगे भी जारी रखने की संभावना है.
जब तक घरेलू चावल की कीमतें ऊपर की ओर दबाव का सामना कर रही हैं, तब तक प्रतिबंध बने रहने की संभावना है. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव के बाद भी अगर घरेलू चावल की कीमतें स्थिर नहीं होती हैं तो प्रतिंबंध उपायों को और बढ़ाए जाने की संभावना है. इसके क्रम में भारत ने निर्यात शुल्क और न्यूनतम मूल्य लागू कर रखा है. जबकि, टूटे हुए और गैर बासमती सफेद चावल की किस्मों के निर्यात नहीं किया जा सकता है. प्रतिबंध के चलते अगस्त में चावल की कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं, सबसे कमजोर आयातक देशों के खरीदारों ने खरीदारी रोक दी तो कुछ ने छूट की मांग की. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि चावल की कीमत अक्टूबर में भी एक साल पहले की तुलना में 24% आगे थीं.
अल नीनो का आगमन पूरे एशिया में फसलों को नष्ट कर देता है. ऐसे समय में जब विश्व भंडार लगातार तीसरी वार्षिक गिरावट की ओर बढ़ रहा है तब यह वैश्विक चावल बाजार को और सख्त कर सकता है.थाईलैंड सरकार ने कहा है कि सूखे मौसम के कारण नंबर-2 निर्यातक देश के यहां धान का उत्पादन 2023-24 में 6 फीसदी तक लुढ़कने की आशंका है. ऐसे में भारत के बाद थाइलैंड भी निर्यात में कटौती कर सकता है, जिससे वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों पर भारी दबाव देखने को मिल सकता है.
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कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक कम बारिश के कारण मानसून में बोई गई फसल एक साल पहले की तुलना में लगभग 4 फीसदी कम हो सकती है. जून से मानसून अवधि में बारिश औसत से कम दर्ज की गई है. ऐसे में सरकार को यह पक्का करना कि देश के मुफ्त भोजन कार्यक्रम को चालू रखने के लिए आपूर्ति उपलब्ध है. क्योंकि, मुफ्त राशन देश के 80 करोड़ लोगों को उपलब्ध कराया जाता है. वैसे भी पीएम मोदी बीते दिनों कह चुके हैं कि मुफ्त राशन योजना को 5 साल के लिए बढ़ाया जाएगा.
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